वर्तमान शासनपती , महावीर भगवान
तीर्थराज कुण्डलपुर ,उनका जन्मस्थान ||१||
पावन उस शुभ तीर्थ को,नमन करूं शिर टेक
चालीसा के पाठ से, मेटूं भव के क्लेश ||२||
प्रथम हुए आदीश्वर स्वामी, अंतिम महावीर जगनामी ||२||
छ्ब्बिस सौ वर्षों के पहले ,प्रांत बिहार के नालंदा में ||३||
कुण्डलपुर नगरी बड़भागी , जन्म से प्रभु के कीरत जागी ||४||
उस नगरी का कण-कण पावन,तीन कल्याणक से मनभावन ||५||
कुण्डलपुर में नृप सर्वारथ , उनके पुत्र हुए सिद्धारथ ||६||
उनकी रानी प्रियकारिणि ने, सोलह स्वप्न यहीं पर देखे ||७||
तिथि आषाढ़ सुदी छठ में प्रभु, गर्भागम से यह भू हरषे ||८||
पन्द्रह मास रतन की वर्षा , धनद इसी नगरी में करता ||९||
चैत्र सुदी तेरस की तिथि में, वीर जन्म से त्रिभुवन हरषा ||१०||
सुरगिरि पर जन्मोत्सव करके, मात-पिता को बालक सौंपे ||११||
इन्द्र सपरिकर नगरी आया, आनंद नाटक वहाँ रचाया ||१२||
जातिस्मरण हुआ प्रभुवर को, दीक्षा हेतु चले थे वन को ||१३||
अंतिम बालयती कहलाए, लौकान्तिक सुर स्तुति गायें ||१४||
पांच नाम से जाने जाते , महावीर अतिवीर कहाते ||१५||
वर्धमान, सन्मति अरु वीरा,हर लेते भक्तों की पीड़ा ||१६||
केवलरमणी ऋजुकूला तट, पावापुर निर्वाण का स्थल ||१७||
जो कुण्डलपुर नगरी आता, सारे दर्श सहज ही पाता ||१८||
बड़ी दिव्य नगरी थी प्यारी , हुआ कालपरिवर्तन भारी ||१९||
वैभवहीन हुई वह नगरी, भूल गयी थी जनता सगरी ||२०||
छ्ब्बिस सौवां जन्मकल्याणक , आया प्रभु महावीर का जिस क्षण ||२१||
शारद माँ सम ज्ञानमती माँ, कर विहार पहुंचीं नगरी मा ||२२||
जन्मभूमि की पलटी काया, विश्व के मानसपटल पे छाया ||२३||
नाम मात्र जो शास्त्र ग्रंथ में, अब सारी दुनिया वहाँ पहुंचे ||२४||
स्वर्णिम हुआ विकास वहाँ पर, नन्द्यावर्त महल का परिसर ||२५||
महावीर मंदिर अति प्यारा, जहाँ प्रभु का गूँजे जयकारा ||२६||
प्रतिमा अवगाहन प्रमाण है, अतिशयकारी तीर्थराज है ||२७||
दायीं ओर ऋषभ जिनमंदिर, बाईं ओर नवग्रह मंदिर ||२८||
अरु त्रिकाल चौबीसी मंदिर, बना तीन मंजिल का सुन्दर ||२९||
यक्ष-यक्षिणी वीर प्रभू के, राजित हैं परिसर के अंदर ||३०||
नंदयावर्त महल है वहाँ पे, सात मंजिला कहे कथा ये ||३१||
जहाँ प्रभू झूले थे पलना, शैशव फिर आये यौवन मा ||३२||
प्रभु के जीवन से सम्बंधित , है प्राचीन कलाकृति अनुपम ||३३||
ऊपर शांतिनाथ चैत्यालय , जहां भव्य प्रतिमाएं विराजित ||३४||
है प्राचीन एक जिनमंदिर , जहां वीर प्रभु का कीर्तिस्तम्भ ||३५||
श्वेत वर्ण की सुन्दर प्रतिमा, यक्ष-यक्षिणी की भी महिमा ||३६||
नूतन परिसर में हैं राजित , चंदनबाला की इक मूरत ||३७||
वीर को जो आहार दे रही, कौशाम्बी की कथा कह रही ||३८||
वीर जन्मभूमी की जय हो, कीर्ति जगत भर में अक्षय हो ||३९||
गणिनी माँ को शीश झुकाओ , तीर्थ की रज मस्तक पे चढ़ाओ ||४०||
इसकी तीरथयात्रा हर इक, भक्तों के लिए सुखकारी है
प्रभु महावीर ले जन्म जहां, बन गए अजन्मा सिद्धप्रभू
मेरी आत्मा भी तीर्थ बने, इस हेतु ‘इंदु’ भू को प्रणमूँ ||१||
पुरातत्व :
पद्मासन मुद्रा में भगवन महावीर की विशालतम ज्ञात प्रतिमा जी, पटनागंज (म•प•)