13. आलोचना पाठ
आलोचना पाठ दोहा वंदों पाँचों परमगुरु, चौबीसों जिनराज। करूं शुद्ध आलोचना, शुद्ध करन के काज ।।१।। छंद चौपाई सुनिये जिन अरज हमारी, हम दोष किये अति भारी। तिनकी अब निर्वृति काजा, तुम शरण लही जिनराजा ।।२।। इक बे ते चउ इन्द्री वा, मन रहित सहित जे जीवा। तिनकी नहिं करुणाधारी, निर्दयी ह्वै घात विचारी ।।३।।…