आरती पावापुरिवर की, वीर प्रभू के मोक्षगमन से,
पावन स्थल की।।आरती…।।टेक.।।
सिद्धारथ के घर जन्में, कुण्डलपुर धन्य हुआ था,
जृम्भिका ग्राम में प्रभु को, फिर केवलज्ञान हुआ था।।आरती…।।१।।
कार्तिक कृष्णा मावस को, भगवन निर्वाण पधारे,
सब कर्म अरी को नाशा, जा सिद्धशिला पर राजे।।आरती…।।२।।
देवों ने नगरी में आ, निर्वाणकल्याण मनाया,
अगणित दीपों को जलाकर, उत्सव था खूब कराया।।आरती…।।३।।
उसके प्रतीक में तब से, ‘दीपावलि’ पर्व चला है,
सुर नर वंदित यह तीरथ, तब से ही पूज्य हुआ है।।आरती…।।४।।
इन्द्रों से विराजित चरणों, को हर प्राणी नमता है,
पावापुरी का जल मंदिर, वह दिव्य कथा कहता है।।आरती…।।५।।
गौतम गणधर स्वामी की, यह केवलज्ञान थली है,
दीपावलि की सन्ध्या में, दिव्यध्वनि वहीं खिरी है।।आरती…।।६।।
गणिनी माँ ज्ञानमती के, जब चरण पड़े तीरथ पर,
भूमण्डल पर वह छाया, फैली जग में नव कीरत।।आरती…।।७।।
प्रभू वीर का नूतन मंदिर, उसमें खड्गासन प्रतिमा,
‘‘चंदनामती’’ युग-युग तक, फैलेगी धर्म की महिमा।।आरती…।।८।