02.सुप्रभाताष्टक-स्तोत्रं
सुप्रभाताष्टक-स्तोत्रं देवेन्द्रवंद्यचरणांबुरुहं जिनेन्द्रं।उत्तिष्ठ भव्य! भज तं सहसा प्रभाते।।भंक्त्वा प्रमादमचिरं त्यज मोहनिद्रां।उत्तिष्ठ भव्य! भुवि विस्फुरितं प्रभातम्।।१।। सुरपति वंदित चरणसरोरुह कर्म शत्रुजित् जिनवर को। उठो भव्य! प्रात: मंगलमय बेला मे तुम उन्हें भजो।। मोहनींद को दूर भगावो उठो! उठो! झट तजो प्रमाद। उठो भव्य! अब प्रकाश फैला मंगलमय हो सदा प्रभात।। आगत्य चैत्यसदने जिनवक्त्रपद्मं।संवीक्ष्य भक्तिभरत: गतरागरोगं।।प्रेम्णा नतिं कुरु...