जिनने तीन लोक त्रैकालिक ,सकल वस्तु को देख लिया।
लोकालोक प्रकाशी ज्ञानी, युगपत सबको जान लिया॥
राग द्वेष जर मरणभयावह , नही जिनका संस्पर्श करें।
अक्षय सुख पथ के वे नेता, जग में मंगल सदा करें॥१॥
चन्द्र किरण चंदन गंगा जल से भी शीतल जो वाणी।
जन्म मरण भय रोग निवारण करने में है कुशलानी।
सप्त भंग युत स्यादवाद मय, गंगा जगत पवित्र करे।
सबकी पाप धूलि को धोकर ,जग में मंगल नित्य करे॥ २॥
विषय वासना रहित निराम्बर,सकल परिग्रह त्याग दिया।
सब जीवों को अभय दान दे, निर्भय पद को प्राप्त किया।।
भव समुद्र में पतित जनों को , सच्चे अवलंबन दाता।
वे गुरु वर मम हृदय विराजो, सब जन को मंगल दाता ॥ ३॥
अनंत भव के अगणित दुःख से जो जन का उद्धार करे।
इन्द्रिय सुख देकर शिव सुख में ले जाकर जो शीघ्र धरे।।
धर्म वही है तीन रत्न मय त्रिभुवन की सम्पति देवे।
उसके आश्रय से सब जन को, भव-भव में मंगल होवे॥ ४॥
श्री गुरु का उपदेश ग्रहण कर, नित्य ह्रदय में धारें हम।
क्रोध मान मायादिक छोड़ कर , विद्या का फल पावें हम।।
सबसे मैत्री दया क्षमा हो,सबसे वत्सल भाव रहे।
सम्यक ज्ञानमती प्रगटित हो अमंगल दूर रहे॥ ५॥