सन् १९५६ में वैशाख कृष्णा दूज के दिन राजस्थान के माधोराजपुरा ( जिला- जयपुर ) में [[बीसवीं सदी के प्रथमाचार्य चारित्रचक्रवर्ती श्री शान्तिसागर महाराज]] के प्रथम शिष्य आचार्य श्री वीरसागर महाराज के करकमलों से गणिनी प्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी ने आर्यिका दीक्षा धारण करके ज्ञानमती नाम को प्राप्त किया था ।
उस उपलक्ष्य में प्रतिवर्ष वैशाख कृष्णा दूज को श्री ज्ञानमती माताजी का आर्यिका दीक्षा जयन्ती महोत्सव मनाया जाता है ।
इस बार २७ अप्रैल-२०१३ को वह तिथि आ रही है । अतः आप सभी उस दिन पूज्य माताजी की पूजन करके प्रशनमंच- भाषण प्रतियोगिता आदि का आयोजन करके दीक्षा जयंती महोत्सव मनाएँ ।
ज्ञातव्य है कि इन्होंने २२ अक्टूबर – १९३४ को शरदपूर्णिमा ( आश्विन शुक्ला पूर्णिमा ) की रात्रि में ९ बजकर १५ मिनट पर उत्तर प्रदेश के बाराबंकी ज़िले में टिकैतनगर नामक कस्बे में जन्म लिया था ।
इनके पिता का नाम श्री छोटेलाल जैन एवं माता का नाम मोहिनी देवी था । इन्होंने बचपन से ही धार्मिक संस्कार प्राप्त करके जैन शास्त्रों का स्वाध्याय किया और सोच लिया कि मुझे विवाह नहीं करना है । परिवार एवं समाज के तीव्र विरोध के बावजूद भी इन्होंने सन् १९५२ में शरदपूर्णिमा को अपने जन्मदिन ही भारतगौरव आचार्यरत्न श्री देशभूषण महाराज के करकमलों से सप्तम प्रतिमारूप ब्रम्हचर्य व्रत लेकर उसी दिन से घर का त्याग कर दिया था ।
पुनः ६ महीने बाद ही श्री महावीरजी अतिशयक्षेत्र पर सन् १९५३ में चैत्र कृष्णा एकम – सोलहकारण पर्व के प्रथम दिवस क्षुल्लिका दीक्षा धारण कर वीरमती नाम प्राप्त किया ।और सन् १९५६ में आर्यिका दीक्षा ग्रहण की थी ।
वर्तमान में जैनसमाज की सर्वोच्च साध्वी के रूप में जानी जाती हैं ।