आवश्यक :!
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] == आवश्यक : == परित्यक्त्वा परभावं, आत्मानं ध्यायति निर्मलस्वभावम्। आत्मवश: स भवति खलु, तस्य तु कम्र्म भणन्ति आवश्यकम्।। —समणसुत्त : ४१७ परभाव का त्याग करके निर्मल—स्वभावी आत्मा का ध्याता आत्मवशी होता है। उसके कर्म को ‘आवश्यक’ कहा जाता है।