ॐ जय जम्बूद्वीप जिनं, स्वामी जय जम्बूद्वीप जिनं।
इसके बीचोंबीच सुशोभित, स्वर्णाचल अनुपम।।ॐ जय.।।टेक.।।
जम्बूद्रुम से सार्थक, जम्बूद्वीप कहा।।स्वामी.।।
मणिमय नग चैत्यालय-२, से युत शोभ रहा।।ॐ जय.।।१।।
मेरू सुदर्शन पूर्व अपर में, बत्तिस हैं नगरी।। स्वामी.।।
तीर्थंकर की सतत जहां पर-२ दिव्यध्वनि खिरती।।ॐ जय.।।२।।
सिद्धकूट अरू सुरगृह में भी, जिनप्रतिमा शाश्वत।।स्वामी.।।
ऋद्धि सहित ऋषि वन्दन करके-२ पीते परमामृत।।ॐ जय.।।३।।
सिद्ध केवली तीर्थंकर अरू, परमेष्ठी होते।।स्वामी.।।
इस ही भू पर जन्मे-२ अरू शिव भी पहुंचे ।।ॐ जय.।।४।।
इसी हेतु यह द्वीप जगत में, पावन पूज्य कहा।। स्वामी।।
तीर्थंकर जन्माभिषेक भी-२ करते इन्द्र जहां।।ॐ जय.।।५।।
हस्तिनागपुर में यह रचना, वैभवपूर्ण बनी।।स्वामी.।।
ज्ञानमती की अमरकृती यह-२ सुन्दर सौख्य घनी।।ॐ जय.।।६।।
अठसत्तर जिनगेह अकृत्रिम, अतिशय युत शोभें।।स्वामी.।।
लहें चंदना क्रम से शिवपुर-२, जो जिनवर पूजें।।ॐ जय.।।७।।
ये भी पढें-