जय मंगलं जयतु शुभमंगलम्। जय नागपतियुवति पद्मांबिके।।१।।
जय हो मंगल हो, शुभ मंगल हो।
नागराज की रानी, माता पद्मावती की जय हो।
मणिमुकुटरत्न कुण्डल-हारराजिते। मणिखचित-केयूर-करभूषिते।।२।।
जय मंगलं जयतु शुभमंगलम्।। पल्लव।।
मणि, मुकुटरत्न, कुण्डल तथा हार से सुशोभित मणियों से
युक्त केयूर द्वारा अलंकृत भुजाओं वाली पद्मावती की जय हो।
मणि-हेम-निर्मित सुविष्टाधिष्ठिते। फणिफणाटोपावतंसलसिते।।३।।
मणिओं से युक्त सोने के आसन पर विराजमान सर्प के
विस्तारयुक्त फणों के कर्णाभूषण धारण करने वाली।
वरदफलपाशांकुश्कर-विराजिनि। वरदिव्यवसनभूषणशोभिनि।।४।।
वरद, फल, पाश तथा अंकुश से शोभित हाथों वाली
तथा श्रेष्ठ एवं देवयोग्य वस्त्राभूषण से सुशोभित होने वाली।
सरसमृदु-मधुरतरगंभीरवरवाणि। वरकमलमृदुलसममृदुलपादपाणि।।५।।
सरस, कोमल, अत्यधिक मधुर तथा गम्भीर और उत्कृष्ट भाषा का प्रयोग करने वाली,
श्रेष्ठ कमल के समान अतीव कोमल हाथों एवं पैरों वाली है ।
मत्तगजगामिनि वृत्तकुचमंडने। चित्तज-स्त्रीविजयरूपधरणे।।६ ।।
मतवाले हाथी की भाँति गति वाली, वृत्ताकार स्तनों से सुशोभित ,
चित्त से उत्पन्न स्त्री स्वरूप विजय का रूप धारण करने वाली है ।
धत्तजिनशासने भक्तजनरक्षणि। सत्तमें भयहरणे वरदायिनि।।७।।
जय मंगलं जयतु शुभमंगलम्।।
जैन शासन को धारण करने वाली, भक्तजनों की रक्षा करने वाली,
निरन्तर भय को हरने वाली और वर प्रदान करने वाली, देवी पद्मावती की जय हो ।
शास्त्रे जैनेऽपि शास्त्रस्यावर्णवाद: सतां मत:।
जैन शास्त्र पर भी आक्षेप करना यह श्रुतावर्णवाद है ।
सारांश यह है कि जो ऐसा कहते हैं कि देवियाँ नहीं होती है
उनका ऐसा कहना भी श्रुत का अवर्णवाद है ।
(नरेन्द्रसेनाचार्य, सिद्धान्तसारसंग्रह, ९/१४२, पृष्ठ २२६)