परिग्रही :!
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:सूक्तियां ]] == परिग्रही : == चित्तवन्तमचित्तं वा, परिगृह्य कृशमपि। अन्यं वा अनुजानाति, एवं दु:खात् न मुच्यते।। —समणसुत्त : १४१ सजीव या निर्जीव स्वल्प वस्तु का भी जो परिग्रह रखता है अथवा दूसरे को उसकी अनुज्ञा देता है, वह दु:ख से मुक्त नहीं होता।