अंतिम प्रभु महावीर ने, पाया पद निर्वाण |
सिद्धक्षेत्र पावापुरी, को है नम्र प्रणाम ||१||
चालीसा उस तीर्थ का, पढ़ो भव्य मन लाय |
लौकिक सुख के संग में,आत्मिक सुख मिल जाय ||२||
जय-जय पावापुरी तीर्थ की, जय प्रभु के निर्वाणोत्सव की ||१|
सिद्धशिला के बन गए स्वामी, वर्धमान जिन अंतर्यामी ||२||
गर्भ,जन्म,तप कुण्डलपुर में, बाल ब्रम्हचारी प्रभुवर वे ||३||
करते प्रभु उग्रोग्र तपस्या, केवलज्ञान उन्हें तब प्रगटा ||४||
बारह वर्ष विहार किया था, समवसरण वह दिव्य रचा था ||५||
भवि प्राणी संबोधन पाएं ,आत्मज्ञान का कमल खिलाएं ||६||
पहुंचे प्रभु पावापुरि जी में, प्रांत विहार में स्थित है ये ||७||
अंतिम दी देशना प्रभू ने, काल चतुर्थ के अंत समय में ||८||
तीन वर्ष अरु आठ मास जब, शेष रहे स्वाती नक्षत्र अब ||९||
कार्तिक कृष्ण अमावस्या में, प्रातःकाल उषा बेला में ||१०||
प्रभु को मोक्षकल्याण हुआ था, इन्द्र ने उत्सव खूब किया था ||११||
जहां इन्द्र संस्कार था करता , रत्नमयी स्तूप भी रचता ||१२||
सबने दीपावली मनाई, तब से पर्व चला यह भाई ||१३||
पावापुरि के कई नाम हैं, बड़ा मनोरम पुण्यधाम है ||१४||
जिस दिन प्रभु निर्वाण पधारे, उस ही सायं की बेला में ||१५||
केवलज्ञान हुआ गौतम को, भक्त उमड़ आये दर्शन को ||१६||
भव्य सरोवर के बीचोंबिच , बना हुआ सुन्दर जलमंदिर ||१७||
नाम मनोहर था इस वन का, जहँ प्रभु को निर्वाण हुआ था ||१८||
सरवर बिच इस जलमंदिर में, इन्द्र उकेरे चरण प्रभू के ||१९||
बना लाल पाषाण का प्यारा, जलमंदिर जाने का द्वारा ||२०||
पार करो पुल अंदर जाओ, वर्धमान को शीश नवाओ ||२१||
बाईं तरफ श्री गौतम स्वामी, दायीं ओर सुधर्मा स्वामी ||२२||
चरण चिन्ह स्थापित इनके, भक्ति भाव से इनको नम के ||२३||
त्रय प्रदक्षिणा बाहर से कर,सिद्धधाम को नमो बंधुवर ||२४||
जलमंदिर के ठीक सामने, इक प्राचीन जिनालय उसमें ||२५||
समवसरण मंदिर प्रसिद्ध है, चरण वहाँ प्रभु के निर्मित हैं ||२६||
कार्यालय है जैन दिगंबर, अंदर सात दिगंबर मंदिर ||२७||
तीर्थंकर महावीर की प्रतिमा, त्रय फुट राजित हैं वेदी मा ||२८||
दूजी वेदी शांतिनाथ की, तीजी पुनि महावीर प्रभू की ||२९||
ऊपर चढ़कर चार वेदियाँ, हैं प्राचीन वहाँ जिनप्रतिमा ||३०||
जलमंदिर के ही समीप में, इसी कमेटी की भूमी में ||३१||
इक सुन्दर नूतन जिनमंदिर, खड्गासन जिनप्रतिमा मनहर ||३२||
गणिनी ज्ञानमती माँ आईं, दी प्रेरणा मूर्ति पधराई ||३३||
दर्शनीय मंदिर है न्यारा, पाण्डुशिला उद्यान है प्यारा ||३४||
कमलासन पर प्रभुवर राजे, दूर-दूर से भक्त हैं आते ||३५||
जय जयकार उचारें प्रभु की, तीरथयात्रा कल्मष हरती ||३६||
जब दीपावली पर्व है आता, भक्तों का लगता है तांता ||३७||
सब निर्वाणकल्याण मनाते, लाडू चढा बहुत हर्षाते ||३८||
छह तीर्थों की यात्रा होती, पावापुरि सम्मेदशिखर जी ||३९||
कुंडलपुरि अरु राजगृही जी, चम्पापुरि मंदारगिरी जी ||४०||
धाम सिद्धि का पूज्य ये,पावापुरी महान |
तीरथयात्रा से सदा ,आत्मा का कल्याण ||१||
अंतिम प्रभु महावीर से, चाहूँ ये वरदान |
‘इंदु’ शीघ्र ही प्राप्त हो,मुझको सिद्धस्थान ||२|