इस पुरुषप्रधान देश का मस्तक, नारी से ही ऊँचा है।
नारी ने अपनी निश्छलता से, सबके मन को जीता है।।
सीता-सोमा-मैनासुन्दरि अरु मनोवती जैसी सतियाँ।
जिनकी आदर्शकथाओं को, पढ़ने में बीत जाएँ सदियाँ।।१।।
यहाँ वर्तमान की इक गौरवशाली नारी की बात सुनो।
जो ज्ञानमती जी की जननी, यह सर्वश्रेष्ठ परिचय मानो।।
माँ मोहिनि ने क्रम-क्रम से तेरह, सन्तानों को जन्म दिया।
सबके प्रति अपने कर्तव्यों का, भलीभांति निर्वहन किया।।२।।
थी तेरह वर्ष की आयु शेष तब, धर्मसिन्धु सूरीवर से।
अजमेर नगर में दीक्षा ली, सन् उन्निस सौ इकहत्तर में।।
तेरह प्रकार के चारित को, तेरह वर्षों तक पाला था।
इनकी अतिदृढ़ता ने सबको, आश्चर्यचकित कर डाला था।।३।।
तेरह रत्नों की खान ‘आर्यिका रत्नमती’ जी को वन्दन।
इनके आदर्शमयी जीवन को, करूँ सहस्रों बार नमन।।
इनके उपकारों को यह धरती, भूल कभी ना पाएगी।
हैं जब तक सूर्य-चन्द्र तारे, तब तक इनका यश गाएगी।।४।।
श्री शांतिनाथ भगवन् से मेरी, ये ही एक प्रार्थना है।
ये शीघ्र मुक्ति को प्राप्त करें, नहिं कोई और कामना है।।
हर इक नारी के लिए प्रेरणा-दायी इनका जीवन है।
इनके संस्कारों से ही ‘‘सारिका’’, महक रहा मन उपवन है।।५।।