सिद्ध, आचार्यदि प्रतिष्ठा विधि
अथ सिद्धप्रतिमादिप्रतिष्ठाविधानान्यभिधास्यामः। (अब सिद्धप्रतिमा, आचार्य प्रतिमा आदि की प्रतिष्ठाविधि कहते हैं।) संक्षेपार्हत्प्रतिष्ठावत्-प्रतिष्ठाविधिरिष्यते। सिद्धादीनां प्रयोगे तु, विशेषः प्रतिपाद्यते।। संक्षेप में अर्हंत प्रतिमा की प्रतिष्ठा के समान ही सिद्ध प्रतिमा आदि की प्रतिष्ठाविधि है। इसमें प्रयोगविधि में जो विशेष विधि हैं, उन्हें ही इस परिच्छेद में प्रतिपादित करेंगे। तद्यथा
गद्य – सिद्धप्रतिष्ठादिनात्पूर्वं पंचमे दिनेंऽकुरार्पणं तद्दिनाद् द्वितीयदिने मंडपप्रतिष्ठां ततस्तृतीयदिने वेदीप्रतिष्ठां च ततश्चतुर्थदिने रात्रौ उपवासमादाय जलाधिवासनं विमानशुद्धिं दर्भशयनं चाग्नित्रयार्चनं च पूर्ववद्विधाय वेदिकायां पंचवर्णैः सिद्धचक्रोद्धरणं विदध्यात्।
सिद्ध प्रतिमा की प्रतिष्ठा के पांचवें दिन पूर्व अंकुरारोपण, इसके बाद दूसरे दिन मंडपप्रतिष्ठा, तीसरे दिन वेदी प्रतिष्ठा और चैथे दिन रात्रि में उपवास ग्रहण कर जलाधिवासन, विमानशुद्धि, दर्भशयन और अग्नित्रय की अर्चना पूर्वकथित विधि से करके वेदी पर पंचवर्णी चूर्ण से सिद्धचक्र का उद्धार करें । (ऊपर और नीचे रेफ से युक्त ऐसे हकार को बिंदु सहित करके इसके चारों तरफ स्वरों का वलय बनावें।
इस वलय के बाहर कमल पत्राकार आठ दल बनावें। प्रत्येक दल में क्रम से स्वर, कवर्ग, चवर्ग, टवर्ग, तवर्ग, पवर्ग, यरलव, श ष स ह, ये आठ वर्ग लिखें। इन प्रत्येक दोनों दलों की संधि में तत्त्वाक्षर लिखें इसे तत्त्वाक्षर कहते हैं। प्रत्येक दल के अंत में ‘अनाहतमंत्र’ लिखें। इस अष्टदल कमल को चारों तरफ ह्रीं इस मंत्र से वेष्ठित करें, इसको ‘मंत्रराज’ कहते हैं।)
ऊध्र्वाधोरयुतं सबिंदु सपरं ब्रह्मस्वरावेष्टितम्। वर्गापूरितदिग्गतांबुजदलं तत्संधितत्त्वान्वितम्। अंतःपत्रतटेष्वनाहतयुतं ह्रीं कारसंवेष्टितम्। देवं ध्यायति यः स मुक्तिसुभगो वैरीभकंठीरवः।।1।।
इति सिद्धचक्रमुद्धृत्य। ॐ ह्रीं अर्हं असि आ उसा अनाहतविद्याधिपते! अत्र एहि एहि संवौषट्। ॐ ह्रीं अर्हं असि आ उसा अनाहतविद्याधिपते! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः। ॐ ह्रीं अर्हं असि आ उसा अनाहतविद्याधिपते! अत्र मम सहितो भव भव वषट्।
ॐ ह्रीं अर्हं असि आ उसा अनाहतविद्याधिपते! जलं गृहाण गृहाण नमः। (इसी मंत्र से चंदन आदि आठों द्रव्य चढ़ावेंं) इत्यादिभिर्मंत्रैराव्हानादिपूर्वकमभ्यच्र्य हेमादिपात्रे हेमादिलेखन्या तिलकद्रव्यैः सिद्धचक्रमुद्धृत्य तन्मंडलमध्ये विन्यस्य।
इस प्रकार सिद्धचक्र बनाकर इसका आह्नानन आदि करके पूजन करें। एक पात्र में सुवर्णादि की लेखनी से केशर आदि से यंत्र लिखकर आराधना करें।
ॐ ह्रीं असिआउसा अनाहतविद्यायै नमः। इति मूलमंत्रेण अष्टोत्तरशतवारं जात्यादिपुष्पैज्र्ञानमुद्रया सिद्धपरमेष्ठि ध्यानेन समाराध्य। दर्भशय्यास्थितसिद्धबिंबमानीय उत्तरवेद्यां स्थापनपीठे (स्नपन पीठे) निवेश्य पूर्ववद्धूलीकलशेनाभिषिच्याष्टसम्मर्जनकलशैः पूर्वमंत्रैराकारशुद्धिं विधाय प्राक्तनयंत्रोपरि विष्टरे संस्थाप्य प्रतिष्ठेयनिरूपणं कृत्वा ‘नमस्ते पुरुषार्थानामित्यादि सिद्धस्तोत्रं पठित्वा प्रतिमोपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत्।
मूलमंत्र से, ज्ञानमुद्रा से, जाति आदि सुगंधित पुष्पों से सिद्धभगवान की आराधना करें। पुनः दर्भशय्या से सिद्धबिंब को लाकर उत्तरवेदी में स्थापित अभिषेक पात्र में विराजमान करके पृष्ठ 208 से पूर्वकथित विधि से धूलिकलश से अभिषेक करके (पृष्ठ 214 से) आठ संमार्जन कलशों से पूर्वमंत्रों से आकारशुद्धि करें। (पूर्व के सिद्धयंत्र पर प्रतिमा स्थापित करके स्तोत्र पढ़ें।) अनंतर ‘जानाति’ इत्यादि पद्य व मंत्रों से सिद्धगुणों का आरोपण करें।
जानातिबोधं यदनुग्रहेण। द्रव्याणि सर्वाणि चराचराणि।। दुराग्रहत्यक्तनिजात्मरूपं, सिद्धेत्र सम्यक्त्वगुणं न्यसामि।। ॐ ह्रीं परमावगाढसम्यक्त्वगुणभूषिताय नमः। इति प्रतिमोपरि पुष्पांजलिं क्षिप्त्वा तद्गुणमारोपयेत्। एवमुत्तरत्रापि विधेयम्। जानाति नित्यमित्यादि (पृष्ठ 280 से आठों गुणों की स्थापना करें) सप्तपद्यानि पठन् अर्चां समंतात्परामृशेत्। इति गुणारोपणम्।।
आहूता इव सिद्धमुक्तिवनितामित्यादि। (पृष्ठ 279 से पढ़ें) ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं सिद्धपरमेष्ठिन्! अत्र एहि एहि संवौषट्। ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं सिद्धपरमेष्ठिन्! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः। ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं सिद्धपरमेष्ठिन्! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्। आव्हाननादिमंत्रः। तिलकदान मंत्र ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं असि आ उ सा सिद्धाधिपतये नमः। अनेन मंत्रेण कर्पूरान्वितचंदनेन तिलकं न्यसेत्।
(इस मंत्र से नाभि में तिलकन्यास विधि करें।)
ॐ ह्रीं मुखवस्त्रं दधामि स्वाहा। इति मुखवस्त्रमंत्रः। गंगादितित्थप्प इत्यादिभिरधिवासनां विदध्यात्। (पृष्ठ 281 से पूजा करें) नेत्रोन्मीलन मंत्र ॐ ह्रीं सिद्धाधिपते प्रबुध्यस्व ध्यातृजनमनांसि पुनीहि पुनीहि स्वाहा। नेत्रोन्मीलनमंत्रः। ॐ ह्रीं सिद्धाधिपते मुखवस्त्रमपनयामि स्वाहा। इति श्रीमुखोद्घाटनमंत्रः। पंचामृत अभिषेक वारिणा स्वच्छशीतेन, हारिणा तापहारिणा। विशुद्धानभिषिंचामि सिद्धानघविशुद्धये।।1।।
ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं सिद्धाधिपते! तीर्थोदकेनाभिषिंचामीति स्वाहा। तीर्थोदकस्नपनम्। जल से अभिषेक करें। पुंडेªक्षुचोचचूतादि-स्वरसोदारधारया। विशुद्धानभिषिंचामि सिद्धानघविशुद्धये।।2।।
ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं सिद्धाधिपते! पुंडेªक्षुप्रमुखरसैरभिषिंचामि इति स्वाहा। रसस्नपनम्। इक्षु आदि रसों से अभिषेक करें। पिंगहय्यंगवीनेन, नवीनेन सुगंधिना। विशुद्धानभिषिंचामि सिद्धानघविशुद्धये।।3।।
ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं सिद्धाधिपते! हय्यंगवीनघृतेन स्नपयामीति स्वाहा। घृतस्नपनम्।। घी से अभिषेक करें। क्षरत्सुधासदृक्षेण, क्षीरपूरेण भूरिणा। विशुद्धानभिषिंचामि सिद्धानघविशुद्धये।।4।।
ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं सिद्धाधिपते! धारोष्णगव्यक्षीरपूरेणाभिषिणोमीति स्वाहा। दुग्धस्नपनं।। दूध से अभिषेक करें। दध्ना पूर्णशरच्चंद्र-चंद्रिकाधवलत्विषा। विशुद्धानभिषिंचामि सिद्धानघविशुद्धये।।5।।
ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं सिद्धाधिपते! जगन्मंगलेन दध्ना स्नपयामीति स्वाहा। दधिस्नपनम्।। दधि से अभिषेक करें। कषायद्रव्यसत्कल्क-क्वाथचूर्णैः सुगंधिभिः। उपस्करोमि शुद्धात्म-सिद्धानघविशुद्धये।।6।।
ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं सिद्धाधिपते! दिव्यप्रभूतसुरभिकषायद्रव्यकल्कक्वाथचूर्णैरुपस्करोमि स्वाहा। उद्वर्तनादिविधानम्। सर्वौषधि से अभिषेक करें। पवित्रसुपवित्रोरु-मनोरमफलोत्करैः। निर्वर्तयामि शुद्धात्म-सिद्धानघविशुद्धये।।7।।
ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं सिद्धाधिपते! विचित्रमनोरमफलैरवतारयामि इति स्वाहा। फलावतरणम्। फलों से अवतरण विधि करें। तीर्थांभःसंभृतैः कुंभै-रष्टभिर्मंगलान्वितैः। निर्वर्तयामि शुद्धात्म-सिद्धानघविशुद्धये।।8।।
ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं सिद्धाधिपते! परमसुरभिद्रव्यसंदर्भपरिमलगर्भतीर्थांबुसंपूर्णसुवर्णकुंभाष्टतयेन परिषेचयामि स्वाहा।। कलशाष्टकाभिषेकः।। (आठ कलशों से अभिषेक करें।) पूतशीतलगंधोदै-र्गंधद्रव्यादिवासितैः। विशुद्धानभिषिंचामि, सिद्धानघविशुद्धये।।9।।
ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं सिद्धाधिपते! परमसौमनस्यनिबंधनगंधोदकपूरेणाप्लावयामि स्वाहा। गंधोदकस्नपनम्। चंदन- मिश्रित जल से अभिषेक करें। ॐ बाह्याभ्यंतरहेतुजात (पृष्ठ 312 से लेवें)। ॐ ह्रीं निरवशेषावरण (पृष्ठ से 312 पढ़ें)। स्वच्छैस्तीर्थजलैरतुच्छसहज-प्रोद्गंधिगंधैः सितैः । सूक्ष्मत्वायतिशालिशालिसदकै-र्गंधोद्गमैरुद्गमैः।। हव्यैर्नव्यरसैः प्रदीपितशुभै-र्दीपैर्विपद्धूपकैः। धूपैरिष्टफलावहैर्बहुफलैः, श्रीसिद्धनाथान्यजे।।10।।
ॐ ह्रीं श्रीं अर्हं सिद्धाधिपते! लोकोत्तरनीरधाराहरिचंदनद्रवकलमाक्षतपुंजाष्टकमंदारप्रमुखकुसुमदामसुधारस- स्पद्धविधिसान्नायघनसारदशामुखप्रदीपितदीपाष्टकसुगंधिद्रव्यसंयोजनाविशेषसंभूतधूमायमानधूपघटाष्टकबंधुरगंधवर्ण- रसस्पर्शप्रणीतबहिरंतःकरणमहाफलस्तबकाष्टकजलादियज्ञांगदूर्वादर्भदधिसिद्धार्थादिमंगलद्रव्यविनिमतमहाघ्र्य- सत्कारोपचारैः परिचरामीति स्वाहा। जलाद्यघ्र्यांतसपर्याविधानम्।।
ततः सिद्धभक्तिं (पृष्ठ 17 से लेवें) कृत्वा अभिमतप्रार्थनमिदं पठित्वा पुष्पांजलिं प्रकल्पयेत्। प्राज्यं साम्राज्यमस्तु स्थिरमिह सुतरां जायतां दीर्घमायु-र्भूयाद्भूयांश्च भोगः स्वजनपरिजनैस्तात्सदारोग्यमग्य्रम्।। की तव्र्याप्ताखिलाशा प्रभवतु भवतान्निःप्रतीपः प्रतापः।
क्षिप्रं स्वर्मोक्षलक्ष्मीर्भवतु तनुभृतां सिद्धनाथप्रसादात्।। ततः पूर्ववद्विसर्जनादिकमनुतिष्ठेत्। (पूर्ववत् विसर्जन आदि करें।) प्रतिष्ठानंतरदिने अवभृथस्नानमभिषेकक्रियां सर्वदेवताविसर्जनं सिद्धानामध्यात्माध्यासनं शांतिधारां शांतिबलिं क्षमापणादिकं च पूर्वोक्तं कर्म कृत्वा प्रतिष्ठां निष्ठापयेत्। इति सिद्ध प्रतिष्ठाविधानम्।।
प्रतिष्ठा से केवलज्ञान कल्याणक से अगले दिन अवभृतस्नान महाभिषेक विधि करके देवता विसर्जन, सिद्धों का ध्यान, शांतिधारा, शांतिबलि, क्षमापण आदि करके प्रतिष्ठा को पूर्ण करे। इस प्रकार सिद्ध प्रतिष्ठाविधि पूर्ण हुई। अथाचार्यप्रतिष्ठाविधानम्
गद्य – आचार्यादिप्रतिष्ठादिनात्प्राक् पंचमे दिनेंऽकुरार्पणं कृत्वा, अग्नित्रयार्चनपर्यंतं कर्म सिद्धप्रतिष्ठावत्कृत्वा वेद्यां गणधरवलयोद्धरणं विदध्यात्। पूर्वं षट्कोणचक्रमध्ये क्ष्माबीजाक्षरं लिखेत्। तदुपरि र्हं इति न्यसेत् तस्य दक्षिणतो झ्वीं वामतश्च ह्रीं विन्यसेत्। पीठाधः श्रीं न्यसेत्। ॐ असि आ उसा स्वाहेत्यनेन श्रींकारस्य दक्षिणतः प्रभृत्युत्तरतो यावत्प्रादक्षिण्येन वेष्टयेत्।
ततः कोणेषु षट्स्वपि मध्ये अप्रतिहतचक्रे फडिति सव्येन स्थापयेत्। ततः कोणांतरालेषु विचक्राय स्वाहेति षड्बीजानि ह्मममफकारोत्तराणि अपसव्येन स्थापयेत्। ततः कोणाग्रेषु श्री-ह्रीं-धृति-कीत बुद्धि-लक्ष्मीति षड्देवताः प्रादक्षिण्येन लिखेत्। तद्बहिर्वलयं कृत्वा अष्टसु पत्रेषु
1. णमो जिणाणं। | 2. णमो ओहिजिणाणं। | 3. णमो परमोहिजिणाणं। | 4. णमो सव्वोहिजिणाणं। |
5. णमो अणंतोहिजिणाणं। | 6. णमो कोट्ठबुद्धीणं। | 7. णमो बीजबुद्धीणं। | 8. णमो पदाणुसारीणं। |
इत्यष्टौ पदानि ॐ ह्रीं र्हं पूर्वाणि पूर्वादिक्रमेण लिखेत्। ततस्तद्बहिस्तद्वत् षोडशपत्रेषु
1. णमो संभिण्णसोदाराणं। | 2. णमो पत्तेयबुद्धाणं। | 3. णमो सयंबुद्धाणं। | 4. णमो बोहियबुद्धाणं। |
5. णमो रुजुमदीणं। | 6. णमो विउलमदीणं। | 7. णमो दसपुव्वीणं। | 8. णमो चउद्दसपुव्वीणं। |
9. णमो अट्ठंगणिमित्तकुसलाणं। | 10. णमो विउणइड्ढिपत्ताणं। | 11. णमो विज्जाहराणं। | 12. णमो चारणाणं। |
13. णमो पण्णसमणाणं। | 14. णमो आगासगामिणं। | 15. णमो आसीविसाणं। | 16. णमो दिट्ठिविसाणं। |
इति षोडशपदानि विलिखेत्। ततस्तद्बहिश्चतुर्विंशतिपत्रेषु
1. णमो उग्गतवाणं | 2. णमो दित्ततवाणं | 3. णमो तत्ततवाणं | 4. णमो महातवाणं |
5. णमो घोरतवाणं | 6. णमो घोरगुणाणं | 7. णमो घोरपरक्कमाणं | 8. णमो घोरगुणबह्मचारीणं |
9. णमो आमोसहिपत्ताणं | 10. णमो खेल्लोसहिपत्ताणं | 11. णमो जल्लोसहिपत्ताणं | 12. णमो विप्पोसहिपत्ताणं |
13. णमो सव्वोसहिपत्ताणं | 14. णमो मणबलीणं | 15. णमो वचिबलीणं | 16. णमो कायबलीणं |
17. णमो खीरसवीणं | 18. णमो सप्पिसवीणं | 19. णमो महुरसवीणं | 20. णमो अमियसवीणं |
21. णमो अक्खीणमहाणसाणं | 22. णमो वड्ढमाणाणं | 23. णमो लोए सव्वसिद्धायदणाणं | 24. णमो भयवदो महतिमहावीरवड्ढमाणाणं बुद्धरिसीणं। |
इति चतुर्विंशतिपदान्यालिख्य ह्रीं कार मात्रया त्रिगुणं वेष्टयित्वा क्रोंकारेण निरुध्य बहिः पृथ्वीमंडलं विलिखेत्।