स्वस्तिश्री कर्मयोगी पीठाधीश रवीन्द्रकीर्ति स्वामी जी
का अंतरंग एवं बहिरंग परिचय
समाज में सामान्य श्रावकों की संख्या एवं भूमिका अवश्य ही समाज के विकास के लिए लाभदायक सिद्ध होती है। लेकिन कुछ अद्भुत प्रतिभासम्पन्न विरले महामनाओं की खोज की जावे, तो समाज में ऐसे पुरुष जिन्हें महापुरुष की संज्ञा दी जा सकती है, वे बहुत कम संख्या में ही मिलते हैं। यह बात भी निश्चित है कि हर काल एवं समय में समाज, धर्म एवं संस्कृति के उत्थान हेतु ऐसे महानुभावों का अस्तित्व अवश्य ही देखने को मिलता है। इसी श्रृँखला में इस वर्तमानकालीन युग को भी अनेक विभूतियाँ प्राप्त हुईं और इस बीसवीं-इक्कीसवीं शताब्दी में भी अनेक निष्काम सेवा के धनी महानुभावों ने समाज की सेवा करके इसका विकास किया। इस श्रृंखला में बीसवीं सदी के प्रथमाचार्य चारित्रचक्रवर्ती श्री शांतिसागर जी महाराज का महान व्यक्तित्व एवं कृतित्व इस समाज द्वारा कभी विस्मृत नहीं किया जा सकता है क्योंकि उन्होंने जैन संस्कृति के संरक्षण में जो अवदान दिये हैं, वे सदा अतुल्य ही रहेंगे। आगे इसी परम्परा के चमकते सितारे के रूप में हमें पूज्य गणिनीप्रमुख आर्यिकाशिरोमणि श्री ज्ञानमती माताजी का वरदहस्त प्राप्त हुआ और उनके द्वारा वर्तमान में की गई धर्मप्रभावना एवं संस्कृति संरक्षण के कार्य समाज के समक्ष उपस्थित हैं। ऐसी पूज्य माताजी के उपकारों से भी यह समाज कभी उऋण नहीं हो सकता। और भी धर्म के प्रति विभिन्न समर्पित व्यक्तित्वों ने अपना समाज विकास हेतु योगदान दिया, उनमें एक हैं स्वस्तिश्री कर्मयोगी पीठाधीश रवीन्द्रकीर्ति स्वामी जी।
अंतरंग परिचय
(१) कुशाग्र बुद्धि
लखनऊ विश्वविद्यालय से बी.ए. तक की शिक्षा प्राप्त करने वाले रवीन्द्रकीर्ति स्वामी जी की कुशाग्रता प्रारंभ से ही अति विशेष रही और उन्होंने चंद दिनों के लिए ही गृह व्यवसाय को भी बहुत कुशलता के साथ संभाला। पुन: वैराग्य भाव धारणकर गृहबंधन को छोड़कर पूज्य गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी को अपना गुरु बनाया। वैराग्य पथ पर भी आपकी कुशाग्र बुद्धि ने प्रत्येक कार्य को उचित समय में उचित निर्णय प्रदान करके प्रगति की दिशा दिखलाई और आपने अपने प्रत्येक लक्ष्य में सफलता प्राप्त की। आपका चिंतन अत्यधिक सूक्ष्मता के साथ किसी भी विषय की गहराई को त्वरित छू लेता है और उसके परिणाम को जानते हुए आप अपने निर्णय को सही दिशा में ले जाकर स्वयं सफल होते हैं और अन्यों के लिए भी मार्गदर्शक बन जाते हैं। कार्यक्षेत्र के अलावा जैनधर्म का विशेष ज्ञान, हिन्दी-संस्कृत व अंग्रेजी भाषा पर अधिकार तथा विभिन्न सामाजिक-राजनैतिक आदि विषयों की गहन जानकारी भी आपकी कुशाग्र बुद्धि के ही परिणाम हैं।
(२) सौम्य प्रकृति
प्रत्येक परिस्थिति को मुस्कराते हुए संभालना या सहन करना आपके व्यक्तित्व का विशेष गुण है। संस्थान के संचालन में कर्मचारी संबंधी कोई समस्या हो, किसी कार्यक्रम को करते वक्त एकाएक आने वाली कोई समस्या हो या अन्य कोई भी विचार-विमर्श आदि में मतभिन्नता होवे, किसी भी परिस्थिति का समाधान आप हंसते-मुस्कराते हुए धैर्यतापूर्वक करते हैं।
(३) दूरदृष्टि
किसी भी लक्ष्य की सिद्धी के लिए कितने परिश्रम की आवश्यकता है एवं उसकी सफलता में किन योजनाओं को बनाये जाने पर सफलता प्राप्त हो सकती है, इस बात का दूरगामी दृष्टिकोण आपके मस्तिष्क की अनुपम शक्ति को प्रदर्शित करता है। तीर्थ विकास हेतु चाहे मंदिर निर्माण का कार्य हो, धर्मशाला आदि का निर्माण हो या अन्य कोई विशेष रचना को निर्मित करना हो, किसी भी कार्य में आपका दूरदृष्टि से युक्त चिंतन सुव्यवस्थित, सुनियोजित, आकर्षक एवं अनूठे अंदाज का होता है। इसी प्रकार किसी भी राष्ट्रीय अथवा अंतर्राष्ट्रीय स्तर के कार्यक्रमों को अल्प समय के अंतराल में भी आयोजित करने हेतु आपका सुदृढ़ दृष्टिकोण एवं आत्मविश्वास कभी डगमगाता नहीं है। समस्त मूलभूत आवश्यकताओं पर आपकी दृष्टि अत्यन्त पैनी रहती है और कोई भी विषय ऐसा नहीं बचता, जिसके कारण उस कार्यक्रम की सफलता में कोई संदेह हो सके।
(४) वास्तु, शिल्प, इंजीनियरिंग, आर्कीटेक्चर एवं मूर्तिकला आदि निर्माण योजनाओं के वृहद् अनुभवी
कहा जाता है कि किसी अन्य व्यक्ति से कार्य लेने हेतु उस कार्य के संदर्भ में स्वयं भी ज्ञान व जानकारी होना परम आवश्यक होता है। स्वामी जी का व्यक्तित्व ऐसा ही है, उन्होंने लौकिक अध्ययन के उपरांत अपने समक्ष आये किसी भी विषय को इतना समर्पण भाव के साथ जानने, समझने व करने का प्रयास किया कि वर्तमान में आपका व्यक्तित्व आद्योपांत विभिन्न विद्याओं से सुसज्जित हो चुका है। आप निर्माण के क्षेत्र में वास्तु विद्या, शिल्पकला, इंजीनियरिंग, आर्कीटेक्चर, मूर्तिकला आदि विषयों के इतने पारखी हो चुके हैं कि विशेषज्ञों के साथ आपका परामर्श सटीक बैठता है।
(५) धन का समुचित सदुपयोग
किसी भी योजना हेतु श्रद्धालु भक्तों के दिये गये दान का सदुपयोग स्वामी जी द्वारा इतनी किफायत के साथ किया जाता है कि दान देने वाले प्रत्येक महानुभाव का एक रुपया कार्य की सिद्धी पर सवा रुपये के रूप में प्रतिफलित होता है। स्वामी जी का यह गुण श्रावक समाज को अत्यन्त लुभाता है, जिसके कारण उनके द्वारा किसी भी योजना हेतु की गई दान की अपील को समाज सरमाथे रखकर उसकी सफलता हेतु पूर्ण आत्म विश्वास के साथ अपना सहयोग प्रदान करती है। विशेषता यह है कि जिस योजना अथवा संस्था के लिए भक्तजन दान देते हैं, उनके दिये दान का उपयोग उसी योजना एवं उसी संस्था के लिए स्वामी जी द्वारा किया जाता है। स्वामी जी द्वारा व्यवस्थित कराये गये समस्त संस्थाओं के खातों की व्यवस्था स्पष्ट नीति के साथ सदैव पृथक्-पृथक् दर्पणवत् देखी जा सकती है।
(६) सुनियोजित अर्थ व्यवस्था के विशेष अनुभवी
किसी भी कार्य को सफल करने हेतु उचित प्रबंधन के साथ-साथ उचित अर्थ व्यवस्था की प्रभावी नीति बनाना यह भी आपके व्यक्तित्व का अत्यन्त विशेष गुण है। इसका एक अत्यन्त महत्वपूर्ण उदाहरण भगवान महावीर स्वामी की जन्मभूमि कुण्डलपुर में देखने को मिला। जब बिहार सरकार के मुख्यमंत्री माननीय श्री नितीश कुमार जी का आगमन साक्षात् तीर्थभूमि पर हुआ और उन्होंने स्वामी जी से सहज ही यह प्रश्न किया कि आपकी कितनी धनराशि एवं कितना समय इस तीर्थ निर्माण हेतु लगा है, तब स्वामी जी द्वारा तीर्थ निर्माण की कुल लगी धनराशि दो से ढ़ाई करोड़ तथा समय जमीन खरीदने से लेकर तीर्थ का सम्पूर्ण निर्माण करने तक २२ माह बताते ही मुख्यमंत्री महोदय के मुख से यह शब्द निकले कि यदि यह कार्य सरकार द्वारा किया जाता, तो इसमें काफी राशि खर्च होती और समय भी अधिक ही लगता। माननीय मुख्यमंत्री जी के मुख से यह बात निकलना निश्चित ही स्वामी जी की सुनियोजित एवं प्रभावी अर्थ नीति के गुण को प्रकट करता है। इस प्रकार स्वामी जी द्वारा मंदिर निर्माण, मूर्ति निर्माण, धर्मशाला निर्माण, साहित्य प्रकाशन या छोटे-बड़े समारोह-महोत्सव आदि किसी के लिए भी बनाये गये बजट को देखकर अनेक अनुभवी लोग आश्चर्यचकित हो जाते हैं। लेकिन प्रत्येक कार्य स्वामी जी द्वारा बनाये गये बजट में पूर्ण शालीनता, ठाठबाट एवं गरिमा के साथ सम्पन्न होते हैं।
(७) सफल योजना शिल्पी
स्वामी जी के निर्देशन में आज भारतवर्ष में अनेक संस्थाओं का संचालन हो रहा है और सभी संस्थाएँ कुशलतापूर्वक समाज के सहयोग से संचालित हो रही हैं। किस तीर्थ पर किस योजना के अनुरूप विभिन्न गतिविधियों को संचालित करना यह स्वामी जी के विशेष रुचि का विषय रहता है। अत्यन्त विश्वासपूर्वक आपके मन में सोची-समझी बातें और विशेषकर दान योजनाओं की राशि का आंकड़ा भगवान के आशीर्वाद से विशेष सफलता को प्राप्त करता है। अपने इस योजना शिल्प की महत्वपूर्ण गुणवत्ता के कारण आपके प्रमुख नेतृत्व में जम्बूद्वीप-हस्तिनापुर, प्रयाग-इलाहाबाद, कुण्डलपुर (नालंदा), अयोध्या (फैजाबाद), काकंदी (देवरिया) उ.प्र., मांगीतुंगी में निर्माणाधीन भगवान ऋषभदेव १०८ फुट उत्तुंग मूर्ति निर्माण कार्य, गणिनी ज्ञानमती दीक्षा तीर्थ माधोराजपुरा, निर्माणाधीन ज्ञानतीर्थ-शिर्डी (महा.) आदि तीर्थ सफलतापूर्वक विकास के शिखर को छू रहे हैं एवं प्रत्येक तीर्थ पर दर्शनार्थियों को देश की अनूठी रचनाओं के दर्शन होते हैं।
(८) संगठन समायोजन की अद्भुत कला
प्रत्येक व्यक्ति की विचारधाराएं अलग-अलग होती हैं, यह बात हम सभी जानते हैं। लेकिन कोई भी संगठन ऐसे अनेक व्यक्तियों से मिलकर ही बनता है। अत: किसी भी संगठन को सुचारू संचालित करने हेतु एक ऐसे योग्य समाज-नेता की आवश्यकता होती है, जिसके अंदर समस्त अलग-अलग विचारधाराओं के लोगों को समायोजित करने की अद्भुत कला विद्यमान है। और यह गुण हमें पूर्ण परिपक्वता के साथ स्वामी रवीन्द्रकीर्ति जी में देखने को मिलता है। अनेक संस्थाओं को संचालित करने में विभिन्न विचार धाराओं वाले भक्तों को, सामाजिक कार्यकर्ताओं को तथा संस्था के कर्मचारियों को किस प्रकार एक संगठन में बांधकर रखना, इस बात की युक्ति स्वामी जी के मन-मस्तिष्क का सबसे बड़ा गुण कहा जा सकता है। उनके द्वारा संगठन में बंधे होने से प्रत्येक व्यक्ति का लक्ष्य स्वामी जी का लक्ष्य होता है और स्वामी जी की कार्यक्षमता कई गुना बढ़कर कार्य को सफलता प्रदान कराती है।
(९) नि:स्वार्थ एवं निष्काम सेवा के धनी
रवीन्द्रकीर्ति स्वामी जी ने अपना सम्पूर्ण जीवन नि:संदेह ही देव-शास्त्र एवं गुरु की सेवा में पूर्णरूपेण समर्पित किया है। युवावस्था में ही वे गृहविरत हो गये और उन्होंने अपनी गुरु गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी का सान्निध्य पाकर अपने जीवन को धर्म के लिए समर्पित कर देने का निर्णय लिया। पुन: क्रम-क्रम से उन्होंने अपने गुरु आदेश का पालन करते हुए अपनी समस्त चर्याओं में निपुण रहकर सदा ही धर्म एवं समाज की नि:स्वार्थ एवं निष्काम सेवा की है। वर्तमान में जितनी भी संस्थाएँ आपके अनुशासन में संचालित हो रही हैं, हर संस्था का बैंक एकाउण्ट उन-उन संस्थाओं के नाम से है और सभी का लेखा-जोखा स्पष्टता के साथ सुचारू किया जाता है। स्वामी जी सदैव संस्था संचालन के प्रत्येक कार्य अपनी कमेटी के समस्त पदाधिकारियों की जानकारी में करते हैं तथा बैंक खातों के संचालन भी नियमानुसार किन्हीं तीन नियुक्त पदाधिकारियों में से दो के हस्ताक्षर से ही होते हैं। समय-समय पर सभी संस्थाओं की बैठव आयोजित करना और कार्य प्रगति अथवा अवरोध की हर जानकारी पूरी कमेटी को प्रदान करना, उनके सुझावों को लेना एवं आगे की योजनाओं को बताकर सभी से सहयोग की अपेक्षा करना यह आपके सौहार्द एवं उचित नियम पालन का महत्वपूर्ण सूचक है, जो सभी के लिए प्रेरणास्पद बनता है। व्यक्तिगत लाभ, प्रतिष्ठा अथवा कीर्ति के लिए कभी स्वामी जी के मन को तनिक विचार भी छू न सका और सदैव उन्होंने संस्था की, समाज की एवं गुरु संघ की सेवा का लक्ष्य बनाकर समाज के बीच आदर्श प्रस्तुत किया है।
(१०) त्वरित गणितीय आकलन में दक्षता
स्वामी जी की बुद्धि अत्यन्त तीव्र है, इस बात को उनके द्वारा बातों-बातों में किये जाने वाले त्वरित गणितीय आकलन को देखकर महसूस किया जा सकता है। जमीन का माप हो, पाण्डाल या हॉल की बैठक क्षमता हो, बिल्डिंग मटेरियल का आकलन हो, वर्ग हो, घन हो, व्यास हो, परिधि हो, किसी ठोस पदार्थ का वजन हो, गोले का क्षेत्रफल हो, त्रिज्या हो अथवा किन्हीं भी राशियों का गुणनफल, भागफल या जोड़-घटाव हो, किसी भी प्रकार के गणितीय आकलन में आपकी कुशाग्र एवं त्वरित बुद्धि आपके अनूठे व्यक्तित्व को प्रदर्शित करती है।
(११) साहसिक व्यक्तित्व
स्वामी रवीन्द्रकीर्ति जी का व्यक्तित्व धार्मिक एवं सेवाभावी होने के साथ ही अत्यन्त साहसिक भी है। किसी भी कार्य में किसी भी प्रकार का अवरोध चाहे शासन से, प्रशासन से, समाज से अथवा परम्परा भेद से प्राप्त होने पर वे सदा सत्य और अपनी आगम मान्यता व परम्परा के लिए अडिग रहते हैं। कभी भी समाज, धर्म आदि की विभिन्न गतिविधियों में किसी विरोध का सामना करने में उनका साहस डगमगाया नहीं और उन्होंने सदा प्रतिकूल परिस्थिति को अपने अनुकूल बनाकर सफलता प्राप्त की। इसके साथ ही किसी भी अनुकूल परिस्थितिपूर्वक किसी भी भारी भरकम कार्य का बोझ भी वे इतनी सहजता के साथ उठा लेते हैं, जिसके वजन का अंदाज भी साथ चलने वालों को नहीं होता है। इसका सहज उदाहरण हो सकता है-स्वामी जी के कंधों पर मौजूद मांगीतुंगी में बन रही विश्व की सबसे ऊँची १०८ फुट उत्तुंग भगवान ऋषभदेव प्रतिमा निर्माण का बीड़ा। साथ ही हस्तिनापुर में जम्बूद्वीप स्थल पर उकेरी जाकर प्रतिष्ठित हो चुकी ३१-३१ फुट उत्तुंग भगवान शांति-कुंथु-अरहनाथ की तीन-तीन विशाल प्रतिमाएँ भी इसी साहसिक व्यक्तित्व की एक झलक है।
(१२) त्वरित निर्णय की क्षमता
किसी भी आपातकालीन स्थिति से शीघ्र उभरने के लिए शासक-प्रशासक या किसी क्षेत्र के नेतृत्व में त्वरित निर्णय की उच्च क्षमता होना अत्यन्त आवश्यक होती है। यह गुण स्वामी जी के व्यक्तित्व में भी परिपुष्टता के साथ देखने को मिलता है। किसी भी अव्यवस्था अथवा अचानक बनती प्रतिकूल परिस्थिति को स्वामी जी जिस प्रकार शांत एवं संतुलित हृदयगति के साथ समाधान की दिशा में लाते हैं, वह गुण किसी भी ऊँची सीढ़ी चढ़ने वाले व्यक्ति के लिए प्रेरणास्पद बन जाता है। प्रतिकूल ही नहीं अपितु किसी भी अनुकूल परिस्थितियों में भी आपके त्वरित निर्णय सोने का हार बनकर किसी भी कार्य को सफलता के सोपान चढ़ा देते हैं।
(१३) प्रबंधन कला की अद्भुत प्रतिभा
सामान्य रूप से किसी कार्य का बीड़ा उठाना और उसको सुनियोजित ढंग से सुचारू कर देना, यह तो कोई भी व्यक्ति विशेष कर सकता है लेकिन एक समय में अनेक कार्य का सूत्रपात करना और प्रत्येक कार्य की कार्ययोजना को सही समय पर सही गति प्राप्त होती रहना, प्रबंधन की यह कला स्वामी जी के व्यक्तित्व में सदा व्याप्त रहती है। यही कारण है कि वे हस्तिनापुर, कुण्डलपुर, प्रयाग, मांगीतुंगी, काकंदी, अयोध्या, माधोराजपुरा आदि तीर्थ-संस्थाओं की विभिन्न योजनाओं को एक ही समय में, एक ही स्थान पर बैठे-बैठे सरलता के साथ संचालित करते रहते हैं। आपके निर्देशन में इन सभी तीर्थों की प्रसिद्धि, आकर्षण, सौंदर्य एवं व्यवस्थाएँ देश के श्रद्धालु भक्तों द्वारा सदा ही प्रशंसा की पात्र रही हैं।
(१४) फुर्तीले कदम
किसी भी कार्य को करने हेतु जिस प्रकार स्वामी जी का चुस्त दिमाग सदा कार्य करता है, ठीक उसी प्रकार वे अपने सन्तुलित शारीरिक डील-डौल के साथ सदा स्फुरायमान नजर आते हैं। उनके द्वारा अपने शरीर को खींचकर तेज कदम से चलना किसी विशेष व्यक्तित्व की परछाईं प्रदर्शित करता है। दाएं-बाएं करते उनके कदमों से कदम मिलाकर चलना नवजवानों के लिए भी टेड़ी खीर के समान नजर आता है। योगासन, व्यायाम तथा संतुलित आहार के साथ अपने दिल-दिमाग व शरीर को चुस्त-दुरुस्त रखने वाले स्वामी जी का यह शारीरिक अभ्यास भी उनके व्यक्तित्व की अभिवृद्धि एवं विशेषता में चार-चांद लगा देता है।
(१५) समय के प्रति ईमानदारी और बेमानी का गुण
स्वामी जी ने सदैव समय को बेशकीमती मानकर उसकी अत्यधिक कीमत की है। वे सदैव घड़ी के कांटे से अपनी दिनचर्या प्रारंभ करते हैं लेकिन कार्य करते वक्त वे कभी घड़ी देखते भी नहीं हैं। ठीक समय पर कार्य का शुभारंभ करने हेतु घड़ी का कांटा देखना और फिर जब तक सोचा गया कार्य पूर्ण न हो जावे, तब तक पुन: घड़ी को देखना भी नहीं, समय के प्रति आपकी यह ईमानदारी और बेमानी का गुण औरों के लिए विशेष प्रेरणादायी बन जाता है।
(१६) मिलनसारिता एवं वात्सल्य
आने वाले प्रत्येक परिचित-अपरिचित तथा विशेष व सामान्य श्रद्धालु भक्तों के प्रति सदा पुलकितमना रहने वाले स्वामी जी का हृदय सदा वात्सल्य गुण से ओतप्रोत रहता है। आपके समीप आकर मिलने वाला प्रत्येक व्यक्ति श्रेष्ठी हो या सेवक हो, सन्तुष्ट होकर ही वापस लौटता है। आपके अंतर्मन में आने वाले व्यक्ति के मनोभावों को पढ़ने की अद्भुत कला है और आप उसी के अनुरूप प्रत्येक व्यक्ति को अपने समीप बैठाकर उसकी आवश्यकता व समस्या का समाधान तुरंत कर देते हैं। आपके इस विशाल हृदय में समाज के हर वर्ग, परम्परा व मान्यता वाले लोगों के प्रति भी मिलनसारिता का गुण सदैव प्रवाहित होता रहता है और आप सभी को अपने गले लगाकर समकक्ष स्थान देने में तत्पर रहते हैं।
(१७) निरभिमानता
स्वामी जी का व्यक्तित्व अथवा उनकी गरिमा कितनी भी ऊँचाइयों को स्पर्शित करती हो, लेकिन उनके मन में सदैव निश्छल, नि:स्वार्थ एवं जमीन को छूती भावनाएँ व्याप्त रहती हैं। इतने व्यापक सामाजिक हिस्से पर आपका अधिकार होते हुए भी आपके मन में कभी अभिमान की परछाई तक देखने को नहीं मिलती है। आपके जीवन की हर चर्या जमीन से जुड़कर चलती है लेकिन आपका व्यक्तित्व एवं चिंतन सदा आकाश की ऊँचाईयों से महिमामंडित होता है।
बहिरंग परिचय
(१) जन्म-आपका जन्म ज्येष्ठ शुक्ला पंचमी (श्रुतपंचमी) को सन् १९५० में हुआ।
(६)भाई बहन-बहनें-कु. मैना जैन (वर्तमान-गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी) -कु. मनोवती जैन (वर्तमान-आर्यिका श्री अभयमती माताजी) -कु. माधुरी जैन (वर्तमान-आर्यिका श्री चंदनामती माताजी) -श्रीमती शांति देवी जैन ध.प. श्री राजकुमार जैन, डालीगंज, लखनऊ (उ.प्र.) – श्रीमती जैन ध.प. स्व.श्री प्रेमचंद जैन, बहराइच (उ.प्र.) -श्रीमती कुमुदिनी जैन ध.प. स्व.श्री प्रकाशचंद जैन, कानपुर (उ.प्र.) -श्रीमती मालती जैन ध.प. श्री यशवीर जैन, मोरीगेट-दिल्ली -श्रीमती कामिनी जैन ध.प स्व. श्री जयप्रकाश जैन, दरियाबाद (उ.प्र.) -श्रीमती त्रिशला जैन ध.प. श्री चन्द्रप्रकाश जैन, नाका हिण्डोला, लखनऊ (उ.प्र.)
भाई-–श्री कैलाशचंद जैन सर्राफ, लखनऊ (उ.प्र.) -स्व. श्री प्रकाशचंद जैन, टिकैतनगर (उ.प्र.) -श्री सुभाषचंद जैन सर्राफ, लखनऊ-टिकैतनगर (उ.प्र.)
(७) त्याग की प्रेरणा – सन् १९६८ में पूज्य गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी द्वारा २ वर्ष का ब्रह्मचर्य व्रत
(९) सप्तम प्रतिमा के व्रत एवं गृह त्याग – सन् १९८७ में पूज्य गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी द्वारा
(१०) दशम प्रतिमा एवं पीठाधीश पदारोहण के संस्कार – मगसिर कृष्णा दशमी, २० नवम्बर २०११, पूज्य गणिनीप्रमुख आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी द्वारा
(११) उपाधि अलंकरण- ‘कर्मयोगी’ (सन् १९९२ में अ.भा. दि. जैन शास्त्री परिषद द्वारा) – ‘धर्मसंरक्षणाचार्य’ (सन् १९९६ में मांगीतुंगी-महा. में पंचकल्याणक के अवसर पर वीर सेवा दल द्वारा) – ‘संस्कृति संरक्षक’ (सन् २००६ में भट्टारकवृंद द्वारा) – ‘धर्मालंकार’ (सन् १९९६, मांगीतुंगी में) – ‘संस्कृति सार्थवाह’ (१२ जून २०१०, जम्बूद्वीप- हस्तिनापुर में आयोजित ज्ञान ज्योति विद्वत् प्रशिक्षण शिविर के समापन अवसर पर समस्त विद्वत्जनों द्वारा) – ‘तीर्थोद्धारक’ (३० नवम्बर २०११, औरंगाबाद-महा. में समस्त दिगम्बर जैन समाज औरंगाबाद एवं गणिनी ज्ञानमती भक्तमण्डल महाराष्ट्र द्वारा पीठाधीश पदारोहण के उपरांत आयोजित स्वामी जी के सम्मान समारोह में प्रदत्त)” जगतगुरु” आचार्य प्रज्ञसागर महाराजजी द्वारा -द्वारिका दिल्ली में |
(१२) विदेश यात्रा-भगवान ऋषभदेव अंतर्राष्ट्रीय निर्वाण महामहोत्सव वर्ष के अन्तर्गत सन् २००० में न्यूयार्क-अमेरिका में आयोजित ‘विश्वशांति शिखर सम्मेलन’ में जैन धर्माचार्य के रूप में विशेष सहभागिता
(१३)साहित्यिक अवदान-विगत ३८ वर्षों से संस्थान द्वारा प्रकाशित की जाने वाली सम्यग्ज्ञान मासिक पत्रिका का सम्पादन। -वीर ज्ञानोदय ग्रंथमाला द्वारा प्रकाशित होने वाले पूज्य माताजी द्वारा लिखित ग्रंथों का सम्पादन कर प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में छपवाकर विशेष धर्मप्रचार में महत्वपूर्ण सहयोग।
(१४) विशेष सौभाग्य-आपको पूज्य गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी जैसी जैन समाज की सर्वोच्च साध्वी के लघु भ्राता होने का सौभाग्य प्राप्त है। साथ ही आपकी अन्य दो बहनें भी उपरोक्तानुसार आर्यिका व्रतों का अनुपालन करते हुए आत्मकल्याण एवं धर्मप्रभावना के कार्य कर रही हैं। इसके साथ ही सबसे महान सौभाग्य यह है कि आपकी जन्म प्रदात्री माँ ने भी तेरह संतानों का लालन-पालन करने के उपरांत स्वयं आर्यिका दीक्षा धारण की और अपने मानव जीवन को सफल किया, ऐसी पूज्य महान आत्माओं के साथ आपका गृहस्थ संबंध होना अत्यन्त विशेष सौभाग्य एवं पुण्य का विषय है।