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अयोध्या
विनयांजलि:
July 7, 2017
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ज्ञानमती माताजी
jambudweep
विनयांजलि:
बसंततिलका छंद
पुण्योदय: सुविशदो हि यदा धराया:, जाता धराऽविकलचन्द्रयुता तदा सा।
संस्कारिता सरलशुद्धविशुद्धभावै:, जीयाच्चिराय गणिनी जिनशासनार्या।।१।।
अष्टादशेऽल्पवयसि प्रतिमा: गृहिता:, श्रीवीरसागरगृहीतसुभव्यदीक्षा।
निर्दोषपालितमहाव्रतशासनाढ्या, जीयाच्चिराय गणिनी जिनशासनार्या।।२।।
पूजाविधानलिखिता विविधा सुशब्दै:, टीका: कृता: समुहतां स्वधिया समीक्ष्य।
संज्ञाऽनुसारविहितं बहुलेखकार्यं, जीयाच्चिराय गणिनी जिनशासनार्या।।३।।
निर्माणकार्यमतिसुन्दरवास्तुरूपं, प्राचीनमन्दिरगतं नवनूतनत्वम्।
निर्देशनेन रचित: प्रियमध्यलोक: जीयाच्चिराय गणिनी जिनशासनार्या।।४।।
वात्सल्यभावभरितं सदयं नु चित्तं, वाणी प्रिया मधुरशान्तहितान्विता च।
वृत्ति: क्षमादिगुणभूषितशंप्रधाना, जीयाच्चिराय गणिनी जिनशासनार्या।।५।।
अनुष्टुप्
पञ्चज्ञानात्मिकायै हि, पञ्चश्लोकात्मिकेयमो।
दीक्षास्वर्ण जयन्त्यां वै, अप्र्यते विनयाञ्जलि:।।
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