भगवान महावीर जन्मभूमि, जिसे हमने अपने होश संभालने के साथ ही कुण्डलपुर के रूप में पढ़ा था, जाना था, गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी द्वारा विकास की प्रेरणा दिये जाने के फलस्वरूप ही दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हुआ। वास्तव में यहाँ की प्राकृतिक छटा में भगवान महावीर के दिव्य परमाणु समाहित प्रतीत होते हैं, ऐसा अहसास यहाँ आने पर ही हुआ और अब चूँकि क्षेत्र विकास की दृष्टि से उपेक्षित रह गया था, पूज्य गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी ने नवनिर्माण की प्रेरणा देकर, कुण्डलपुर की लुप्त आभा को पुनर्जाrवित करने की संभावना को साकार कर दिया है। जैन समाज पूज्य माताजी को और उनके द्वारा तीर्थविकास की दृष्टि से किये गये कार्यों को चाहे हस्तिनापुर में हो, चाहे भगवान ऋषभदेव की तपोभूमि प्रयाग-इलाहाबाद में हो, चाहे अयोध्या और मांगीतुंगी में हो, युगों-युगों तक याद रखेगा। यहाँ पर ध्यान रखने योग्य बात यह है कि पूज्य माताजी ने नये तीर्थ न बनाकर तीर्थंकरों की जन्मभूमि या उनके चरण रज से पवित्र स्थलों को ही विकसित करने की प्रेरणा दी। भगवान महावीर का जीवन तो हर विवाद का समाधान रहा है। मैं उन लोगों से कहना चाहता हूँ कि जन्मभूमि को विवादित न करें। जो अपने समय के ज्ञानी और विद्वान थे, जिन्होंने स्पष्टरूप में कुण्डलपुर को प्रमाणिक तौर पर जन्मभूमि मानते हुए उक्त पंक्तियाँ भगवान महावीर की पूजा में दीं (कुण्डलपुर कनवरना) तो क्या आप उक्त पंक्तियाँ बदलेंगे या पूजा करना छोड़ देंगे। बदलाव तो संभव नहीं है। आपकी पूजा छूट जायेगी, बेवजह अशुभ कर्म संचय से बचें, सुबह के भूले की तरह घर वापिसी करें। एक बार यहाँ आकर मस्तक अवश्य झुकाएँ, इनका नाम सन्मति है, मुनियों की शंका दूर हो सकती है तो आपकी शंका अवश्य ही दूर हो जायेगी। पूज्य माताजी के व्यक्तित्व में तो विराट चिंतन की झलक दिखाई देती है, उनके बारे में तो सोच-सोच कर मन यही कह उठता है कि-
जिनकी वाणी से समयसार को निकलते देखा-२ जिसने भी श्रद्धा से रखा चरणों में सर, अपनी तकदीर को बदलते देखा।
पूज्य माताजी की कृपा से मुझे संपूर्ण भारत में सर्वतोभद्र, इन्द्रध्वज आदि विधानों को सातिशयरूप में संपन्न कराने का अवसर मिला है। मैं पूज्य माताजी का उपकार मानता हूँ जो आदर्शों की बात सिर्पक कहती नहीं हैं, उनका तो जीवन ही आदर्शों की कथा कह रहा है। बरबस ये पंक्तियाँ मस्तिष्क में आ जाती हैं-
दीपक की भांति जलता है कोई-कोई, फलों की भाँति फलता है कोई-कोई। आदर्शों की बात सब लोग किया करते हैं, आदर्शों के मार्ग पर चलता है कोई-कोई।।
अंत में मैं पूज्य चंदनामती माताजी, पूज्य पीठाधीश क्षुल्लक श्री मोतीसागर जी महाराज, कर्मठ कर्मयोगी श्री भाई जी के चरणों में यथायोग्य विनय ज्ञापित करते हुए, जो कि कुण्डलपुर के नवनिर्माण में किसी भी रूप में सहायक हुए हैं उन्हें शुभकामनाएं देते हुए कहना चाहता हूँ कि-
जय जिनेन्द्र की ध्वनि से जब तक, देवालय गूंजेंगे, जब तक चंदन तिलक लगा, जिन जिनवर को पूजेंगे, जब तक जिनगृह की शिखरों पर, केशरिया फहरेगा, तब तक प्रियवर नाम तुम्हारा, जग में बना रहेगा।
कुण्डलपुर की कीर्ति दिग्दिगन्तव्यापी हो, भक्तों के कल्याण में सहायक हो, यही मंगलकामना है।