(अध्यक्ष-भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी)
पूज्य गणिनीप्रमुख आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी के चरणों में मेरा शत-शत नमन। तीर्थ क्षेत्र के संरक्षण, संवर्धन हेतु पूज्य माताजी ने अपना दूरदृष्टिकोण रखते हुए जम्बूद्वीप तीर्थ पर सन् १९८७ में पीठाधीश पद की स्थापना की और यह संविधान पारित हुआ, कि जम्बूद्वीप तीर्थ के संरक्षण, विकास और संचालन हेतु सदा एक त्यागीव्रती, गृहविरत व्यक्तित्व को पीठाधीश मनोनीत कर तीर्थ की कमान सौंपी जायेगी। पूज्य माताजी का यह चिंतन अत्यन्त प्रशंसनीय एवं वर्तमान परिस्थिति के लिए प्रासंगिक है। क्योंकि संस्कृति के संरक्षण और उसके उत्थान के लिए आज ऐसे कर्मठ और समर्पित लोगों की समाज में आवश्यकता है, जिनके विश्वास पर धर्म की प्रभावना और तीर्थ का संचालन सुव्यवस्थित एवं सदा विकासशील बना रहे। जम्बूद्वीप के प्रथम पीठाधीश क्षुल्लक श्री मोतीसागर जी महाराज रहे और उन्होंने अपने साधु जीवन के समस्त कर्तव्यों का पूर्ण पालन करते हुए उस संस्थान के प्रति यथायोग्य सेवा करके तीर्थ के संरक्षण और विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। साथ ही सम्पूर्ण समाज को भी उनका महत्वपूर्ण मार्गदर्शन और निर्देशन सदा प्राप्त हुआ। पुन: उनके पश्चात् पूज्य माताजी ने ब्र. रवीन्द्र कुमार जी को पीठाधीश पद पर मनोनीत करके उन्हें स्वस्तिश्री रवीन्द्रकीर्ति स्वामी जी नाम प्रदान किया। वैसे तो रवीन्द्र कुमार जी ने अपना समग्र जीवन ही गुरु, धर्म और संस्कृति की सेवा के लिए समर्पित किया है लेकिन मुझे पूर्ण विश्वास है कि अब पीठाधीश के रूप में उनकी प्रतिभाशक्ति, तेज बल और यशोगाथा अत्यन्त वृद्धि को प्राप्त करेगी और भारत वर्ष की सम्पूर्ण दिगम्बर जैन समाज उनकी प्रतिभा एवं अनुभवों का लाभ लेकर नई दिशा प्राप्त करेगी। स्वामी रवीन्द्रकीर्ति जी के पीठाधीश पदारोहण पर मैं भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी की ओर से उनके चरणों में अभिवंदना करते हुए उनके दीर्घ, स्वस्थ एवं यशस्वी जीवन की मंगलकामनाएँ करता हूँ।