पुण्य और धर्म के स्वामी कौन-कौन हैं
पुण्य और धर्म के स्वामी कौन-कौन हैं पूयादिसु वयसहियं पुण्णं हि जिणेहि सासणे भणियं।मोहक्खोह विहीणो परिणामो अप्पणो धम्मो।।८१।। पूजा आदि क्रियाओं में पुण्य होता है। श्रावक सम्यग्दर्शन और अणुव्रतों से सहित जिनपूजा, दान आदि क्रियाओं को करके सातिशय पुण्य संचित कर लेता है ऐसा उपासकाध्ययन नाम के अंग में जिनेन्द्रदेव द्वारा वर्णित है। टीकाकार कहते…