रत्नमय दीप ले, भर के भक्ती हृदय ,
द्वार आये तुम्बरू यक्ष की महिमा गायें ||
जैनशासन के हैं पांचवें प्रभु ,जिनने जीता है मोह रिपू को |
उनके हो यक्ष तुम , आये तेरी शरण , सर झुकाएं ||
तुम्बरू ० ||
पुरुषदत्ता हैं यक्षी कहाईं , उनकी कीरत जगत ने गाई |
देव सम्यक् दरश , छवि मनोरम सरस , तुमको ध्याएं ||
तुम्बरू ० ||
हर मनोकामना पूर्ण होती , जो करें जैनशासन में प्रीती |
सारे कष्ट हरें , संकट दूर करें ,सब कुछ पायें ||
तुम्बरू ० ||
पूरो बस एक वांछा हमारी , लागे जिनधर्म में लौ हमारी |
”इंदु ” है भाव मन, काटूं मैं भी करम , दुःख नशाएं ||
तुम्बरू ० ||