परमविदुषी, तीर्थोद्धारिका, सरस्वती की प्रतिमूर्ति, अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोगी, गणिनी आर्यिका १०५ श्री ज्ञानमती माताजी दीर्घकाल से जैन संस्कृति के उन्नयन में सतत संलग्न रही हैं, तदर्थ आपने विपुल साहित्य सृजन के माध्यम से हितोपदेशी सर्वज्ञ की वाणी को जन-जन के हाथों तक पहुँचाने का अथक प्रयास किया है, तीर्थंकरों की कल्याणकभूमियों एवं अन्य धर्मायतनों के जीर्णोद्धार व नव निर्माण आपकी पावन प्रेरणा से सकुशल सम्पन्न हुए, उसी पावन पुनीत शृंखला में कुण्डलपुर (नालंदा) बिहार का विकास द्रुतगति से आपकी सद्प्रेरणा एवं शुभाशीर्वाद के लिए सतत उठे हुए करकमलों के शुभाशीष से हो रहा है, यह परम प्रशंसनीय है। आपका इसी प्रकार स्व-पर कल्याण करते हुए दीर्घकाल तक स्वस्थ एवं उत्कृष्टता का रूप लिए संयमित जीवन बना रहे, जिससे यह प्यासी जगती आपके वचनामृत का पान करके तृप्त होती रहे, यही वीरप्रभू से कामना है, भावना है।