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१७.महावीर की बाल सभा एवं सर्प क्रीड़ा!

November 9, 2014विधानjambudweep

महावीर की बाल सभा एवं सर्प क्रीड़ा


(जन्मकल्याणक के दिन रात्रि में पालना एवं बालक्रीड़ा के पश्चात् मंच पर भगवान महावीर की यह बाल सभा बच्चों से प्रस्तुत कराएँ)

राजमहल का दृश्य है, बीच¨ बीच में लगभग 8 वर्ष के बालक को महावीर के रूप में सुसज्जित करके सिंहासन पर बिठावें अर बगल की कुर्सी पर महावीर के प्रियसखा के रूप में 8 वर्ष के एक बालक को उनके प्रिय देवसखा के प्रतीक में दिखावें। आजू-बाजू में 7-7 बालक अर भी (लगभग 5 से 7 वर्ष की उम्र वाले) सुन्दर वेशभूषा में बिठाकर बालसभा का कार्यक्रम प्रारंभ करें-(एक देव का कत्थक नृत्य दिखावें) पुनः- देवसखा-हे तीर्थंकर सखा वर्धमान! इस धरती पर सबसे बहुमूल्य पर्याय कौन सी होती है? बालक वर्धमान-मित्रवर! धरती पर मनुष्य पर्याय सबसे अधिक बहुमूल्य मानी जाती है। देवसखा-ऐसा क्यो? मेरे वीर मित्र! वर्धमान-इसलिए कि मनुष्य पर्याय से ही सबसे ऊँचा पद मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है। इसके अलावा किसी भी पर्याय से मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो सकती है। देवबालक नं. 1-हे वीर! देव लोग मनुष्य पर्याय कैसे पा सकते हैं? यह तो बताइये। वर्धमान-मित्रों! देवता भी भगवान की भक्ति अर सम्यग्दर्शन की दृढ़ता से अगले जन्म में उस बहुमूल्य मनुष्य शरीर को धारण कर सकते हैं। देवबालक नं. 2-हे सन्मति! कुछ लोग मनुष्य पर्याय पाकर भी लूले-लंगड़े हो जाते हैं, वह किस कारण से? वर्धमान-सुनो भाइयो! इस प्रश्न का उत्तर यह है कि जो लोग पूर्व जन्म में दूसरो को दुःख देते हैं अथवा दूसरे अंगहीन लोगो को देखकर उनकी हंसी उड़ाते हैं वे लोग मनुष्य जन्म पाकर भी लूले-लंगड़े हो जाते हैं। देवबालक नं. 3-हे महावीर! कुछ मनुष्य बेचारे गूंगे अौर बहरे देखे जाते हैं, सो उसका क्या कारण है? वर्धमान-मेरे सखा! इसका भी उत्तर सुनो, जो लोग दूसरो की बुराई करते हैं या झूठ बोलते हैं वे तो गूंगे हो जाते हैं अर जो बुराई सुनते हैं वे बहरे हो जाते हैं। देवबालक नं. 4-(राजस्थानी भाषा में) अरे ओ सिद्धारथ पुत्र! म्हारे भी एक प्रश्न का उत्तर दे दीजिये। मैं पूछवा चाहूँ के थांके बाबा को कांई नाव है, मने तो मालुम कोनी? वर्धमान-सुण सुण म्हारे सखो। म्हारे बाबा को नाव है राजा सर्वार्थ। समझा या कोनी समझा। म्हारा बाप जी तो राजा सिद्धार्थ है अर वाका बापजी राजा सर्वारथ है। देवबालक नं. 5-(गुजराती भाषा में) अरे वाह! त्रिशलानन्दन तो आजे सबने बतावा मा लागा छे तो मू पण एक प्रश्न जरूर पूछवा माटे व्याकुल छूं। हे महावीर! तीर्थंकर भगवन्त ऋषभदेव ने दीक्षा क्यां लीधी थी? वर्धमान-आ आ देवसखा! आ प्रश्न न उत्तर जानवा माटे थारी इच्छा छे तो सुण, प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव भगवान ज्यां दीक्षा लीधी त्याना नाम छे-प्रयाग। वर्तमान मा त्यां ”तीर्थंकर ऋषभदेव तपस्थली“ नाम तीरथ बणी गया छे, त्यां अक्षयवटवृक्ष तले भगवान ऋषभदेव नी प्रतिमा ध्यानस्थ मुद्रा मा विराजमान छे। देवबालक नं. 6-(अंगे्रजी में) ओ माई डियर फ्रैन्ड महावीर! आई वान्ट टू आस्क यू वन क्वेश्चन दैट हू आर काल्ड रीयल गॉड? वर्धमान-दिस इज वेरी गुड क्वेश्चन मिस्टर देव! हू हैव डेस्ट्रायड एट कर्माज एण्ड अटेन्ड निर्वान पदवी दे आर काल्ड रीयल गॉड। देवबालक नं. 7-(अवधी भाषा में) अरे अ¨ महावीर! जरा हमहू का एक बात बताय देव कि हमरे सधर्मइन्द्र महाराज कन अइसा पूरब जनम मा पुन्य किहिन हैं कि आप जइसे कितनेव तीर्थंकर भगवन्तन के इ जन्माभिषेक करे का सभाग्य पावत हैं? वर्धमान-हाँ हाँ देव महाराज! तुम तो अब अवधी भाषा मा पूछे लागेव, हमका यहू बोली बोलेक आवत है। तुम सधर्म इन्द्र के पुन्य की बात जाना चाहत ह ना, त सुन! ई हमरे इन्द्र राजा अपने पूरब जनम मा खूब भगवान की भक्ति करिन अर फिर निर्दोष चारित्र का पालन करिन, तपस्या करिन, वही पुन्य के परताप से ई मनुष्य का चोला छोड के सधर्म इन्द्र भये हैं। देवबालक नं. 8-(बुंदेलखंडी भाषा में) अरे ओ लल्ला महावीर! ई इन्द्र महाराज कबै मोक्ष जैहें? वर्धमान-बस, हिंया से जब इनकी उमर पूरी हुई जई है तो एक मनुष्य का जनम लइकै, तपस्या करिकै सीधे इनका मोक्ष होय जई है। देवबालक नं. 9-(नीमाड़ी भाषा में) महावीर! तुम जवान हुइन ब्याह करोगे कि नइ? वर्धमान-हउं तो बडो हुइन दीक्षा लेऊँगा, ब्याव नि करुँगा। देवबालको का सामूहिक स्वर-जय हो महावीर! तुम्हारी जय हो। तुम्हारी जय हो। त्रिशला माता की जय हो, कुण्डलपुर नगरी की जय हो। (इसी बीच माता त्रिशला उस बालसभा में आकर पुत्र महावीर का चुम्बन लेकर उनसे कहती हैं)- त्रिशला-बेटा, चलो उद्यान में तुम्हें झूला झुलाऊँगी। वर्धमान-चलो माँ, आपके साथ झूलने मं तो कुछ अर ही आनन्द आएगा। (माता-पुत्र झूले पर बैठ जाते हैं अर देव-देवियाँ उन्हें झुला रहे हैं। सामूहिक गीत गा-गाकर खूब मनोरंजन करते हैं।)

छंद

(सावनी गीत-अरे रामा…….)

अरे माता, तेरे गुण¨ की महिमा, जगत में छाई है भारी।

महावीर से तीर्थंकर की जननी।

महाराज सिद्धार्थ की धर्मपत्नी।।

अरे माता, कुण्डलपुर नगरी में, खुशियाँ छाई हैं भारी।।1।।

देवबालक नं. 1-माता! मैं भी आपकी गोदी में बैठकर झूला झूलूँगा। त्रिशला-हाँ, हाँ, आओ पुत्र! तुम भी मेरे साथ झूला झूलो। (झूलने लगते हैं) देवबालक नं. 2-माँ! मुझे भी दुलार करो ना! त्रिशला-(पुचकारते हुए) आओ मेरे प्यारे बच्चों! तुम सभी के साथ तो आज मुझे बड़ा ही आनन्द आ रहा है। (सभी देवबालक वहीं पास में आकर माता को घेरकर गाना गाने लगते हैं।)-

तर्ज-छोटे-छोटे ग्वाल……. छ¨टे छ¨टे बालको की प्यारी मइया। छूने को चाहें हम तेरी पइयां।। खेलें प्रज वीर संग हम छइयां। कुण्डलपुर में बज रहीं शहनाइयां।। आँख मिचली खेलेंगे, वीर की लीला देखेंगे। फिर माँ के आँचल में आकर, साथ में झूला झूलेंगे।। देख देख खुश होगी मइया। छूने को चाहें हम तेरी पइयां।।1।।

त्रिशला-सुन¨ बच्च¨! अब मैं जा रही हूँ, तुम ल¨ग खेलकर थोड़ी देर में घर आ जाना। सभी बालक-ठीक है माँ, ठीक है। हम सन्मति वीर को लेकर जल्दी ही आपके पास आ जाएंगे। (माता चली जाती है, पुनः सभी बालक महावीर के साथ कबड्डी, खो-खो, गेंद-फुटबाल आदि खेल खेलते हैं। तभी एक देव भयंकर नाग का रूप धारणकर महावीर की परीक्षा लेने आता है। सभी बालक उसे देखकर डर के मारे पेड़ पर चढ़ जाते हैं कुछ पेड़ से गिर-गिरकर इधर-उधर भागने लगते हैं। (पेड़ पर चढ़े बालको का दृश्य एवं इधर-उधर भागते बालक) वर्धमान-(बालको से) अरे! तुम सब लोग पेड़ पर क्यो चढ़ गये? देवबालक नं. 1-जल्दी से तुम भी ऊपर आ जाओ, वर्धमान! नहीं तो सांप काट लेगा। देवबालक नं. 2-अरे अरे, देखो! सांप उधर वर्धमान की ओर ही भाग रहा है, कहीं काट न ले। देवबालक नं. 3-इन्हें कुछ हो गया तो हम माता के सामने क्या मुँह दिखाएंगे? देवबालक नं. 4-(महावीर को जबर्दस्ती पेड़ पर चढ़ाते हुए) चलोचलो, ऊपर पेड़ पर बैठकर देखते हैं कि यह साँप कहाँ जाता है। वर्धमान-क्या तुम्हें भी डर लग रहा है मित्रों! मैं तो इसे पछाड़ सकता हूँ। देव बालक-नहीं मित्र! ऐसा साहस मत करना, यह सांप साधारण नहीं, भयंकर नाग है। इसके अंदर इतना जहर होता है कि एक फुंकार से ही मनुष्य के प्राण निकल जाते हैं। एक बालक-यह क्या? यह सांप तो इसी पेड़ के ऊपर चढ़ा आ रहा है, क्या हम सभी की जान लेना चाहता है? सभी बालक-अरे बचाओ, बचाओ! कुण्डलपुर के वनमाली! जल्दी आओ, नहीं तो यह नाग आज हम सबको खा जाएगा। वर्धमान-(पेड़ की एक डाल पर खड़े होकर बीन बजाने लगते हैं) ऐ मेरे मित्र! सुनो, तुम किसी को काटना मत। अपनी शक्ति ही तुम दिखाना चाहते हो, तो मैं आता हूँ तुम्हारे पास। लेकिन मेरे मित्रो को तुम बिल्कुल मत सताना। (तुरंत पेड़ से लिपटे हुए नाग के फण पर पैर रखकर बालक वर्धमान नीचे उतर आए अर सर्प को अपने हाथों में लेकर उसके साथ क्रीड़ा करने लगे। देवबालक-अरे मित्र! छोड़ दो, छोड़ दो, इस सर्प को छोड़ दो। अन्यथा मका पाते ही तुम्हारे ऊपर हमला कर देगा। बालक नं. 2-हे प्रभो! कितना धैर्य अर बल है इस बालक में। मेरी तो डर के माने जान ही सूखी जा रही है। बालक नं. 3-बस, यही मनाअ¨ कि वर्धमान की रक्षा हो अर माता त्रिशला तक हम इन्हें सुरक्षित पहुँचा सकें। वर्धमान-मित्र¨! तुम सभी निर्भय होकर नीचे उतर आओं, यह सर्प तुम लोगो का कुछ भी नहीं बिगाड़ेगा। (अकस्मात् वहाँ संगम नामक देव प्रगट होकर कहने लगता है)- संगमदेव-(नमस्कार मुद्रा में) जय हो जय हो, वर्धमान महावीर की जय हो। वर्धमान-आप कौन हैं? संगमदेव-मैं एक देव हूँ अर मैं ही सांप का रूप धारण कर आपके पराक्रम की परीक्षा लेने आया था। हे वर्धमान! आज मैं आपको ”महावीर“ के नाम से अलंकृत कर आपको बारम्बार नमन करता हूँ। धन्य हैं आप। बोल¨ महावीर तीर्थंकर भगवान की जय। सभी बालक-(नीचे उतरकर) हे महावीर! सचमुच में आपका बल-परुष सराहनीय है।

”सामूहिक गीत- ” सब मिलकर आज जय कहो, महावीर प्रभू की। मस्तक झुकाकर जय कहो, श्री वीर प्रभू की।। ज्ञानी बन¨ दानी बन¨, बलवान भी बन¨। महावीर सम बन जय कहो, महावीर प्रभू की।।1।। देकर परीक्षा नाग को, परास्त कर दिया। हम सब भी मिल वन्दन करें, महावीर प्रभू की।।2।। सामूहिक स्वर-जय बोल¨, महावीर भगवान की जय।

Tags: mandal vidhan vidhi
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