सिद्ध परमेष्ठी के आठ गुण सम्मत्तणाणदंसण वीरिय सुहुमं तहेव अवगहणं। अगुरुलहुमव्वावाहं अट्ठगुणा होंति सिद्धाणं।। सिद्धों के आठ कर्मो के क्षय हो जाने से आठ गुण प्रगट हो जाते हैं। मोहनीय कर्म के क्षय से सम्यक्त्व, ज्ञानावरण के क्षय से केवलज्ञान, दर्शनावरण के क्षय से केवल दर्शन, अन्तरायकर्म के क्षय से अनन्तवीर्य, नामकर्म के अभाव से…
आत्मा के तीन भेद १‘‘पंचपरमेष्ठियों को भावपूर्वक नमस्कार करके प्रभाकर भट्ट अपने परिणामों को निर्मल करके ही योगीन्द्रदेव से शुद्धात्मतत्त्व के जानने के लिए विनती करते हैं।’’ हे स्वामिन्! इस संसार में रहते हुए मेरा अनन्तकाल व्यतीत हो गया किन्तु मैंने कुछ भी सुख नहीं पाया, प्रत्युत् महान दु:ख ही पाया है। चतुर्गति दु:खों से…
जीव के स्वतत्त्व जीव के असाधारण (जीव के सिवाय अन्य किसी द्रव्य में नहीं पाये जाने वाले) भाव पाँच हैं, वे जीव के स्वतत्त्व कहलाते हैं। औपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक, औदयिक और पारिणामिक। १. औपशमिक-कर्मों के उपशम से होने वाले भाव को औपशमिक कहते हैं। इनके दो भेद हैं-औपशमिक सम्यक्त्व और औपशमिक चारित्र। उपशमसम्यक्त्व-अनादि मिथ्यादृष्टि की…
निक्षेप जीवादि पदार्थों को सम्यक् प्रकार से जानने के लिए निक्षेप माना गया है। उनके चार भेद हैं-नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव। जात्यादि निमित्तों से निरपेक्ष किसी वस्तु की संज्ञा करना नाम निक्षेप है। जैसे-किसी का नाम महावीर रख देना। काष्ठ, पाषाण आदि में यह अमुक है, इस प्रकार स्थापित करना स्थापना है। इसके पूज्य-अपूज्य…
[[श्रेणी:प्रमाण_का_वर्णन]] == प्रत्यक्ष प्रमाण विशद ज्ञान को प्रत्यक्ष प्रमाण कहते हैं। उसके दो भेद हैं-देशप्रत्यक्ष और सकल प्रत्यक्ष। देश प्रत्यक्ष के अवधिज्ञान और मन:पर्यय ज्ञान ऐसे दो भेद हैं और सकल प्रत्यक्ष में एक केवलज्ञान ही है । अवधिज्ञान – द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव की मर्यादा से रूपी पदार्थों को स्पष्ट जानना अवधिज्ञान है। इसके…
पाँच प्रकार के मुनि पुलाक, वकुश, कुशील, निर्ग्रन्थ और स्नातक ये पाँच भेद निग्र्रन्थ मुनियों के होते हैं। पुलाक – जो उत्तरगुणों की भावना से रहित हैं, कहीं पर और कदाचित् व्रतों में परिपूर्णता को प्राप्त नहीं होते हैं, वे पुलाक मुनि कहलाते हैं। ये मुनि भावसंयमी ही हैं, द्रव्यलिंगी नहीं हैं। वकुश – जो निग्र्रंथ…
पुण्य- जीवन में सत्कर्मों के करने से जो कर्म बँधता है उसे पुण्य कहते हैं । पुण्य से ही संसार में सारे कार्य बनते हैं तथा पुण्य से ही मोक्ष की प्राप्ति होती है । इसलिए सदैव पुण्य के उपार्जन में आगे रहना चाहिए ।
इंसान – मनुष्य को इंसान कहा जाता है । दुनिया में इंसानियत ही मनुष्यता की पहचान मानी जाती है ।