अशुभोपयोग की तरह शुभोपयोग को अधर्म नहीं कहा-‘
‘सुहसुद्धपरिणामेहि कम्मक्खयाभावेतक्खयाणुववत्तीदो।’
यदि शुभ और शुद्ध परिणामों से कर्मों का क्षय न माना जाये तो फिर कर्मों का क्षय हो ही नहीं सकता। शुभ-अशुभ परिणामों का वर्णन करते हुए कुन्द कुन्द ने कहा है
औचित्य का उल्लंघन न करें