‘‘या कुण्डलपुरी पूज्या, मंगलं कुरुताद् भुवि, जन्मभूमि: प्रसिद्धास्ति महावीरस्य संप्रति।
राजधानीह सिद्धार्थ, भूपते: साधुभिर्नुता, नंद्यावर्तं च प्रासादं, रत्नवृष्ट्या सुमंगलम्।।’’
उपर्युक्त पंक्तियों में पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी ने ‘तीर्थंकर जन्मभूमि वंदना’ में भगवान महावीर की जन्मभूमि कुण्डलपुर के लिए लिखा है कि यह कुण्डलपुरी पूज्य है, संसार में मंगलकारी है, महावीर की जन्मभूमि के रूप में प्रसिद्ध है। राजा सिद्धार्थ की राजधानी पवित्र है, नंद्यावर्त महल मंगलकारी है जहाँ पर १५ महीनों तक लगातार रत्नों की वृष्टि हुई है। उपर्युक्त पंक्तियों में ऐसी रत्नगर्भा भूमि पर भगवान महावीर का जन्म हुआ। जिन भगवान महावीर के शासन में हम और आप रह रहे हैं, उनकी जन्मभूमि विकसित हो, यह बहुत ही आवश्यक है। तीर्थोद्धारिका पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी की पावन प्रेरणा से उन्हीं के सानिध्य में तीर्थ का विकास कार्य हुआ और सचमुच इस भूमि का चमत्कार ही कहना पड़ेगा जो कि इतने अल्प समय में-मात्र डेढ़ वर्ष में इतने विशाल-विशाल मंदिरों का निर्माण, कलात्मक शिखरों का निर्माण, नंद्यावर्त महल आदि अनेक निर्माण कार्य हुए हैं।
पूज्य माताजी के पास रहकर मैंने देखा कि किस तरह से कितनी द्रुत गति से निर्माण कार्य चला। माताजी का तीव्र गति से चिन्तन चला। माताजी प्रेरणा देती गर्इं और यह प्रथम तीर्थ है कि पूज्य माताजी की आँखों के सामने पूरा निर्माण कार्य हुआ। माताजी अक्सर अपने प्रवचनों में बताया करती हैं कि इसी भूमि पर नंद्यावर्त महल में पालने में झूलते हुए जिनबालक महावीर को देखकर चारण ऋद्धिधारी मुनियों की शंका का समाधान हो गया था और उन्होंने भगवान महावीर का ‘सन्मति’ नाम रखा था।माताजी कहती हैं यहाँ आने के बाद मेरी भी अनेक शंकाओं के समाधान सहज ही हो गए। यह देखा जाता है कि अच्छे कार्यों में विघ्न अवश्य आते हैं और कुछ लोग ईष्र्यावश भी यद्वा-तद्वा कहते रहते हैं लेकिन पूज्य माताजी का कहना है कि हमें तो अपना कार्य करते रहना चािहए, विघ्न बाधा की परवाह नहीं करनी चाहिए। ‘‘साँच को आँच नहीं’’ जो सत्य होता है, विजय हमेशा उसकी ही होती है। भले ही देर क्यों न हो। सत्य कभी छिपकर नहीं रहता, वह हमेशा ऊपर रहता है। ‘सत्यमेव जयते।’ आज जैन समाज की ९९ प्रतिशत जनता की श्रद्धा का केन्द्र महावीर की जन्मभूमि कुण्डलपुर है। आज जो कुण्डलपुर को भगवान महावीर की जन्मभूमि नहीं मानते हैं, वे या तो अज्ञानतावश नहीं मानते या फिर ईष्र्यावश नहीं मानते। इसमें कोई संदेह नहीं है। पूज्य चंदनामती माताजी ने एक भजन में बहुत सुन्दर शब्द संजोए हैं-
मत छानो माँ का दूध, बनो मजबूत, अटल श्रद्धानी, ये कहती माँ जिनवाणी
अपने पितु की पहचान तुम्हें। करवाती है निज मात तुम्हें।
पहचान पड़ोसी से न पिता की मानी, यह कहती माँ जिनवाणी।
जिस प्रकार जब बच्चा अपनी माँ से पिता के बारे में पूछता है तो माँ जिसकी ओर उँगली दिखा देती है, बच्चा उसी को पिता स्वीकार करता है, वह पड़ोसी से अपने पिता की पहचान नहीं करवाता, वैसे ही हमें भी अपनी जिनवाणी माता के अलावा किसी की बात का विश्वास नहीं करना चाहिए अत: पुराणों में, प्राचीन ग्रंथों में जो लिखा है कि कुण्डलपुर भगवान महावीर की जन्मभूमि है उसे ही मानना चाहिए। जिनवाणी माता पर श्रद्धान करने वाले ही सम्यग्दृष्टि हैं। ‘वाग्देवी’ पदवी से अलंकृत ज्ञानमती माताजी के मुख से निकला वचन सत्य होता है और जो भी माताजी सोचती हैं वह अवश्य पूरा होता है।
माताजी केवल भगवान महावीर की जन्मभूमि का विकास ही नहीं करवा रही हैं अपितु समस्त भगवन्तों की जन्मभूमियाँ विकसित हों इसके लिए समाज को प्रेरणा देकर एवं जन्मभूमि विकास समिति की स्थापना कराके माताजी ने एक महान कार्य किया है। मैं अपने को बहुत ही भाग्यशाली समझती हूँ कि ऐसी जगत्पूज्य, युग की प्रथम बालसती, सरस्वती की प्रतिमूर्ति, वात्सल्यमयी माताजी के परिवार में मेरा जन्म हुआ और उससे भी ज्यादा अंतरंग खुशी है कि उनकी शिष्या बनने का मुझे सुअवसर मिला, ये सब मेरे जन्म-जन्म के पुण्य का फल ही मुझे प्राप्त हुआ है।
अनेक साधुओं के मुख से, अनेक विद्वानों के मुख से एवं अनेक भक्तों के मुख से मैंने सुना है कि ज्ञानमती माताजी ने एक महिला होकर जो सर्वतोमुखी कार्य किए हैं, अगर ये पुरुष होतीं तो न जाने और क्या कर डालतीं? डेढ़-दो वर्षों में कुण्डलपुर में रहकर मैंने देखा कि शिखर जी जाने वाले प्रत्येक यात्री कुण्डलपुर अवश्य आते हैं, क्यों? क्योंकि उनकी श्रद्धा भगवान महावीर की जन्मभूमि से जुड़ी हुई है। यहाँ पर हुए निर्माण कार्य को जब वे देखते हैं तो आश्चर्य करते हैं कि इतनी जल्दी इतना निर्माण वैâसे हो गया, यह सचमुच चमत्कार है और वह माताजी से कहते हैं कि माताजी! आपका जैन समाज पर बहुत उपकार है, आपने भगवान की जन्मभूमि को फिर से सजा दिया है। माताजी कहती हैं-मैंने तो महावीर भगवान की जन्मभूमि बचाई है बनाई नहीं।’’ सचमुच अगर कुछ वर्षों तक इस ओर ध्यान न जाता तो क्या होता यह किसी को पता नहीं
। खैर! अब तो कुण्डलपुर आने वाला प्रत्येक यात्री अपनी शक्ति के अनुसार यथायोग्य दान देकर भगवान महावीर की जन्मभूमि का विकास कर रहा है और इस बात को स्वीकार करता है कि जन्मभूमि कुण्डलपुर ही है।
पूज्य चंदनामती माताजी के भजन के रूप में-
वीर जन्मभूमि सच्ची है, कुण्डलपुरी ही है सदियों से थी और सदा ही रहेगी।।टेक.।।
जैन ग्रंथों पुराणों में,
सभी मुनियों ने गाया है तभी कुण्डलपुरी का नाम,
सबके मन समाया है,
ऋषि मुनि कवियों ने भी,
गाई उनकी कीर्ति है
.यह ऐतिहासिकता है कि जिस सात खण्ड ऊँचे नंद्यावर्त महल में भगवान महावीर ने जन्म लिया, खेले, बड़े हुए, उस महल को पुन: हम सभी को देखने का अवसर प्राप्त हुआ है। भगवान महावीर के जन्म से लेकर निर्वाण तक की जीवन्त झांकी को देखने का अवसर मिल रहा है यह सब पूज्य माताजी का उपकार है। यह ‘‘कुण्डलपुर अभिनंदन ग्रंथ’’ वास्तव में केवल भगवान महावीर का गुणगान या माताजी का गुणगान नहीं है अपितु जैनधर्म की आन-बान-शान है। इसको पढ़कर हमें यह शिक्षा लेनी है कि अगर हमें अपने जीवन में कुछ करना है तो हमें भगवन्तों के लिए, इनकी जन्मभूमि के लिए, उनकी निर्वाणभूमि के लिए कार्य करना है। भगवान की जन्मभूमि, निर्वाणभूमि को बचाने के लिए, उनके संरक्षण के लिए, संवर्धन के लिए हमें अपना तन-मन-धन अर्पण करना है। अन्त में मैं भगवान महावीर स्वामी से प्रार्थना करती हूँ कि भगवन्! मेरा सम्यग्दर्शन सदा दृढ़ रहे, देव, शास्त्र, गुरु पर सदा श्रद्धान रहे, सन्मति भी प्राप्ति हो, बोधि, समाधि की प्राप्ति हो। जब तक इस संसार से मेरा जन्म-मरण समाप्त न हो, तब तक कण्ठ में बस आपका नाम स्मरण रहे, यही मेरी विनम्र विनयांजलि, भावांजलि, प्रसूनाञ्जलि है एवं भगवान के श्रीचरणों में कोटि-कोटि नमन है।
‘‘नमोऽस्तु परमात्मने सकल लोक चूड़ामणे!
नमोऽस्तु जिनवीर धीर! भगवान महावीर!
ते! नमोऽस्तु जिन पुंगवाय जिनवर्धमानाय ते!
नमोऽस्तु जिन सन्मते! वितनु सन्मतिं मे सदा।।’’
और इसके साथ मोक्षमार्ग में लगाने वाली,
सच्चा मार्ग दिखाने वाली,
अवगुणों को दूर करने वाली,
गुणों की जन्मदात्री माता,
वात्सल्यमयी माता,
ज्ञानमूर्ति माता,
सरस्वती की प्रतिमूर्ति माता,
समस्त विश्व की माता,
गणिनी ज्ञानमती माताजी से मेरी विनम्र विनती है कि आपका वरदहस्त, आपकी छत्रछाया, अनुकम्पा सदा बनी रहे एवं आपका आशीर्वाद सदा मिलता रहे। जिनशासन धर्म प्रभाविका आप दीर्घायु हों, चिरायु हों यही मंगलभावना एवं भगवान से मंगल प्रार्थना है।