कंचन!
कंचन-सोना नामकी धातु को कंचन कहते हैं ।पूजन में ऐसी सोने की झारी से जल की धारा करने से महान पुण्य की प्राप्ति होती है ।
कंचन-सोना नामकी धातु को कंचन कहते हैं ।पूजन में ऐसी सोने की झारी से जल की धारा करने से महान पुण्य की प्राप्ति होती है ।
पंच परमेष्ठी नमस्कार अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु ये पाँच परमेष्ठी हैं इनको नमस्कार करने से पापों का नाश होता है। अरिहंत– जिन्होंने चार घाति या कर्मों का नाश कर दिया है, जिनमे छियालीस गुण होते हैं और अठारह दोष नहीं होते हैं, वे अरिहंत परमेष्ठियों कहलाते हैं। सिद्ध– जिन्होंने आठों कर्मों का नाश…
पंचेन्द्रिय तिर्यंच के भेद पंचेन्द्रिय तिर्यंच के तीन भेद हैं- जलचर, स्थलचर और नभचर। जलचर– जो जल में रहते हैं। जैसे-मगर, मछली, कछुआ आदि। स्थलचर- जो पृथ्वी पर चलते हैं। जैसे-बैल, घोड़ा, बन्दर, हाथी आदि। नभचर- जो आकाश में उड़ा करते हैं। जैसे-कबूतर, तोता, चिड़िया आदि। सैनी-असैनी पंचेन्द्रिय के दो भेद हैं- सैनी, असैनी। जिनके…
संसार रोग की दवा भलाई की पत्ति ४ तोला, प्रेम के बीज ३ तोला, सच्चाई की जड़ २ तोला, परोपकार के फल ५ तोला, तपस्या की छाल १५ तोला। विधि— इन पाँचो वस्तुओं को दस्ते में कूट कर आत्मज्ञान के डिब्बे में भर लो और सत्संग के चमचे से दो—तीन बार प्रतिदिन खाओ। परहेज:—चिंता की…
कर्म सिद्धान्त अध्यापक- यह सारा विश्व अनादि अनन्त है अर्थात् न इसका आदि है और न कभी अन्त ही होगा। इसे किसी ईश्वर ने नहीं बनाया है। बालक- गुरु जी! यदि इस विश्व को ईश्वर ने नहीं बनाया है, तो हमें सुख और दु:ख कौन देता है ? अध्यापक- बालकों! हम सभी को सुख-दु:ख देने…
जैन साधू एवं साध्वियाँ –भारत की धरती पर सदा- सदा से साधू- साध्वियों का जन्म होता रहा है उनकी त्याग- तपस्या से देश का मस्तक सदैव गौरव से ऊँचा रहा है ।जैन रामायण पद्मपुराण में आचार्य श्री रविषेण स्वामी ने कहा है –यस्य देशं समाश्रित्य, साधवः कुर्वते तपः । षष्ठमंशं नृपस्तस्य,लभते परिपालनात् ।।१ ।।अर्थात् जिस…
क्या है ३६ # आचार्य परमेष्ठी के ३६ मूलगुण होते हैं। # सुदर्शन मेरु के सौमनस वन से पांडुकवन ३६००० योजन की ऊँचाई पर है। # नरक में पैदा होते ही जीव ३६ आयुधों के मध्य गिरता है एंव गेंद के समान उछलता है। # भवनवासी देवों के उतरेन्द्र वशिष्ठ, जलकांत, महाघोष हरिकांत, अमित वाहन…