श्री ऋषभदेव के शासन में, आर्यिका मात अगणित मानी।
उनके चरणों में नित्य नमूँ, ये संयतिका पूज्य मानी।।
इनकी स्तुति पूजा करके, हम त्याग धर्म को भजते हैं।
संसार जलधि से तिरने को, आर्यिका मात को नमते हैं।।३।।
चौबीस तीर्थंकर के समवसरण की आर्यिकाओं की वंदना
पचास लाख छप्पन सहस, दो सौ तथा पचास।
समवसरण की साध्वियां, और अन्य भी खास।।
अट्ठाइसों मूलगुण, उत्तर गुण बहुतेक।
धारें सबहीं आर्यिका, नमूँ नमूँ शिर टेक।।१।।
जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में, चतुर्थ काल से लेकर भी।
इस पंचमकाल के अंतिम तक, सर्वश्री संयतिका होंगी।।
ब्राह्मी माता से सर्वश्री, माता तक जितनी संयतिका।
जो हुईं हो रहीं होवेंगी, मैं नमूँ भक्ति भवदधि नौका।।२।।