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पंचमहागुरुभक्ति (हिंदी)
April 2, 2020
जिनेन्द्र भक्ति
jambudweep
पंचमहागुरुभक्ति
(श्री कुन्दकुन्ददेव कृत प्राकृत का पद्यानुवाद-गणिनी ज्ञानमती)
कुसुमलता छंद
सुरपति नरपति नाग इंद्र मिल, तीन छत्र धारें प्रभु पर।
पंच महाकल्याणक सुख के, स्वामी मंगलमय जिनवर।।
अनंत दर्शन ज्ञान वीर्य सुख, चार चतुष्टय के धारी।
ऐसे श्री अर्हंत परम गुरू, हमें सदा मंगलकारी।।1।।
ध्यान अग्निमय बाण चलाकर, कर्म शत्रु को भस्म किये।
जन्म जरा अरु मरण रूप, त्रयनगर जला त्रिपुरारि हुए।।
प्राप्त किये शाश्वत शिवपुर को, नित्य निरंजन सिद्ध बनें।
ऐसे सिद्ध समूह हमें नित, उत्तम ज्ञान प्रदान करें।।2।।
पंचाचारमयी पंचाग्नी में, जो तप तपते रहते।
द्वादश अंगमयी श्रुतसागर में, नित अवगाहन करते।।
मुक्ति श्री के उत्तम वर हैं, ऐसे श्री आचार्य प्रवर।
महाशील व्रत ज्ञान ध्यानरत, देवें हमें मुक्ति सुखकर।।3।।
यह संसार भयंकर दुखकर, घोर महावन है विकराल।
दुखमय सिंह व्याघ्र अतितीक्षण, नख अरु डाढ़ सहित विकराल।।
ऐसे वन में मार्ग भ्रष्ट, जीवों को मोक्ष मार्ग दर्शक।
हित उपदेशी उपाध्याय गुरु, का मैं नमन करूँ संतत।।4।।
उग्र उग्र तप करें त्रयोदश, क्रिया चरित में सदा कुशल।
क्षीण शरीरी धर्म ध्यान अरु, शुक्ल ध्यान में नित तत्पर।।
अतिशय तप लक्ष्मी के धारी, महा साधुगण इस जग में।
महा मोक्षपथगामी गुरुवर, हमको रत्नत्रय निधि दें।।5।।
इस संस्तव में जो जन पंच-परम गुरु का वंदन करते।
वे गुरुतर भव लता काट कर, सिद्ध सौख्य संपत लभते।।
कर्मेंधन के पुंज जलाकर, जग में मान्य पुरुष बनते।
पूर्ण ज्ञानमय परमाल्हादक, स्वात्म सुधारस को चखते।।6।।
दोहा
अर्हत् सिद्धाचार्य औ, पाठक साधु महान।
पंच परम गुरु हों मुझे, भव-भव में सुखदान।।7।।
पंच परम गुरु यद्यपि, गुण अनंत समवेत।
तदपि मुख्य गुण को नमूं, ‘ज्ञानमती’ गुण हेत।।8।।
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