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अयोध्या
पद्मावती पूजा
June 24, 2020
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पद्मावती पूजा
जगजीवन को शरण, हरण भ्रम तिमिर दिवाकर।
गुण अनन्त भगवन्त कंथ, शिवरमणि सुखाकर।।
किशनबदन लजिमदन, कोटिशशिसदन विराजै।
उरगलच्छन पगधरण, कमठ मद खण्डन साजैं।।
अनन्त चतुष्टय लक्षिकर, भूषित पारस देव।
त्रिविध नमौं शिरनायके, करूँ पद्मावती सेव।।१।।
दोहा आह्वानन बहुविधि करों, इस थल तिष्ठो आय।
सत्य मात पद्मावती, दर्शन दीजो धाय।।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐ पार्श्वनाथभक्ता धरणेन्द्रभार्या श्री पद्मावती महादेवि! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं पार्श्वनाथभक्ता धरणेन्द्रभार्या श्री पद्मावती महादेवि ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं पार्श्वनाथभक्ता धरणेन्द्रभार्या श्री पद्मावती महादेवि! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधीकरणं।
त्रिभंगी छंद गंगा हृदनीरं सुरभिसमीरं आक्रतक्षीरं ले आयो।
रतनन की झारी भरि करधारी आनंदकारी चितचायो।।
पद्मावति माता जगविख्याता, दे मोहि साता मोदभरी।
मैं तुम गुणगाऊँ हर्ष बढ़ाऊँ, बलिबलि जाऊँ धन्यघरी।।१।।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं श्रीपार्श्वनाथ भक्ता धरणेन्द्रभार्यायै श्रीपद्मावत्यै महादेव्यै जलं०।
गोशीर घिसायो केशर लायो, गंध बनायो स्वच्छमई।
आतापविनाशे चितहुल्लासे, सुरभि प्रकाशे शीतमई।।पद्मा.।।२।।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं श्रीपार्श्वनाथ भक्ता धरणेन्द्र भार्यायै श्रीपद्मावत्यै महादेव्यै चंदनं०।
मुक्ता उनहारं अक्षतसारं, खण्ड निवारं गन्धभरे।
शशिज्योतिसमानं मिष्ट महानं, शक्तिप्रमानं पुंजधरे।।पद्मा.।।३।।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं श्रीपार्श्वनाथ भक्ता धरणेन्द्रभार्यायै श्रीपद्मावत्यै महादेव्यै अक्षतं…।
चम्पारु चमेली केतकि सेली, गंध जु फैली चहुँ ओरी।
चितभ्रमरलुभायो मन हरषायो, तुमढिंग आयो सुन मोरी।। पद्मा.।।४।।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं श्रीपार्श्वनाथ भक्ता धरणेन्द्रभार्याये श्रीपद्मावत्यै महादेव्यै पुष्पं….।
घेवर घृतसाजे खुरमाखाजे, लाडू ताजे थार भरे।
नैनन सुखदाई तुरत बनाई, कीरत गायी अग्रधरे।।पद्मा.।।५।।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं श्रीपार्श्वनाथ भक्ता धरणेन्द्रभार्यायै श्रीपद्मावत्यै महादेव्यै नैवेद्यं…।
दीपकशशिजोतं तमक्षयहोतं, ज्ञान उद्योतं छाय रह्यो।
ममकुमतविनाशीसुमतप्रकाशी, समताभाषी सरनलह्यो।।पद्मा.।।६।।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं श्रीपार्श्वनाथ भक्ता धरणेन्द्रभार्यायै श्रीपद्मावत्यै महादेव्यै दीपं….।
कृष्णागरुधूपं सुरभिअनूपं, मन वच रूपं खेवत हो।
दशदिश अलि छाये वाद्य बजाये, तुम चरणाग्रे सेवतु हो।।पद्मा.।।७।।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं श्रीपार्श्वनाथ भक्ता धरणेन्द्रभार्यायै श्रीपद्मावत्यै महादेव्यै धूपं…।
बादाम सुपारी श्रीफल भारी, आनन्दकारी भरिथारी।
तुम चरण चढ़ाऊँ चित उमगाऊँ, वांछित पाऊँ बलिहारी।। पद्मा.।।८।।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं श्रीपार्श्वनाथ भक्ता धरणेन्द्रभार्यायै श्रीपद्मावत्यै महादेव्यै फलं…।
जल चन्दन अक्षत पुष्प चरू चित, दीप धूप फल लाय धरे।
शुभ अर्घ बनायो पूजन धायो, तूर बचाओ नृत्य करे।। पद्मा.।।९।।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं श्री पार्श्वनाथ भक्ता धरणेन्द्रभार्यायै श्रीपद्मावत्यै महादेव्यै अर्घ्यं….।
अथ जयमाला
श्री पद्मावति माय, गुण अनेक तन शोभते।
अब वर्णन जयमाल के, सुनौं सुजन मन लाय के।।१।।
पध्दड़ी छन्द जय तीर्थंकर श्री पार्श्वनाथ, प्रणमूँ चिरकाल नवाय माथ।
जिनमुख तैं बानी खिरी सार, सब जीवन को आनन्दकार।।
छद्मस्थ अवस्था को जु वर्ण, सुनियो भवि चित्तलगाय कर्ण।
इक दिन हय चढ़ि कर पार्श्वनाथ, अरु सखा अनेकों लिए साथ।।
गंगा तट आये मोद ठान, तहाँ तापस कुतप करै अयान।
इक काष्ठथूल में नाग दोय, तपसी को कुछ नहिं ज्ञान सोय।।
वह काष्ठ अग्नि में दियो लगाय, उरगनि को संकट परौ आय।
यह भेद जान श्री पारसदेव, तापस के ढिग आये स्वमेव।।
तासों बोले नहिं ज्ञान तोय, हिंसामय तप करि कुगति होय।
चीरौ जु काष्ठ तत्काल सोय, काढ़े सु नागिनी नाग दोय।।
तिनके जु कंठगत रहे प्राण, पारस प्रभु करुणा धर महान।।
जिनके वचनामृत हैं महान, निर्मल भावों से सुने कान।।
तत्काल पुण्यसमुदाय होय, उत्तम गति बन्ध कियो सु दोय।
संन्यास कियो मन को लगाय, धरणेन्द्र पद्मावती लहाय।।
सो ही पद्मावति मात सार, नित प्रति पूजौं मैं बार-बार।
बहुतें जीवन उपकार कीन, मेरी बारी मैं बहुत दीन।।
जल आदिक वसुविधि द्रव्यलाय, गुणगान गाय बाजे बजाय।
घननन घननन घण्टा बजन्त, तननं तननं नूपुर तुरन्त।।
ताथेई थेई थेई घुंघरू करन्त, झुकि-२ झुकि-२ फिर पग धरन्त।
बाजत सितार मिरदंग साज, बीणा मुरली मधुरी अवाज।।
करि नृत्य गान बहु गुण बखान, कहँलौं महिमा वरने अगान।
‘‘सेवक’’ पर सदा सहाय कीन, विनती मोरी सुनियो प्रवीन।।
घत्ता पद्मावति माता, तुम गुण गाता, आनन्द दाता, कष्ट हरौ।
सुन माता मोरी, शरण जु तोरी, लखि मम ओरी, धीर धरौ।।
दोहा
हे माता मम उर विषैं, पूरण तिष्ठो आय।
रहे सदैव दयालुता, कहता सेवक गाय।।
।।इत्याशीर्वादः।।
जाप्य-मंत्र ॐ नमो भगवते पार्श्वनाथाय धरणेन्द्रपद्मावतीसहिताय फणामणिमंडिताय कमठमानविध्वंसनाय सर्वग्रहोच्चाटनाय सर्वोपद्रवशांतिं कुरु कुरु स्वाहा।
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