मध्यप्रदेश के पुरातत्व संग्रहालयों में संग्रहीत जैन पुरातत्व प्रतिमाएँ
(मध्यप्रदेश पुरातात्विक दृष्टि से सर्वाधिक सम्पन्न सांस्कृतिक प्रदेश है। प्रदेश के संग्रहालयों में उपलब्ध जैन प्रतिमाओं को केन्द्रित कर यह धारावाहिक आलेख प्रस्तुत किया जा रहा है। पूर्व आलेख में गूजरी महल संग्रहालय, ग्वालियर, पिछोर संग्रहालय एवं दिगम्बर जैन संग्रहालय—उज्जैन, की विशिष्ट प्रतिमाओं के विषय में, सितम्बर ९०, के अंक में, आपने पढ़ा। इस अंक में बिलासपुर, शिवपुरी, सतना, विदिशा एवं रायपुर के संग्रहालयों की प्रतिमाओं का अवलोकन प्रस्तुत है।
४. बिलासपुर संग्रहालयों की प्रतिमाएँ
अर्जुन के पुत्र बबुवाहन की राजधानी इस प्रदेश में किंवदंती के अनुसार स्थित थी। अशोक के शासन का प्रमाण मल्हार से अभिलिखित प्रतिमा एवं मुद्राओं से मिलता है। दूसरी शताब्दी के अभिलेख से सातवाहनों के शासन का उल्लेख प्रकट होता है। ५वीं शताब्दी में धरमपुरीय एवं ९वीं शताब्दी में त्रिपुरी शासकों ने इस क्षेत्र पर राज्य किया। इन जिलों पुरासम्पदा की कलावैभव विश्वविख्यात है। संग्रहालयों में संग्रहीत प्रतिमाएँ प्रथम शती ई.पूर्व से १२ वीं शताब्दी के मध्य की हैं। म.प्र. पुरातत्व विभाग द्वारा स्थापित संग्रहालय की प्रमुख धरोहर मुख्यतया शैव, वैष्णव व जैन संप्रदाय की प्रतिमाएँ हैं। रतनपुर से प्राप्त जैन तीर्थंकर की प्रतिमा ध्यानावस्था में बैठी प्रदर्शित की गई है। प्रतिमा के शिरोभाग में छत्र तथा दीर्घ अलंकृत प्रभामण्डल है। प्रभामण्डल के दोनों और माल्यार्पण करते हुए गंधर्व का अंकन है। छत्र के ऊपर दोनों ओर माला लिए हाथियों को भी उत्कीर्ण कियागया हैं। पत्थर पर बनी इस प्रतिमा की तिथि १० वीं शताब्दी अंकित हैं। रतनपुर में कलचुरी काल की काले पत्थर पर उत्कीर्ण, दो शासन भक्त की प्रतिमाएँ भी संग्रहालय में प्रर्दिशत है, जिन्हें पूजक मुद्रा में दिखाया गया है। दूसरी प्रतिमाओं से भिन्नता लाने के लिए सिर के ऊपर छत्र बनाया गया है तथा चामरधारियों का दोनों तरफ अंकन किया गया है। प्रतिमा की तिथि का निर्धारण १२ वीं शती ई. किया जा सकता है। इन प्रतिमाओं के अतिरिक्त इस संग्रहालय में कुछ अन्य प्रतिमाएँ भी प्रदर्शित की गई हैंं। निश्चय ही छत्तीसगढ़ की कला सम्पदा का यह उत्कृष्ट संग्रह है।
५. शिवपुरी का राजकीय संग्रहालय
भारत के वन्य प्राणियोें एवं प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण माधव राष्ट्रीय उद्यान के लिये प्रख्यात शिवपुरी जिला मुख्यालय छोटा एवं रमणीय स्थल हैं। शिवपुरी संग्रहालय की स्थापना सन् १९६४ में हुई। संग्रहालय में संग्रहीत सामग्री, पाषाण प्रतिमाएँ, शिलालेख, रंगीन चित्र, उत्खनन में प्राप्त सामग्री, सिक्के आदि हैंं। पुरातत्व की दृष्टि से शिवपुरी का विशेष महत्व है। भग्नावेष प्राचीन महत्ता को प्रदर्शित करते हैं। संग्रहालय की पाषाण प्रतिमाओं शैव, शाक्य, वैष्णव, जैन तथा बौद्ध सम्प्रदायों से संबंधित हैं। प्रतिमाएँ तीन दीर्घाओं, बरामदे एवं प्रांगण में प्रदर्शन हेतु संग्रहीत हैं। प्रमुख प्रतिमाएँ निम्नानुसार हैं:—
१. जैन चौमुख स्तम्भ——संग्रहालय के प्रांगण में एक सर्वतोभ्रदिका है जिसमें चार जैन तीर्थंकरों को चारों ओर पद्मासन में दर्शाया गया है। दस पंक्तियों में देवनागरी लिपी में लेख उत्कीर्ण है इसकी तिथि संवत् १५१७ माघ बदी नौ, चन्द्र संवत्सर है।
२. सिरदल——संग्रहालय के प्रांगण में जैन मंदिर के दो सिरदल प्रदर्शित हैं। इनमें नव गृह एवं सप्त मात्रिकाओं का अंकन है। ये सिरदल राजगढ़ से प्राप्त एवं लाल बलुआ पत्थर पर निर्मित हैं। इनका काल ११ वीं १२ वीं सदी ईस्वी हैं।
३. पदमासनस्थ एवं कायोत्सर्ग प्रतिमाएँ——संग्रहालय के प्रवेश द्वार पर पद्मासनस्थ जैन तीर्थंकर की एक विशाल प्रतिमा ध्यान मुद्रा में अवस्थित है। प्रतिमा चमकीली पालिश से युक्त हैं तथा ऊपर त्रिछत्र शोभायमान हैं। इसके समीप तीर्थंकर संभवनाथ, नेमिनाथ, धर्मनाथ, अरहनाथ, श्रेयांसनाथ, महावीर आदि की प्रतिमाएँ कायोत्सर्ग मुद्रा में प्रदर्शित हैं। दीर्घा क्रमांक एक में २४ दिगम्बर समुदाय के तीर्थंकरों की प्रतिमाएँ हैं, इनमें से दो पद्मासन मुद्रा में व शेष कायोत्सर्ग मुद्रा में हैं। प्रतिमाओं के ऊपर त्रिछत्र दुंदाभिक विद्याधर एवं हाथियों को दर्शाया गया है, नीचे प्रत्येक और चंवरधारी हैं। खड़ी प्रतिमाओं में गजशार्दूल एवं मकर प्रदर्शित हैं।तीर्थंकरों के बाल घुंघराले व कम लम्बे हैं, वक्षस्थल पर श्रीवत्स चिन्ह हैं। पादपीठ पर उनके लक्षण की रेखानुकृति हैं। इनका काल निर्धारण ईस्वी सदी १०—१३ के मध्य हैं। २० तीर्थंकरों की प्रतिमाएँ बारह बरामदों में अवस्थित हैं। पद्मासन में ध्यान मुद्रा प्रदर्शित करती हुई पार्श्वनाथ की लाल बलुआ पत्थर से निर्मित मूर्ति ११—१२ वीं शती ई. की हैं। निचली और विद्याधर हैं। सात फणों से युक्त घटाटोप दृष्टव्य है। सिंह, गज व यक्षिणी के अंकन की अनेक पादपीठ हैंं एक जैन प्रतिमा का वितान भी है। दीर्घा क्रमांक दो के बाहर बरामदों में व्यवस्थित कायोत्सर्ग एवं पद्मासन मुद्रा धारित १७ जैन कलाकृतियाँ हैं। इनमें विशेष उल्लेखनीय एक तीर्थंकर प्रतिमा है जो विष्णु के दो अवतार रूप बलराम ओर नरसिंह को प्रकट करती हैं। यह राजगढ़ से प्राप्त प्रतिमा है। दीर्घा क्रमांक तीन में विभिन्न प्रकार की जैन प्रतिमाएँ प्रदर्शित हैं। कुछ प्रतिमाओं के पादपीठ पर प्रतिमा का निर्माण काल व राजवंश देवनागरी लिपि में उत्कीर्ण है। विशेष रूप से पार्श्वनाथ की चमकदार पालिशयुक्त प्रतिमा उल्लेखनीय हैं। यहाँ संवत् एक हजार का दुर्लभ शिलापट्ट उपलब्ध है, जिसमें अनेकानेक लाक्षणिक चिन्हों के साथ २४ तीर्थंकर दृष्टव्य हैं। जहाँ तक मूर्तिकला का प्रश्न है शिवपुरी संग्रहालय राज्य में सर्वोपरि है। यहाँ जैन प्रतिमाओं का विविध एवं भव्य भण्डार है, ऐसा संग्रह देश में दुर्लभ है। जैन प्रतिमाओं का यह उत्कृष्ट संग्रहालय है।
६. तुलसी संग्रहालय, सतना
विन्ध्य क्षेत्र का रीवा संभाग मौर्य, शुंग, गुप्त तथा कलचुरी काल और बाद के काल की पुरासम्पदा से अभिभूत है। संग्रहालय भवन नौ कक्षों में विभक्त है, आठ कक्षों में प्रागैतिहासिक, भरहुत, गुप्त, जैन, शैव, वैष्णव और आधुनिक प्रतिमाओं की वीथिकायें बनाई गई हैं। तुलसी संग्रहालय में लगभग बारह हजार पुरावशेष संकलित हैं। इनमें पाषाण प्रतिमाएँ, धातु प्रतिमाएँ ताम्रपत्र लेख, स्वर्ण—रजत—ताम्र सिक्के सम्मिलित हैं। विन्ध्यक्षेत्र के अधिकतम पुरावशेष तुलसी संग्रहालय में संग्रहीत किये गये हैं। ये पुरावशेष सतना जिले में भरहुत, भ्रमरा, उचेहरा, दुरेहा, खोह, जसो, अमरपाटन, मड़ई, बाबूपुरक, भटूरा, नरो पहाड़ीय, सरिया टोला, सज्जनपुर, शहडोल जिले में सोहागपुर से, सीधी जिले में मझोली से, रीवां जिले में गुर्गी से, छतरपुर जिले में खजुराहो व छतरपुर से, पन्ना जिले में नयना से संग्रहीत किये गये हैं। तुलसी संग्रहालय की भरहुत वीथी में प्रसिद्ध भरहुत स्तूप के कलावशेष प्रदर्शित हैं। भरहुत से प्राप्त कलावशेषों में सर्वोत्कृष्ट हैं, कमल कुल्ले में यक्षी की आवक्ष प्रतिमा। दूसरा है चम्पेव जातक का दृश्य पटल, जिसमें राजा अग्रसेन, रानी सुमना, संपेरे व नागराज को दर्शाया गया है। भरहुत के कलावशेषों के संग्रह में तुलसी संग्रहालय रामवन का भारत में तीसरा स्थान है। गुप्त वीथी में २९ गुप्तकालीन प्रतिमाएं संग्रहीत है। पार्श्वनाथ की प्रतिमा उत्कृष्ट व भाव प्रवण है। ये प्रतिमाएं चौथी से छठी शती ई. के मध्य की है और और लाल बलुए पत्थर से बनी हैं जैन वीथी की प्रतिमाएँ कलचुरी कालीन है तथा अमरपाटन, गुर्गी व मड़ई से एकत्र की गई है। इनमें तेईसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ की प्रमुखता है। साथ ही चन्द्रप्रभु, नेमिनाथ व आदिनाथ की प्रतिमाएँ भी हैं। बैठी हुई दो छोड़कर शेष प्रतिमाएँ स्थानक हैं। यहाँ की सुन्दरतम प्रतिमा तीर्थंकर पार्श्वनाथ की है जो मध्य में होकर विशाल हैं। दूसरी बैठी हुई ध्यानस्थ प्रतिमा प्रथम तीर्थंकर आदि की है। आधुनिक वीथी में जैन तीर्थंकरों की संगरमर निर्मित प्रतिमाएँ हैं। इनमें प्रमुखत: जैन तीर्थंकर शांतिनाथ, जैन मुनि, महावीर स्वामी इत्यादि की हैं।
७. विदिशा संग्रहालय
देश के सांस्कृतिक इतिहास के लिए इस नगरी से सम्बन्धित कथा—कहानियों का विशाल भण्डार भरा पड़ा है। पौराणिक ग्रन्थ भी विदिशा नगर का भारी गौरव—गान करते हैं। ऐतिहासिक सन्दर्भ में विदिशा मौर्य सम्राट अशोक, शुंग नरेशों, शक—क्षत्रप शासकों, नागगुप्त राजाओं और परमार कालीन नरेशों य की विरासत लिस हुए हैं। विभिन्न राजवंशों में पल्लवित, यहाँ का कला— वैभव देश—विदेश मेें चर्चित रहा है। कला के अप्रतिम सौन्दर्य का बोध कराने वाली, विशिष्ट शैली से परिपूर्ण, विश्वविख्यात ‘‘शाल भंजिका’’ प्रतिमा यहीं की धरोदर है। विदिशाकालीन शिल्प की निष्ठा और समर्पण की यह अपूर्व अभिव्यक्ति है। दूसरी शती ई. पू. की कोरकर निर्मित श्वेत बलुआ प्रस्तर की बनी देश की विशालतम यक्षराज कुबेर की प्रतिमा (३.३६ ² १.३६ मी.) यहीं पर हैं। कुबेर उत्तर दिशा में दिकपाल हैं। यक्षी प्रतिमा भी यक्ष प्रतिमा की शैली वाली है आकार २.१० ² ५७ से.मी.। जो स्थानक है। यक्षी की सौन्दर्य सामग्री के अतिरिक्त उल्लेखनीय उसकी कमर (कटि) पर नौलड़ी की भारी और सुन्दर मेखला है। यक्षी की अलंकृत शिरोभूषा का अनुकरण सांची, भरहुत की नारी प्रतिमाओं में किया गया है। जैन प्रतिमाओं का अलंकरण यक्ष—यक्षी के अंकन को प्रदर्शित करता रहा है। अभिलिखित जैन प्रतिमाओं में ८ वें एवं ९ वें तीर्थंकर चन्द्रप्रभ एवं पुष्पदन्त की प्रतिमाएं गुप्त कला शैली से अभिभूत हैं। प्रतिमाएँ श्वेत बलुआ पाषाण से निर्मित हैं। तीर्थंकरों के सिर भग्न हैं। अलंकृत प्रभामण्डल भी आंशिक विद्यमान हैं। पादपीठिका के चार पंक्तियों वाले ब्राह्मी अभिलेख पर, इनके निर्माण का उल्लेख महाराजाधिकार रामगुप्त द्वारा किया जाना वर्णित है। प्रतिमाओं के वक्ष पर श्रीवत्स चिन्ह, उदर रेखा व नाभि उत्कीर्ण हैं।
—राम मोहन शुक्ल —श्याम वैद्य
प्राचार्य, शासकीय महाविद्यालय, सारंगपुर—४६५६९७
भारतीय स्टेट बैंक कृषि विकास शाखा, सारंगपुर—४६५६९७