करते हैं प्रभू की आरति, मन का दीप जलेगा।
पारस प्रभु की भक्ती से, मन संक्लेश धुलेगा।।
जय पारस देवा, जय पारस देवा-२।।टेक.।।
हे अश्वसेन के नन्दन, वामा माता के प्यारे।
तेईसवें तीर्थंकर पारस, प्रभु तुम जग से न्यारे।।
तेरी भक्ती गंगा में जो स्नान करेगा।
पारस प्रभु की भक्ती से, मन संक्लेश धुलेगा।।
जय पारस देवा-४।।१।।
वाराणसी में जन्में, निर्वाण शिखरजी से पाया।
इक लोहा भी प्रभु चरणों में, सोना बनने आया।।
सोना ही क्या वह लोहा, पारसनाथ बनेगा।
पारस प्रभु की भक्ती से, मन संक्लेश धुलेगा।।
जय पारस देवा-४।।२।।
सुनते हैं जग में वैर सदा, दो तरफा चलता है।
परन पार्श्वनाथ का जीवन, इसे चुनौती करता है।।
इक तरफा वैरी ही कब तक, उपसर्ग करेगा।
पारस प्रभु की भक्ती से, मन संक्लेश धुलेगा।
जय पारस देवा-४।।३।।
कमठासुर ने बहुतेक भवों में, आ उपसर्ग किया।
पारसप्रभु ने सब सहकर, केवलपद को प्राप्त किया।।
कैवल्य ज्योति से पापों का, अंधेर मिटेगा।
पारस प्रभु की भक्ती से, मन संक्लेश धुलेगा।
जय पारस देवा-४।।४।।
प्रभु तेरी आरति से मैं भी, यह शक्ती पा जाऊं।
‘‘चंदनामती’’ तव गुणमणि की, माला यदि पा जाऊं।
तब जग में निंह शत्रू का, मुझ पर वार चलेगा।
पारस प्रभु की भक्ती से, मन संक्लेश धुलेगा।जय पारस देवा-४।।५।।