(श्री कुन्दकुन्ददेव कृत प्राकृत का पद्यानुवाद-गणिनी ज्ञानमती)
सुरपति नरपति नाग इंद्र मिल, तीन छत्र धारें प्रभु पर। पंच महाकल्याणक सुख के, स्वामी मंगलमय जिनवर।।