वास्तु एवं सूर्य
अनादिकाल से सूर्य और चन्द्रमा के द्वारा संसार में दिन और रात के अस्तित्व का बोध होता है। वास्तु शास्त्र में सूर्य और चन्द्रमा का अपना विशेष महत्व है। आदिब्रह्मा, नारायण श्रीकृष्ण एवं वर्तमान में भगवान महावीर के काल में सूर्य का सबसे बड़ा महत्व जैन आगम में है। जैन धर्म के उपासक साधक अपनी क्रियायें सूर्य उदय से चालू करते हैं एवं सूर्य अस्त होने पर अननी क्रियाओं को विराम देकर जप,तप, साधना और ध्यान में मग्न होने के मार्ग में अग्रसर हो जाते हैं, महाभारत काल में जैसे सूर्य के अस्त होते ही युद्ध विराम कर दिया जाता था। सूर्य छह माह उत्तरायण एवं छह मास दक्षिणायण रहता है, हर शुभ कार्य उत्तरायण पक्ष में किया जाता है यह आदि परम्परा है। किसी भूखण्ड में कोठी, मकान, बंगला या फ्लैट बनाते या लेते समय मुख्य रूप से यह ध्यान देना चाहिए—सूर्य और चन्द्रमा की रोशनी आने के रास्ते हैं या नहीं अगर रोशनी आने के रास्ते बंद हैं, क्रय नहीं करना चाहिए। स्वास्थ्य के लिए मकान का कम से कम १५ प्रतिशत भाग दरवाजे खिड़कियों के लिए रखना अति आवश्यक है। वास्तु विज्ञान की विस्तृत जानकारी को विश्व स्वास्थ्य संगठन (वल्र्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन) ने माना एवं अपनी रिपोर्ट में पूरे विश्व को जानकारी दी। वास्तु शास्त्र का दूसरा नाम जीवन जीने की शैली है। ये शैली ऋषि मुनियों द्वारा मार्गदर्शित है। अथर्वेद में सूर्य को सबसे शक्तिशाली एवं सर्वोपरि माना है। जीवन की हर क्रिया का श्री गणेश सूर्य उदय से होता है। धरती पर सब प्रकार की अग्नि का स्त्रोत सूर्य को माना गया है । सूर्य —अग्नि, गति और समयचक्र का बोधक है। घड़ी की सुई भी सूर्य के साथ—साथ चलती है। किसी भूखण्ड में निर्मित भवन, कोठी, मकान, फ्लैट में सूर्य की रोशनी प्रात: कालीन आती है तो उस घर में रहने वालों के लिए अमृततुल्य होती है। अमृत का तात्पर्य अति शुभ प्रभाव । उगते हुए सूर्य की किरणें उस घर में बीमारियों को आने से रोकती हैं । ज्यादातर विद्वानों ने सूर्य स्नान का बहुत बड़ा महत्व बताया है। कई जगह सूर्य की रोशनी के द्वारा रोगों का निदान किया जाता है। सूर्य की रोशनी के साथ रंगों का मिश्रण करके जो रोगों का निदान किया जाता है उसे कलरथैरेपी कहा जाता है। धरती पर जितने प्रकार की अग्नि होती है उस अग्नि का जन्मदाता प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से सूर्य ही है। किसी भूखण्ड में पूर्व दिशा पूर्णत: खुली हो ईशान से लेकर अग्नि कोण तक सूर्य की किरणे आती हों, उस घर में रहने वाले स्वस्थ रहते हैं। उपरोक्त जानकारी देने का मुख्य उद्देश्य निगेटिव ऊर्जाओं को समाप्त करने में सूर्य की महत्वपूर्ण भूमिका है। वास्तु विज्ञान में सूर्य की रोशनी का महत्व विस्तृत रूप से बताया गया है उसी प्रकार वायु का महत्व भी कम करके नहीं आंका जा सकता। निम्नलिखित बातों का मुख्यत: ध्यान रखें। (१) पूर्व और उत्तर की दिशा बंद हो एवं दक्षिण पश्चिम खुला हो वो मकान न खरीदा जावे एवं अगर वर्तमान में है तो उसे निकालने का प्रयास करना चाहिए।(२) मकान की दो दिशाएं खुली होनी जरूरी है। उत्तर—पूर्व, पूर्व—दक्षिण या पश्चिम—उत्तर, इन मकानों को क्रय किया जा सकता है।(३) मकान के हर रूम में रोशनदान, खिड़कियां होना जरूरी है—हवा और रोशनी के लिए। किसी कारणवश मकान के किसी कमरे में यह सुविधा उपलब्ध न हो तो किसी का भी शयनकक्ष नहीं बनाना चाहिए क्योंकि उसमें सूर्य का प्रकाश न होने के कारण शीलन होने की संभावना ज्यादा रहती है। उसमें सोने वाले व्यक्ति कई तरह की बीमारियों से ग्रस्त हो जाते हैं। कुछ विद्वानों का मत है कृत्रिम रोशनी एवं ए.सी. लगाकर उसमें रहा जा सकता है लेकिन इंग्लैंड की एक ऊर्जा कंपनी ने सर्वेक्षण कराकर रिपोर्ट पेश की एवं उनका वक्तव्य है, कृत्रिम रोशनी से स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं उत्पन्न होने की संभावना अत्यधिक होती है। जैसे— तनाव, थकावट, सिरदर्द , आंखों में भारीपन इत्यादि।(४) जिस भवन के मध्य भाग (ब्रह्म स्थान) पर रोशनी हवा पहुंचती है उस भवन में सकारात्मक ऊर्जाओं का स्त्रोत चालू रहता है।(५) चारों दिशाओं में खिड़की , बालकोनी, बरामदा बनाते समय ध्यान रखें— उत्तर एवं पूर्व में ज्यादा से ज्यादा स्थान खुला हो तथा पश्चिम दक्षिण में पूर्व उत्तर के अनुपात में कम हो।(६) नैऋत्य कोण के देवता नेरुती नाम का राक्षस है। इस कोण में खिड़की , बरामदा, दरवाजे बनाना हर तरह से नुकसानदायक होता है इसलिए यहां पर बनाना उचित नहीं है।(७) भूखण्ड के हर कमरे में बैड लगाते समय विशेष रूप से ध्यान रखें —हवा रोशनी पर्याप्त मात्रा में मिलती रहे।(८) डाइनिंग टेबल ऐसे स्थान पर लगाया जाना चाहिए जहां पर प्रकाश और हवा का आगमन हो।(९) स्टडी टेबल पूर्व मुखी, उत्तर मुखी हो। प्रकाश हवा का आगमन निरन्तर होता रहे।वास्तु एवं सूर्य!श्री श्री सत्य बोध,अप्रैल २००९