तर्ज-चल दिया छोड़…………
सब अथिर जान संसार, तजा घर बार, ऋषभप्रभु स्वामी।
फिर नहीं किसी की मानी। पहले तो ब्याह रचाया था,
सबको सब कुछ सिखलाया था।
राजाओं ने भी राजनीति तब जानी- फिर नहीं किसी की मानी।।1।।
इक दिन नीलांजना नृत्य हुआ, प्रभु का मन पूर्ण विरक्त हुआ।
दे पुत्र भरत को राज्य बने वे ज्ञानी- फिर नहीं किसी की मानी।।2।।
प्रभु नगरि अयोध्या छोड़ चले, पहुँचे प्रयाग के उपवन में।
हुई केशलोंच से उनकी शुरू कहानी, फिर नहीं किसी की मानी।।
फिर नहीं किसी की मानी।।3।।
वटवृक्ष तले ध्यानस्थ हुए, केवलज्ञानी भी यहीं हुए।
‘‘चन्दनामती’’ यह तीर्थ उन्हीं की निशानी, फिर नहीं किसी की मानी।।
फिर नहीं किसी की मानी।।4।।