टीका- अस्मिन् भारतदेशे विहारप्रान्ते पावापुरं नाम नगरमस्ति, यद्भगवतः महावीरस्य निर्वाणकल्याणकेन पावनं जातं, तस्य पावापुरस्य सिद्धक्षेत्रस्य सरोवरे विविध सुगन्धितकमलानि विकसितानि अतः सरसः मनोहारिणी शोभा जनानां चित्तं मोहयति। एतैः विशैषणैः विशिष्टं पावापुरं नाम नगरं। तस्मिन् पावापुरे सरसो मध्ये स्थितो भूत्वा तीर्थंकरप्रभुः मनोवचःकाययोगान्निरुध्य किल निश्चयेन तत् कर्मवनं अधाक्षीत् कर्माण्येव गहनानि वनानि यत्र समस्तसंसारिणः निवसन्ति तत्कर्मवनं सन्मतिः निजध्यानाग्निबलेन दग्धमकरोत्। पुनः कां प्राप्नोत् महावीरप्रभुः ? उपमाव्यतीतां सुमुक्तिललनां लेभे मुक्तिरेव ललना कन्या तां सुष्ठुतया प्राप्नोत्। कैः विशेषणैः संयुक्ता सा मुक्तिकन्या ? उपमाव्यतीतां समस्तसांसारिकोपमाः उल्लंघ्य अनुपमरूपगुणसंयुक्ता सा मुक्तिललना। तां उपमाव्यतीतां सुमुक्तिललनां लब्धवान् तीर्थंकरनाथः। पुनश्च किं प्राप्तवान् वीरनाथः? अनंतसुखधाम तु भेजे न अन्तः सुखानाम् यत्र तत् अनंतसुखद्दाम पौद्गलिककर्माटवीं दग्धीकृत्य अनंतसुखास्पदं सिद्धगतिं प्राप्नोत्। तस्मै वीराय मे नमोऽस्तु। अत्रायं भावार्थः यत् श्रीसिद्धार्थस्यापत्यं तीर्थंकरमहावीरः पावापुरस्य सरसिः मध्ये योगं निरुध्य कार्तिककृष्णामावस्यायां तिथौ उषाबेलायां अघातिकर्माणि नष्टीकृत्य निर्वाणधाम अवाप्नोत् तस्मै तद्गुणलब्धये मे नमोऽस्तु तस्य निर्वाणभूमिं च नमाम्यहं।
हिन्दी टीका –‘‘पावापुरे’’ इत्यादि पदखण्डना रूप से व्याख्यान किया जाता है। इस भारतदेश के बिहार प्रान्त में पावापुर नाम का नगर है। जो भगवान महावीर के निर्वाण कल्याणक से पवित्र है, उस पावापुर सिद्धक्षेत्र के सरोवर में अनेक सुगन्धित कमल खिले हुए हैं अतः वहाँ की सरस मनोहारी शोभा जनसमूह को मोहित कर देती है। उपर्युक्त इन विशेषणों से विशिष्ट पावापुर नगर में सरोवर के मध्य स्थित होकर तीर्थंकर वीरप्रभु ने मन वचन काय इन तीनों योगों का निरोद्द करके अपने कर्मवन को जला दिया था। यहाँ पर कर्मों को गहन वन की उपमा दी गई है जहाँ समस्त संसारी प्राणी निवास करते हैं उस कर्मवन को सन्मति भगवान ने अपनी ध्यान अग्नि के बल से दग्ध कर दिया। पुनः भगवान महावीर ने और क्या प्राप्त किया ? समस्त उपमाओं से रहित मुक्तिललना को प्राप्त किया। यहाँ मुक्ति को ललना कन्या की उपमा दी है उसी मुक्ति ललना को वीर भगवान् ने भलीभांति प्राप्त किया था। वह मुक्ति कन्या किन विशेषणों से संयुक्त है ? जो समस्त सांसारिक उपमाओं का उल्लंघन करके अनुपम रूप और गुण से संयुक्त है ऐसी मुक्तिललना को तीर्थंकर देव ने प्राप्त किया था। पुनः और क्या प्राप्त किया है वीरनाथ ने ? अनंतसुखधाम को प्राप्त किया है। जहाँ पर सुखों का कोई अन्त नहीं है वह अनंतसुखधाम कहलाता है अर्थात् पुद्गलकर्मरूपी वन को दग्ध करके उन्होंने अनंतसुख रूप सिद्धगति को प्राप्त किया था ऐसे उन वीर भगवान को मेरा नमोऽस्तु होवे। यहाँ भावार्थ यह है कि राजा सिद्धार्थ के अपत्य-पुत्र तीर्थंकर महावीर ने पावापुर सरोवर के मध्य में योगों का निरोध करके कार्तिक कृष्णा अमावस्या तिथि की उषा बेला में शेष अघाति कर्मों को नष्ट करके निर्वाणधाम प्राप्त कर लिया, उनके गुणों की प्राप्ति के लिए मैं तीर्थंकर महावीर को एवं निर्वाणभूमि को नमस्कार करता हूँ।
भावार्थ –आज से 2528 वर्ष पूर्व भगवान महावीर ने पावापुर नगरी से निर्वाण पद प्राप्त किया था और वर्तमान में वीरनिर्वाण संवत् 2529वाँ वर्ष चल रहा है। इस हुण्डावसर्पिणी के चतुर्थकाल को पूर्ण होने में जब तीन वर्ष साढ़े आठ मास शेष बचे थे उस समय महावीर स्वामी ने घाति-अघाति कर्मों का नाश करके मोक्षधाम प्राप्त कर लिया था। कार्तिक कृष्णा चतुर्दशी की अंधियारी रात और अमावस्या की प्रत्यूष बेला प्रातःकाल थी जब इन्द्र, देव, नर, नारियों से पावापुर नगरी खचाखच भरी हुई थी क्योंकि दो दिन पूर्व से ही महावीर स्वामी ने योग निरोध कर लिया था उनके निर्वाण की प्रतीक्षा कर रहे इन्द्रादिकों ने असंख्य दीपों से नगरी को जगमगा दिया। दिव्य रत्नदीपकों के प्रकाश में सभी ने निर्वाणकल्याणक की पूजा की तथा अग्निकुमार इन्द्रों ने आकर अपने मुकुटानल की अग्नि से भगवान के अंतिम शरीर का तीर्थंकर कुण्ड (चैकोर कुंड) में अग्नि संस्कार किया। तभी से दीपावली पर्व का शुभारम्भ हुआ। उसकी स्मृति में आज भी सारा संसार कार्तिक कृष्णा अमावस्या को प्रातःकाल अपने-अपने मंदिरों में, पावापुर नगरी में तथा अन्य सिद्ध क्षेत्र, तीर्थक्षेत्रों पर जाकर निर्वाणलाडू चढ़ाते हैं एवं सायंकाल दीपमालिका जलाकर यह उत्सव मनाते हैं। उसी अमावस्या की शाम को भगवान महावीर की दिव्यध्वनि को झेलने और आत्मसात करने वाले गौतम गणधर स्वामी ने केवलज्ञान लक्ष्मी प्राप्त कर ली, अतः इन्द्रों ने गंधकुटी की रचना कर दी तब लोगों ने गौतम स्वामी और केवलज्ञान लक्ष्मी की पूजन कर वृहत् रूप में दीपावली मनाई। भगवान् महावीर स्वामी को मोक्ष हुए 2528 वर्ष व्यतीत हो चुके हैं, उन्हीं की स्मृति में वीर निर्वाण संवत आरंभ हुआ है। वर्तमान के समस्त सन् और संवतों में वीर निर्वाण संवत् सर्वाधिक प्राचीन माना जाता है। अब पच्चीस सौ उन्तीसवाँ वर्ष चल रहा है आगे अट्ठारह हजार चार सौ बहत्तर वर्षों तक वीरप्रभु का शासन चलता रहेगा। पावापुरी में सरोवर के मध्य स्थित जल मंदिर ही भगवान महावीर की निर्वाणभूमि है।