सोच!
सोच अगर आप सोचते हैं कि आप हार गये हैं, तो आप हारे हैं। अगर आप सोचते हैं कि आप में हौंसला नहीं है, तो सचमुच नहीं है। अगर आप जीतना चाहते हैं मगर सोचते हैं कि जीत नहीं सकते,तो निश्चित है कि आप नहीं जीतेंगे अगर आप सोचते हैं कि आप हार जायेंगे, तो…
सोच अगर आप सोचते हैं कि आप हार गये हैं, तो आप हारे हैं। अगर आप सोचते हैं कि आप में हौंसला नहीं है, तो सचमुच नहीं है। अगर आप जीतना चाहते हैं मगर सोचते हैं कि जीत नहीं सकते,तो निश्चित है कि आप नहीं जीतेंगे अगर आप सोचते हैं कि आप हार जायेंगे, तो…
दाल खाएं, सेहत बनाएं दाल भारतीय थाली का एक अहम हिस्सा है। देश—भर में यह अलग—अलग तरीके से पकाई जाती है ये दालें सेहन के लिहाज से भी काफी उपयोगी हैं। दालों में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन, फास्फोरस और खनिज तत्व पाए जाते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए बहुत जरूरी है ।आइए, जानते हैं दालों के…
श्रावण मास की प्रतिपदा वर्ष का प्रथम दिन है उसी दिन धर्मतीर्थ की उत्पत्ति हुई है। वह तिथि युगादि भी है। वासस्स पढममासे पढमे पक्खम्मि सावणे बहुले। पाडिवदपुव्वदिवसे तित्थुप्पत्ती दु अभिजिम्मि।।४०।। वर्ष के प्रथम मास व प्रथम पक्ष में श्रावण कृष्ण प्रतिपदा के पूर्व दिन में अभिजित् नक्षत्र में तीर्थ की उत्पत्ति हुई।।४०।। (धवला…
भवन,भवनपुर, आवास व्यतंर के कहाँ हैं ? रज्जुकदी गुणिदव्वा णयणउदिसहरसअधियल्खेणं। तम्मज्झे तिवियप्पा वेेंतरदेवाण होंति पुरा।।५।। ४९।१९९०००। भवणं भवणपुराणिं आवासा इय भवंति तिवियप्पा। जिणमुहकमलविण्ग्गिदवेंतरपण्णत्तिणामाए।।६।। रयणप्पहपुढवीए भयणाणिं दीवउवहिउवरिम्मि। भवणपुराणिं दहगिरिपहुदीणं उवरि आवासा।।७।। बारससहस्सजोयणपरिमाणं होदि जेट्ठभवणाणं। पत्तेक्वं विक्खंभा तिण्णि संयाणं च बहलत्तं।।८।। १२००० ।३००” राजु के वर्ग को एक लाख निन्यानवै हजार से गुणा करने पर जो प्राप्त…
द्विदल कच्चे दूध और कच्चे दूध के जमाये दही में दो दाल वाले धान्य के मिलाने से बनता है। आमगोरससंपृत्तं द्विदलं द्रोणपुष्पिका। संधानकं कलिंगं च नाद्यते शुद्धदृष्टिभिः।।३११।। अर्थ- कच्चा दूध, कच्चा दही और कच्चे दूध के जमाये दही की छाछ में यदि उड़द,मूंग,चना आदि (जिनकी दो दालें हो सकती हैं) द्विदल को खाने से लार…
तीर्थंकरों के चैत्यवृक्ष की ऊँचाई का प्रमाण चैत्यवृक्षस्तु वीरस्य द्वात्रिंशद्धनुरुच्छ्र्रितः। देहोत्सेधाच्च शेषाणां स द्वादशगुणो मतः।।२०६।। भगवान महावीर का चैत्यवृक्ष बत्तीस धनुष उँचा होगा और शेष तीर्थंकरों के चैत्यवृक्षों की ऊँचाई उनके शरीर की ऊँचाई से बारहगुनी मानी गयाी है ।।२०६।।(हरिवंशपुराण पृ. ७२१)
श्रावकों की इज्या आदि षट् क्रियाये हैं। इज्यां वार्तां च दिंत्त च स्वाध्यायं संयमं तपः। श्रुतोपासकसूत्रत्त्वात स तेभ्यः समुपादिशत्।।२४।। भरत ने उन्हें उपासकाध्ययनांग से इज्या, वार्ता,दत्ति, स्वाध्याय, संयम और तप का उपदेश दिया। (आदिपुराण भाग—२ पृ. २४१)
पुष्प चढ़ाने के प्रमाण अलि-चुंबिएहिं पुज्जइ, जिणपयकमलं च जाइमल्लीहिं। सो हवइ सुरवरिंंदो, रमेई सुरतरुवरवणेहिं।। अलि-चुम्बितै: पूजयति, जिनपद-कमलं च जातिमल्लिवै:। स भवति सुरवरेन्द्र:, रमते सुरतरुवरवनेषु।।४७३।। अर्थ- जो भव्य पुरुष भगवान जिनेन्द्र देव के चरण कमलों की जिन पर भ्रमर घूम रहे हैं ऐसे चमेली, मोगरा आदि उत्तम पुष्पों से पूजा करता है वह स्वर्ग में जाकर…
सच्चे मित्र से बढ़कर संसार में कोई नहीं है अन्नमुन्न च मित्रवन्न हितकृत कोऽप्यस्ति बन्धुःपरो। गुह्याद् गुह्यतरं गुरोहपि न तद्वाच्यं यदस्योच्यते।। दु:साध्यान्यपि साध्यत्यगणयन्प्राणाश्च तत्र स्पुटो। दृष्टान्तो मणिकेतुरेव कुरुतां तन्मित्रमीदृगिवधम् ।।१४२।। (उत्तरपुराण पृ. १२) गौतमस्वामी राजा श्रेणिक से कहते हैं कि हे श्रेणिक! इस लोक तथा परलोक में मित्र के समान हित करने वाला दूसरा नहीं…
वर्ग, वर्गणा एवं स्पद्र्धक का लक्षण अब परमाणोरविभागप्रतिच्छेदरूपशक्तिसमूहो वर्ग इत्युच्यते। वर्गाणां समूहो वर्गणा भण्यते। वर्गणासमूहलक्षणानि स्पद्र्धकानि च कानिचिन्न संति। अथवा कर्मशक्तेः क्रमेण विशेषवृद्धिः स्पद्र्धकलक्षणं। तथा चोक्तं वर्गवर्गणास्पद्र्धकानां त्रयाणां लक्षणं- ‘‘वर्गः शक्तिसमूहोऽणोर्बहूनां वर्गणोदिता। वर्गणानां समूहस्तु स्पद्र्धकं स्पद्र्धकापहैः।। परमाणु के अविभाग प्रतिच्छेदरूप शक्ति के समूह को वर्ग कहते हैं और वर्गों के समूह को वर्गणा कहते हैं…