प्रस्तुति-आर्यिका स्वर्णमती
(संघस्थ-गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी)
जन्म- १८ मई १९५८, ज्येष्ठ कृ. अमावस्या, वीर नि. सं. २४८४
जन्मस्थान- टिकैतनगर (बाराबंकी) उ.प्र.
नाम- कु. माधुरी जैन
माता-पिता- श्रीमती मोहिनी देवी जैन (आर्यिका रत्नमती माताजी) एवं श्री छोटेलाल जैन
बहन-भाई- आठ बहनें (गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी-सबसे बड़ी बहन एवं चारित्रश्रमणी समाधिस्थ आर्यिका श्री अभयमती माताजी सहित) तथा चार भाई (पीठाधीश स्वस्तिश्री रवीन्द्रकीर्ति स्वामीजी सहित)
लौकिक शिक्षा- हाईस्कूल
धार्मिक शिक्षा- शास्त्री (सन् १९७२ में सोलापुर से), विद्यावाचस्पति (सन् १९७३ में)
ब्रह्मचर्य व्रत- सन् १९६९, जयपुर में शरदपूर्णिमा-२५ अक्टूबर को २ वर्ष का ब्रह्मचर्य व्रत, सन् १९७१ में सुगंधदशमी को अजमेर (राज.) में पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी से आजन्म ब्रह्मचर्य व्रत।
द्वितीय प्रतिमा- सन् १९८२ में मोरीगेट (दिल्ली) चातुर्मास के मध्य।
सप्तम प्रतिमा- जुलाई १९८७, जम्बूद्वीप-हस्तिनापुर में (पूज्य गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी द्वारा द्वितीय एवं सप्तम प्रतिमा)
आर्यिका दीक्षा- श्रावण शुक्ला ग्यारस, १३ अगस्त १९८९, रविवार को पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी के करकमलों से जम्बूद्वीप-हस्तिनापुर में (पूज्य गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी से प्रथम आर्यिका दीक्षा प्राप्त)।
उपाधियाँ- ‘प्रज्ञाश्रमणी’ पूज्य गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी द्वारा राजधानी दिल्ली में २४ कल्पद्रुम महामण्डल विधान के मध्य अक्टूबर १९९७ में, ‘मर्यादा शिष्योत्तमा’ एवं ‘गुणरत्न’ उपाधियाँ समाज द्वारा जम्बूद्वीप-हस्तिनापुर में १७ अगस्त २०१३ को आपके रजत आर्यिका दीक्षा समारोह के अवसर पर।
मांगीतुंगी (महा.) में फरवरी २०१६ में आयोजित १०८ फुट उत्तुंग भगवान ऋषभदेव अन्तर्राष्ट्रीय पंचकल्याणक प्रतिष्ठा के अवसर पर-‘आर्षमार्ग संरक्षिका’ (भारतवर्षीय दिगम्बर जैन महासभा द्वारा), ‘दिव्यज्योति’ (दक्षिण भारत जैन सभा द्वारा), ‘रत्नत्रय पूर्णा’ (अखिल भारतीय दिगम्बर जैन महिला संगठन द्वारा), ‘सद्धर्म प्रभाविका’ (सर्वोदय तीर्थ-धारूहेड़ा, हरियाणा द्वारा), ‘आर्यिकारत्न’ गणिनी ज्ञानमती अभिनंदन समिति-मुम्बई द्वारा २८ मई २०१७ को आजाद मैदानमुम्बई में। धर्म-विज्ञान ज्योतिपुंज-सकल दिगम्बर जैन समाज-मुम्बई द्वारा ३ अगस्त २०१७, २९वें आर्यिका दीक्षा दिवस पर एवं कवि हृदया-भाण्डुप जैन समाज-मुम्बई द्वारा अक्टूबर २०१७ में।
पीएच.डी. की मानद उपाधि–तीर्थंकर महावीर विश्वविद्यालय (टी.एम.यू.)-मुरादाबाद (उ.प्र.) द्वारा विश्वविद्यालय परिसर में ८ अप्रैल २०१२ को।
कार्यकलाप-पूज्य गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी के सान्निध्य में १८ वर्ष तक संघ की वैय्यावृत्ति, स्वाध्याय, ध्यान, लेखन-सम्पादन, धर्मप्रवचन इत्यादि।
दीक्षा के पश्चात् हजारों किमी. की पदयात्रा द्वारा भारतवर्ष के विविध अंचलों में जैनधर्म की प्रभावना एवं जनमानस को शाकाहार, नैतिकता के पथ की प्रेरणा। पूज्य गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी की विविध कार्ययोजनाओं-यथा-मांगीतुंगी, अयोध्या, प्रयाग, कुण्डलपुर तीर्थ विकास आदि के सफलतापूर्वक निष्पादन कराने में अग्रणी भूमिका।
विविध टीकाओं, विधानों, नाटक इत्यादि सहित २०० से अधिक जैन पुस्तकों की लेखिका। हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेजी भाषाओं की सिद्धहस्त लेखिका। अंग्रेजी में विविध विधान, पूजा, भजन आदि का लेखन। षट्खण्डागम ग्रंथ (प्राचीनतम जैन सिद्धांत ग्रंथ) की संस्कृत सिद्धान्तचिंतामणि टीका (पूज्य गणिनी ज्ञानमती माताजी द्वारा लिखित) की १३ पुस्तकों का हिन्दी अनुवाद (१२ पुस्तकें प्रकाशित), भगवान ऋषभदेव चरितम् (संस्कृत टीका का हिन्दी अनुवाद), भगवान महावीर स्तोत्र की संस्कृत एवं हिन्दी टीका, चारित्र चन्द्रिका, ज्ञानज्योति की भारतयात्रा इत्यादि ; भगवान महावीर हिन्दी-अंग्रेजी शब्दकोश, गणिनी ज्ञानमती गौरव ग्रंथ, कुण्डलपुर अभिनंदन ग्रंथ, भगवान पार्श्वनाथ तृतीय सहदाााब्दि ग्रंथ आदि का प्रधान सम्पादन; नवग्रहशांति विधान, भक्तामर विधान, समयसार विधान, तीर्थंकर जन्मभूमि विधान, मनोकामना सिद्धि विधान ; जैन वर्शिप, भगवान शांतिनाथ विधान (अंग्रेजी) आदि अनेक।
भजन-पूजन आदि के लेखन एवं गायन की विशिष्ट प्रतिभा से सम्पन्न। लगभग १५०० भजन-आरती–चालीसा–तीर्थंकर भगवान काव्य कथा इत्यादि की रचनाकर्त्री।
पूज्य माताजी द्वारा लिखित णमोकार चालीसा, नवग्रह शांति विधान, नवग्रह स्तोत्र, सम्मेदशिखर वंदना जैन समाज में अत्यन्त लोकप्रिय हैं।
वर्तमान में, षट्खण्डागम ग्रंथ की सिद्धान्तचिंतामणि संस्कृत टीका के हिन्दी अनुवाद एवं इंटरनेट पर दिगम्बर जैनधर्म की राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय प्रभावना हेतु ज्ञान के महासागर ‘इन्साइक्लोपीडिया ऑफ जैनिज्म’ (https://www.encyclopediaofjainism.com) के मुख्य संपादन में संलग्न।