

 कैवल्यज्ञान महान लक्ष्मी, त्रय जगत में मान्य है। 
गंगानदि का पावन जल ले, कंचनभृंग भरूँ मैं। 
अष्टगंध चंदन के द्रवसम, कनक कटोरी भरिये।
सिंधुफेन सम उज्जवल अक्षत, धौत अखंडित लाऊँ। 
वकुल मालती पारिजात के, पुष्प सुगंधित लाऊँ। 
मोतीचूर सु लाडू घेवर, फेनी आदि बनाके। 
घृत दीपक कर्पूर ज्योति से, करूँ आरती रुचि से।
धूप सुगंधित अग्नि पात्र में, खेऊँ कर्म जलाऊँ।
सेव आम्र अंगूर फलों से, पूजूँ हर्ष बढ़ाऊँ। 
जल चंदन अक्षत माला चरु, दीप धूप फल लाऊँ। 
जय जय अनंत गुण समूह सौख्य करंता।
