जैनधर्म के अंतिम एवं २४वें तीर्थंकर भगवान महावीर की जन्मभूमि के रूप में इस कुण्डलपुर की मान्यता प्राचीनकाल से रही है और यह मेरा सौभाग्य है कि इस महान पवित्र भूमि का भारतीय संसद में प्रशासनिक प्रतिनिधित्व करने का दायित्व मुझे मिला है। भगवान महावीर वो महान व्यक्तित्व थे, जिनकी बौद्धिक क्षमताएं असाधारण थीं, जिनके सिद्धांत समस्त विश्वपरिवार के सामाजिक, आर्थिक, नैतिक, सांस्कृतिक हर क्षेत्र संंबंधी जीवन को सुचारूरूप से चलाने हेतु सर्वाधिक सक्षम हैं। भगवान महावीर ने जहां अपनी ओर से दूसरे पर आक्रमण करने से मना किया, वहीं स्वयं की रक्षा के लिए हर प्रकार से तत्पर रहने का उपदेश भी हमें उनकी वाणी से ही प्राप्त हुआ है। रक्षामंत्री के रूप में आज देश की सीमाओं की सुरक्षा नीति, अपनी ओर से आक्रमण न करने की नीति इत्यादि सभी भगवान महावीर के सिद्धान्तों को ही प्रतिपादित कर रही हैं। ऐसे युगपुरुष की जन्मभूमि मेरे इस संसदीय क्षेत्र का महान गौरव है। यह बड़ी प्रसन्नता की बात है कि ऐसी पावनभूमि का विकास करने का संकल्प हमारे देश की विभूतिस्वरूप महान जैनसाध्वी श्री ज्ञानमती माताजी द्वारा लिया गया है। भारत की समाज पर यदि किसी का गहरा असर होता है तो वे ये आध्यात्मिक संत ही हैं, जिनकी वाणी जन-जन के लिए प्रामाणिक हो जाती है। मुझे बताया है कि पूज्य माताजी दिगम्बर जैन समाज की ऐसी साध्वीरत्न हैं जिन्होंने भगवान महावीर के बाद ढाई हजार वर्षों के इतिहास में पहली बार विशाल ग्रंथलेखन किया है।
ऐसी महान विद्वान् माताजी के दर्शन का सौभाग्य मुझे मेरे ही संसदीय क्षेत्र में प्राप्त हुआ है तो यह मेरे लिए बहुत ही महत्वपूर्ण बात है। पूज्य माताजी के आह्वान पर भगवान महावीर जन्मभूमि के विकास का ये जो महत्तम कार्य सम्पन्न किया जा रहा है, वह मात्र जैनसमाज के लिए ही यशस्वी नहीं है वरन् इस संपूर्ण नालंदा क्षेत्र एवं बिहार प्रान्त की कीर्ति संसार में प्रसारित करने वाला है। नालंदा को तो बौद्धिक क्षेत्र में पहले से ही ख्याति इसलिए प्राप्त है क्योंकि भगवान महावीर और गौतम बुद्ध जैसे महापुरुषों ने इस धरती पर निवास करके अपनी ज्ञानरश्मियों को बिखराया है। बहुत ही अल्पसमय में इस प्रकार के विकास कार्य को देखकर मैं इस विकास के आधारभूत कर्मयोगी ब्र. रवीन्द्र कुमार जैन सहित उनकी पूरी टीम को साधुवाद देना चाहता हूँ। नालंदा की जनता इस तीर्थ के माध्यम से महावीर के सिद्धान्तों को पुनः आत्मसात करके जीवन में और भी सुखी हो सकेगी, ऐसी मेरी शुभकामना है।
भारत के प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी ने पूज्य माताजी की प्रेरणा एवं सानिध्य में दो बार राजधानी दिल्ली में तीर्थंकर महावीर की परम्परा के प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव से संबंधित दो राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रमों का उद्घाटन किया। प्रथम तो अप्रैल १९९८ में भगवान ऋषभदेव समवसरण श्रीविहार प्रवर्तन का उद्घाटन एवं उसके पश्चात् फरवरी २००० में भगवान ऋषभदेव अंतर्राष्ट्रीय निर्वाण महोत्सव वर्ष का उद्घाटन। तीर्थंकर भगवन्तों के सिद्धान्तों के प्रचार-प्रसार की माननीय अटल जी ने जो ये परम्परा पूज्य माताजी की प्रेरणा से स्थापित की है, मैं तो उसे ही आगे बढ़ाने आया हूँ। मेरा प्रयास रहेगा कि सरकारी स्तर पर भगवान महावीर जन्मभूमि के विकास हेतु जो सहयोग संभव है, उसके प्रति मैं सजग होकर अपने कर्तव्य का निर्वाह करूँ।