विलक्षण प्रतिभावान युवा वैज्ञानिक अशुल कहते हैं कि पूरी मानवता और प्राणीमात्र के कल्याण के लिए मैं जैनेटिक के क्षेत्र में आया। जिस परीक्षा को देकर में 100 प्रतिशत अंक प्राप्त कर सफल हुआ हूँ। उसके लिए प्रवेश की पात्रता उन्हीं को है, जो शाकाहारी है, आलू, प्याज, लहसुन अथवा तामसिक आहार नहीं करते अन्यथा…
विद्वत परम्परा का गौरव (श्रमण संस्कृति संस्थान) सांगानेर, जयपुर में श्रमण शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के आशीर्वाद तथा मुनिपुंगव श्री सुधासागरजी महाराज की पावन प्रेरणा से १३अक्टूबर, 1996 को श्री दिगम्बर जैन श्रमण संस्कृति संस्थान की स्थापना हुई। यह भारत वर्ष में दिगम्बर जैन समाज का विद्वानों को तैयार करने वाला अद्वितीय संस्थान…
साहित्य मनीषी, उत्कृष्ट शिक्षाविद् डॉ. पण्डित पन्नालाल साहित्याचार्या बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न एवं राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित पण्डित का जन्म पारगुवां (सागर) में 5 मार्च, 1911 को हुआ। बाल्यकाल से ही आप विलक्षण प्रतिभा के धनी थे।अर्थाभाव के कारण आपने बाल्यकाल से संघर्ष किया, किन्तु आप अपनी लगन एवं परिश्रम के कारण प्रत्येक क्षेत्र में पूर्ण…
श्री दानवीर तीर्थभक्त रायबहादुर जैन सम्राट श्रीमंत सरसेठ हुकमचंद जैन (1874-1973) सरसेठ हुकमचन्द जैन का जन्म 1874 में इन्दौर के कासलीवाल परिवार में हुआ था। आप भारतीय उद्योग के एक अग्रणी व्यापारी थे तथा लगभग 50 वर्षों तक जैन समुदाय के प्रमुख नेता थे। आपका धार्मिक और सामाजिक सेवा में अद्वितीय स्थान है। आपने जैन…
विश्व की अद्वितीय धरोहर सिवनी का रजत रथ रजत रथ का निर्माण वाराणसी में सन् 1930 में किया गया था। जिसकी लागत २००००रुपये थी। यह रजत रथ विश्व में अद्वितीय एवं जैन समाज की समान की बहुमूल्य धरोहर है। रथ पेट्रोल मोटर के ऊपर निर्मित है रथ को खींचने हेतु दो रजत अश्व…
विद्वत्परम्परा के पितामह गुरुवर्य पं. गोपालदासजी वरैया गुरुवर्य पं. गोपालदासजी वरैया स्याद्वाद वारिधि न्याय वाचस्पति, वादिगज केसरी, बीसवीं शती के जैन शिक्षा एवं जैन विद्यालयों के प्रवर्तक तथा वर्तमान विद्वत्परम्परा के पितामह थे। लोग आपकी विद्वत्ता, समाज सेवा और प्रखर वकृत्व शक्ति का लोहा मानते थे। आपने मुरैना में जैन सिद्धान्त विद्यालय की स्थापना के…
जैन गीता : समणसुत्तं जैनधर्म के विभिन्न ग्रंथों से ग्रहण की गई गाथाओं का संकलन समणसुत्तं के नाम से क्षुल्लक जिनेन्द्र वर्णी द्वारा किया गया था। इस ग्रन्थ की रचना को भगवान् महावीर के 2500 वें निर्वाण वर्ष के अवसर पर एक बड़ी उपलब्धि के रूप में स्वीकार किया गया। आचार्य विनोबा भावे की प्रेरणा…