

पन्द्रह महिने तक कुबेर ने, बहुत रत्न बरसाये।। प्रभू जी.।।
कुण्डलपुर की, जनता हरषी, प्रभु गर्भागम कल्याण पे,
मैं आज उतारूं आरतिया।।१।।

धन्य हुई कुण्डलपुर नगरी, जन्म जहां प्रभु लीना।
चैत्र सुदी तेरस के दिन, वहां इन्द्र महोत्सव कीना।।प्रभू जी.।।
काश्यप कुल के, भूषण तुम थे, बस एकमात्र अवतार थे,
मैं आज उतारूं आरतिया।।२।।

मगशिर असित मनोहर दशमी, मोह अंधेरा भागा।।प्रभू जी.।।
बन बालयती, त्रैलोक्यपती, चल दिए मुक्ति के द्वार पे,
मैं आज उतारूं आरतिया।।३।।
शुक्ल दशमि वैशाख में तुमको, केवलज्ञान हुआ था।गौतम गणधर ने आ तुमको, गुरु स्वीकार किया था।।प्रभू जी.।।
तव दिव्यध्वनी, सब जग ने सुनी, तुमको माना भगवान है,
मैं आज उतारूं आरतिया।।४।।

पावापुरी सरवर में तुमने, योग निरोध किया था।
कार्तिक कृष्ण अमावस के दिन, मोक्ष प्रवेश किया था।।प्रभू जी.।।
निर्वाण हुआ, कल्याण हुआ, दीपोत्सव हुआ संसार में,
मैं आज उतारूं आरतिया।।५।।
वर्धमान सन्मति अतिवीरा, मुझको ऐसा वर दो ।
कहे ‘चंदनामती’ हृदय में, ज्ञान की ज्योति भर दो। प्रभू जी.।।
अतिशयकारी, मंगलकारी, ये कल्पवृक्ष भगवान हैं,
मैं आज उतारूं आरतिया।।६।।
विश्वशांति महावीर विधान





पुरातत्व :
पद्मासन मुद्रा में भगवन महावीर की विशालतम ज्ञात प्रतिमा जी, पटनागंज (म•प•)
भगवान महावीर और अन्य २३ तीर्थंकर (बादामी गुफा, कर्नाटक)
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