कविवर परिमल हिंदी साहित्य के संवर्धन में जैन कवियों का विशिष्ट योगदान रहा है “उन्होंने इस काव्य वाटिका की शोभा को द्विगुणित किया है और हिंदी को जनप्रिय बनाया है “ऐसा ही एक ग्रन्थ वरहिया जाति के रत्न कुम्हरिया गौत्रोत्पन्न महाकवि परिमल्ल का ‘श्रीपाल-चरित’है ” श्रीपाल का कथानक जैन जगत में बहुत लोकप्रिय है “श्रीपाल…
वरहिया जैन इतिहास अतीत का प्रामाणिक भौतिक दस्तावेज होता है जो अनेक लिखित-अलिखित साक्ष्यों के दृश्य अदृश्य सूत्रों से गुंथा होता है “जिन साक्ष्यों का भौतिक और दृश्य अस्तित्व होता है ,यत्र-तत्र बिखरा होने के कारण उनका संकलन करना भी एक दुष्कर कार्य है लेकिन अदृश्य सूत्रों को अत्यंत सतर्कतापूर्वक और पारस्परिक संगति का निर्वाह…
पं.गोपालदास वरैया जैन-जाग्रति के पुरस्कर्ताओं की पंक्ति में एक उल्लेखनीय नाम स्यादवादवारिधि,वादीगजकेशर,न्यायवाचस्पति,गुरुवर्य पंडित गोपालदास वरैया का है “पंडित जी का जन्म ई.1867 में आगरा(उ.प्र.)में श्री लक्ष्मण दास जी जैन के घर हुआ था “आपके पिता की आर्थिक स्थिति बहुत सामान्य थी “जिसके कारण उन्होंने साधारण अंग्रेजी स्कूल में माध्यमिक स्तर तक ही शिक्षा प्राप्त की…
[[श्रेणी:द्रव्यानुयोग]] द्रव्य का लक्षण-द्रव्य का लक्षण सत् है अथवा गुण२ और पर्यायों के समुदाय को द्रव्य कहते हैं। द्रव्य छह होते हैं-जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल।
[[श्रेणी: अमूल्य प्रवचन]] भव्यात्माओं ! परमपूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी द्वारा महापुराण ग्रन्थ पर किये गये प्रवचन यहाँ प्रस्तुत किये जा रहे हैं , इन्हें पढ़कर आप सब महापुराण का ज्ञान प्राप्त करें और इन प्रवचनों की वीडियो सीडी भी जम्बूद्वीप – हस्तिनापुर से मँगवा सकते हैं ।
दस्त (अतिसार) कारण — बासी भोजन, दूषित जल पीना, ऋतु परिवर्तन, पाचन में परेशानी, पेट में कीड़े होना। लक्षण — दस्त आने से पहले पेट में गुड़गुड़ाहट, दर्द, खट्टी डकारें आना इत्यादि। उपचार १. बच्चों को दस्त होने पर माँ के दूध में ३ ग्राम अतीस घिस कर दें। दस्त रूक जायेंगे। २. शुद्ध केसर…
दूध —घी के गुण दूध में प्रोटीन, शर्करा, वसा, खनिज लवण और अनेक विटामिन प्रचुर मात्रा में मौजूद होते हैं । चरक संहिता में इसे ‘‘पय: पानं यथामृतम’’ कहा गया है। दूध के अन्य पदार्थ — दूध से पनीर, घी, मावा (खोवा) दही छाछ (मट्ठा) क्रीम, मक्खन इत्यादि पदार्थ भी तैयार किये जाते हैं।…
श्री बीस तीर्थंकर पूजा भाषा दीप अढ़ाई मेरु पण, अरु तीर्थंज्र्र बीस। तिन सबकी पूजा करूँ, मनवचतन धरि शीस।। ॐ ह्रीं विद्यमानविंशतितीर्थंकरा:! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं विद्यमानविंशतितीर्थंकरा:! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ: स्थापनं। ॐ ह्रीं विद्यमानविंशतितीर्थंकरा:! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधीकरणं। अथाष्टक इन्द्र फणीन्द्र नरेन्द्र, वंद्य पद…
–संत श्री एलाचार्य [तिरुवल्लुवर] द्वारा रचित ग्रंथ – “ तिरक्कुरल [ कुरल- काव्य ] “यह तमिल भाषा में रचित नीति-ग्रंथ है / इसका हिंदी अनुवाद स्व.प.गोविंदराम जैन शास्त्री ने पू. आचार्य श्री 108 विद्यानंद जी की प्रेरणा से किया है/ इस ग्रंथ मे मानव जीवन के सर्वांगीण- निर्माण की प्रेरक सूक्तियों एवं मूलमन्त्रों को 108…