षोडश कारण व्रत!
षोडशकारण व्रत – यह षोडशकारण अर्थात् सोलहकारण पर्व वर्ष में – माघ , चैत्र एवं भादों इन तीन महीनों में तीन बार आता है । इसमें ३२ दिन तक लोग व्रत भी करते हैं ।
षोडशकारण व्रत – यह षोडशकारण अर्थात् सोलहकारण पर्व वर्ष में – माघ , चैत्र एवं भादों इन तीन महीनों में तीन बार आता है । इसमें ३२ दिन तक लोग व्रत भी करते हैं ।
कल्पवृक्ष- मन में कल्पना करने मात्र से जो वृक्ष मनवांछित फल प्रदान करता है, उसे कल्पवृक्ष कहते हैं ।भोगभूमि में और स्वर्गों में ऐसे कल्पवृक्ष होते हैं । जिनसे वहाँ के लोग मुँह माँगा फल प्राप्त करते हैं ।
मैथिलीशरण गुप्त (जन्म-3 अगस्त, 1886 झाँसी – मृत्यु- 12 दिसंबर, 1964 झाँसी) खड़ी बोली के प्रथम महत्त्वपूर्ण कवि हैं। श्री पं महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की प्रेरणा से आपने खड़ी बोली को अपनी रचनाओं का माध्यम बनाया और अपनी कविता के द्वारा खड़ी बोली को एक काव्य-भाषा के रूप में निर्मित करने में अथक प्रयास…
ज्ञानमती दीक्षा जयन्ती सन् १९५६ में वैशाख कृष्णा दूज के दिन राजस्थान के माधोराजपुरा ( जिला- जयपुर ) में [[बीसवीं सदी के प्रथमाचार्य चारित्रचक्रवर्ती श्री शान्तिसागर महाराज]] के प्रथम शिष्य आचार्य श्री वीरसागर महाराज के करकमलों से गणिनी प्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी ने आर्यिका दीक्षा धारण करके ज्ञानमती नाम को प्राप्त किया था ।उस उपलक्ष्य…
आत्मसात् Absorbed or assimilated (knowledge). आत्मा के साथ एकमेक किया हुआ ज्ञान ।
जम्बूद्वीप – तीनों लोकों में मध्यलोक के अंदर असंख्यात द्वीप- समुद्रों में से प्रथम द्वीप का नाम जम्बूद्वीप है । जैन शास्त्रों में वर्णित यह जम्बूद्वीप हस्तिनापुर की धरती पर पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी की प्रेरणा से बनाया गया है । इस जैन भूगोल की अद्वितीय रचना का दर्शन करने के लिए देश- विदेश…
अकृत्रिम जिनालय अर्थात् अनादिनिधन, शाश्वत जिनमंदिर जिन्हें किसी ने नहीं बनाया है, जिनका न तो आदि है न अंत, जो सदैव विद्यमान रहते हैं
Antiquity Of Jainism JAINISM IS ONE OF THE MOST ANCIENT RELIGIONS OF THE INDIAN LAND. IT IS SUPPOSED TO BE THE ETERNAL RELIGION, IN WHICH ANY SOUL CAN BECOME GOD. IN THE CENTRE OF THIS UNIVERSE THE FIRST ISLAND IS JAMBUDWEEP.IN THIS THERE ARE SHATKAAL CHANGES IN THE BHARAT SHETRA AND THE AIRAWAT KSHETRA THE…
टोंक – सम्मेदशिखर पर्वत के जिन स्थानों से भगवन्तों ने मोक्षधाम को प्राप्त किया , उन्हें जैन ग्रंथों में टोंक संज्ञा प्रदान की है । सम्मेदशिखर के पर्वत पर ऐसी २४ टोंक हैं । जहाँ भक्तगण श्रद्धापूर्वक जाकर प्रभु की वंदना करते हैं ।
शाश्वत – जो सदाकाल विद्यमान रहता है उसे शाश्वत कहते हैं । जैसे जैनधर्म शाश्वत है ,वैसे ही अयोध्या एवं सम्मेदशिखर तीर्थ शाश्वत माने जाते हैं ।