वंदना मैं करूँ पावापुरी तीर्थ की, जो है निर्वाणभूमी महावीर की।।
अर्चना मैं करूँ पावापुरी तीर्थ की, जो है कैवल्यभूमी गणाधीश की।।
जैनशासन के चौबीसवें तीर्थंकर, जन्मे कुण्डलपुरी राजा सिद्धार्थ घर।
रानी त्रिशला ने सपनों का फल पा लिया, बोलो जय त्रिशला नंदन महावीर की।।१।।
वीर वैरागी बनकर युवावस्था में, दीक्षा ले चल दिये घोर तप करने को।
मध्य में चन्दना के भी बंधन कटे, बोलो कौशाम्बी में जय महावीर की।।२।।
प्रभु ने बारह बरस तक तपस्या किया, केवलज्ञान तब प्राप्त उनको हुआ।
राजगिरि विपुलाचल पर प्रथम दिव्यध्वनि, खिर गई बोलो जय जय महावीर की।।३।।
तीस वर्षों में, प्रभु का भ्रमण जो हुआ, सब जगह समवसरणों की रचना हुई।
पावापुर के सरोवर से शिवपद लिया, बोलो जय पावापुर के महावीर की।।४।।
मास कार्तिक अमावस के प्रत्यूष में, कर्मों को नष्ट कर पहुँचे शिवलोक में।
तब से दीपावली पर्व है चल गया, बोलो सब मिल के जय जय महावीर की।।५।।
पावापुर के सरोवर में फूले कमल, आज भी गा रहे कीर्ति प्रभु की अमर।
वीर प्रभु के चरण की करो अर्चना, बोलो जय सिद्ध भगवन् महावीर की।।६।।
पंक में खिल के पंकज अलग जैसे हैं, मेरी आत्मा भी संसार में वैसे है।
उसको प्रभु सम बनाने का पुरुषार्थ कर, जय हो अंतिम जिनेश्वर महावीर की।।७।।
पूरे सरवर के बिच एक मंदिर बना, जो कहा जाता जल मंदिर है सोहना।
पारकर पुल से जाकर करो वंदना, बोलो जय पास जाकर महावीर की।।८।।
लोग प्रतिवर्ष दीपावली के ही दिन, पावापुर में मनाते हैं निर्वाणश्री।
भक्त निर्वाणलाडू चढ़ाते जहाँ, बोलो उस भूमि पर जय महावीर की।।९।।
वीर के शिष्य गौतम गणीश्वर ने भी, पाया कैवल्यपद वीर सिद्धि दिवस।
पूजा महावीर के संग करो उनकी भी, बोलो गौतम के गुरु जय महावीर की।।१०।।
पावापुर में नमूँ वीर के पदकमल, और गौतम, सुधर्मा के गणधर चरण।
‘‘चंदनामती’’ चरणत्रय का वन्दन करो, बोलो जय रत्नत्रयपति महावीर की।।११।।