श्री गिरनार गिरी जजूँ , पावन सिद्धस्थान |
नेमिनाथ के मोक्ष से , उसकी कीर्ति महान ||१||
चालीसा उस तीर्थ का, पढ़ो भव्य मन लाय |
रोग,शोक संकट टले, मनवांछित मिल जाय ||२||
है गुजरात प्रांत भारत में, कई कथानक जुड़े यहाँ से ||१||
जिनशासन का तीर्थ है प्यारा, सिद्धक्षेत्र कहलाया न्यारा ||२||
बाइसवें तीर्थंकर स्वामी, नेमिनाथ की कथा बखानी ||३||
शौरीपुर से जूनागढ़ तक, पञ्चकल्याणक की है कहानी ||४||
तीन कल्याणक हुए यहाँ पर, कहते इसको ऊर्जयंत गिरि ||५||
षटखंडागम आदि ग्रन्थ में , इसे क्षेत्र मंगल हैं कहते ||६||
इस पर्वत का नाम जो लेता, महासती राजुल को नमता ||७||
नेमिनाथ प्रभु जूनागढ से, ब्याह हेतु निकले राजुल से ||८||
पशुओं की चीत्कार सुनी जब, तब वैराग्य जगा उनके मन ||९||
जा गिरनार ग्रहण की दीक्षा, राजुल कर अनुशरण उन्हीं का ||१०||
सुकुमारी बन गयी आर्यिका , यहीं पे प्रभु को ज्ञान था प्रगटा ||११||
पुनः यहीं से मोक्ष पधारे, बाल ब्रह्मचारी प्रभु प्यारे ||१२||
श्री अनिरुद्ध प्रद्युम्न आदि मुनि, इस ही गिरि से पाई सिद्धिश्री ||१३||
गजकुमार मुनि इस पर्वत से, कर्म नाशकर मुक्त हुए थे ||१४||
गौरव गरिमा सदाकाल ही, हो अक्षुण्ण इसी हेतू ही ||१५||
इन्द्र ने सिद्धशिला को बनाकर, वज्र से चरणचिन्ह अंकित कर ||१६||
भव्य मूर्ति भी स्थापित की, शास्त्र ग्रन्थ में बड़ी प्रसिद्धी ||१७||
इक काश्मीर देश का श्रावक, रत्न नाम आया यात्रा हित ||१८||
जल से न्हवन किया मूर्ती का, प्रतिमा गल गयी बड़ा दुखी था ||१९||
रात्री मात अम्बिका प्रगटीं, बोलीं स्थापित हो मूर्ती ||२०||
रजत, स्वर्ण, पाषाण की प्रतिमा , रत्न ने फिर बनवाई अनुपमा ||२१||
यात्री आकर दर्शन करते, प्रभु जयकारा नित्य उचरते ||२२||
पर्वत से कई कोटि मुनी ने, सिद्धि पाई यह तीर्थराज है ||२३||
पांच टोंक इस पर्वत पर हैं , जिनसे जुड़े कथानक बहु हैं ||२४||
जब दो मील चढाई करते, राजुल सति की गुफा को नमते ||२५||
पुनः धर्मशाला त्रय मंदिर , बाहुबली जिनप्रतिमा सुन्दर ||२६||
कुन्दकुन्द स्वामी की छतरी, जिनमंदिर अरु पञ्चपरमेष्ठी ||२७||
गोमुख से निकले जलधारा, कई कुंडों का भव्य नजारा ||२८||
चरणचिन्ह चौबिस जिनवर के, इस प्रकार यह प्रथम टोंक है ||२९||
आगे सहस्राम्र वन प्यारा, राखन्गार दुर्ग का द्वारा ||३०||
टोंक दूसरी चढें पुनः जब, श्री अनिरूद्ध मुनीश्वर के पग ||३१||
निकट अम्बिका देवी मंदिर, इसकी कथा बड़ी ही सुन्दर ||३२||
नेमिनाथ प्रभु शासन देवी , एक बार श्री कुन्दकुन्द मुनि ||३३||
संघ सहित पहुंचे गिरनार , दिगम्बरत्व का बजा नगाड़ा ||३४||
तीजी टोंक शम्बु मुनि की है, आगे चौथी टोंक बनी है ||३५||
खड़ा है पर्वत कठिन चढ़ाई , किन्तु करो साहस सब भाई ||३६||
पर्वत की चोटी पर चढ़ के, श्री प्रद्युम्न मुनी को नमते ||३७||
पंचम टोक पे नेमि चरण हैं ,भव्य दिगंबर प्रतिमा वहं पे ||३८||
पुरातत्व अधिकार में अब है , सभी करें यात्रा अनुपम है ||३९||
नीचे भी है सुन्दर मंदिर, तीरथयात्रा सचमुच सुन्दर ||४०||
श्री नेमिनाथ प्रद्युम्न संबु, अनिरुद्ध आदि हैं सिद्ध हुए |
अरु जहां बहत्तर कोटि सात सौ, मुनी मोक्ष को प्राप्त हुए ||
राजुल सति की गौरव गाथा, से पूज्य परम है गिरनार |
उसकी यात्रा ‘इंदू’ हर प्राणी , को दे सिद्धशिला न्यारी ||१||