मैं तो आरती उतारूं रे,
धरणेन्द्र देवा की जय जय धरणेन्द्र देव,
जय जय जय-२।।टेक.।।
पार्श्वनाथ के शासन देव, महिमा जग न्यारी।
सम्यग्दर्शन से हो परिपूर्ण, सब संकट हारी।।
सुख के प्रदाता हो, मनवांछित दाता हो,
इच्छा करो पूरी, भक्त की इच्छा करो पूरी।।
मैं तो आरती उतारूं रे …………..।।१।।
पारस प्रभुवर से जब तुमने, मंत्र नवकार सुना।
बनें पद्मावती धरणेन्द्र, विघ्नों का नाश किया।।
उपकारकर्ता पे, उपसर्ग आया तो, छत्र किया फण का,
हो आकर छत्र किया फण का ।।
मैं तो आरती उतारूं रे …………..।।२।।
भक्ति भाव से आशा ले, जो दर पे आता।
रोग, शोक व दुख, दारिद्र, संकट मिट जाता।।
सुत अर्थी सुत पाने, धन अर्थी धन पाते,
महिमा को गाते हैं, भक्त तेरी महिमा को गाते हैं।।
मैं तो आरती उतारूं रे …………..।।३।।
कष्ट जब-जब पड़े भक्त पे, रक्षा तुम करते।
जो भटक जाए मारग से, राह नई देते।।
दिव्य प्रभाधारी हो, सकल सौख्यकारी हो,
शत-शत नमन तुमको, हे यक्ष देव शत-शत नमन तुमको।।
मैं तो आरती उतारूं रे …………..।।४।।
देवी पद्मावती के स्वामि, तव महिमा गाऊं।
लौकिक सुख के संग आत्मिक सुख इक दिन पाऊं।।
ऐसी ही आश ले, मन में विश्वास ले,
‘इन्दु’ तेरे द्वार आई रे, इन्दु तेरे भक्त तेरे द्वार आए रे।।
मैं तो आरती उतारूं रे …………..।।५।।