मंदकषायी :!
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:सूक्तियां ]] == मंदकषायी : == सर्वत्र अपि प्रियवचनं, दुर्वचने दुर्जने अपि क्षमाकरणम्। सर्वेषां गुणग्रहणम् , मन्दकषायाणां दृष्टान्ता:।। —समणसुत्त : ५९९ सर्वत्र ही प्रिय वचन बोलना, दुर्वचन बोलने वाले दुर्जन को भी क्षमा करना तथा सबके गुणों को ग्रहण करना— ये मंदकषायी जीवों के लक्षण हैं।