दूर रहें /> left “50px”]] /> right “50px”]] उदास , मनहूस और निकम्मे व्यक्ति से। विपरीत, नकारात्मक सोच वाले व्यक्ति से। अपने को अयोग्य समझने से दूर रहें। गलती स्वीकारे, पर सुधार न करे उनसे। तत्काल, बिना विचारे प्रतिक्रिया करने वाले से। अपने सामने दूसरों की निंदा आलोचना करने वाले से। अपने मुख से अपनी…
सभी पर्वत, नदी आदि के दोनों पाश्र्व भागों में वेदिकायें हैं साम्प्रतं पर्वतादिषु सर्वत्र वेदिका संख्यामाह- तिसदेक्कारससेले णउदीकुडे दहाण छव्वीसे। तावदिया मणिवेदी णदीसु सगमाणदो दुगुणा१।।७३१।। त्रिशतैकादशशैलेषु नवतिकुण्डेषु ह्रदानां षड्विंशतौ। तावन्त्यः मणिवेद्यः नदीषु स्वकमानतः द्विगुणाः।।७३१।। तिस। जम्बूद्वीपस्य त्रिशतैकादश ३११ शैलेषु तावन्त्यो मणिमयवेद्यः नवतिकुण्डेषु ९० तावन्त्यो मणिमयवेद्यः ह्रदानां षड्विंशतौ २६ तावन्त्यो मणिमयवेद्यः नदीषु स्वकीयप्रमाणतो द्विगुणा मणिमयवेद्यः स्युः।।…
जहाँ नदियां गिरती हैं वहां भगवान की जिनप्रतिमाएँ हैं अथ प्रणालिकाया: वृषभाकारत्वमन्वर्थयति— केसरिमुहसुदिजिब्भादिट्ठी भूसीसपहुदिणो सरिसा। तेणिह पणालिया सा बसहायारेत्ति णिद्दिट्ठा।।५८५।। केशरिमुखश्रुतिजिह्वादृष्टय: भूशीर्षप्रभृतय: गोसदृशा:। तेनेह प्रणालिका सा वृषभाकारा इति निर्दिष्टा।।५८५।। केसरि। मुखश्रुतिजिह्वादृष्टय: केसरिसदृक्षा: भूशीर्षप्रभृतयः गोसदृक्षास्तेन कारणेनेह सा प्रणालिका वृषभाकारेति निर्दिष्टा।।५८५।। अथ पतितायास्तस्या: पतनस्वरूपं गाथापञ्चकेनाह— भरहे पणकदिमचलं मुच्चा कहलोवमा दहब्वासा। गिरिमूले दहगाहं वुंडं वित्थारसट्ठिजुदं।।५८६।। मज्झे दीओ जलदो…
[[श्रेणी:मध्यलोक_के_जिनमंदिर]] == नंदीश्वरद्वीप के ५२ जिनमंदिर एवं द्विगुणाद्विगुणावलयविष्कम्भेषु द्वीपसमुद्रेषु गतेष्वष्टमो नन्दीश्वरो द्वीपः। तस्य वलयविष्कम्भः कोटिशतं त्रिषष्टिकोट्यः चतुरशीतिश्च योजनशतसहस्राणि। तत्परिधिः द्वे कोटिसहस्रे द्विसप्ततिकोटयः त्रयस्ंित्रच्छतसहस्राणि चतुःपञ्चाशतसहस्राण्येकशतं नवतियोजनानि गव्यूतं च साधिकम्। तद्बहुमध्यदेशभाविनश्चतसृषु दिक्षु चत्वारोऽञ्जनगिरायः योजनसहस्रावगाहाश्चतुरशीतियोजनसहस्रोत्सेधाः मूलमध्याग्रेषूत्सेधसमायामविष्कम्भाः पटहाकाराः। तेषां चतसृषु दिक्षु तिर्यगेवंâ योजनशतसहस्रमतीत्य प्रत्येवंâ चतस्रो वाप्यो भवन्ति। तत्र पौरस्त्याञ्जनगिरेः नन्दा-नन्दवती-नन्दोत्त्रा-नन्दिघोषासंज्ञा योजनसहस्रावगाहा योजनशतसहस्रायामविष्कम्भाश्च-तुष्कोणा मत्स्य कच्छपादिजलचरविरहिताः पद्मोत्पलादिजलरुहकुसुमञ्छादितस्फटिकमणिस्वच्छगम्भीर नीराः। प्राच्यां दिशि नन्दा…
[[श्रेणी:मध्यलोक_के_जिनमंदिर]] == नरलोक के अकृत्रिम जिनचैत्यालयों की संख्या अथ नरलोकजिनगृहाणि कुत्र कुत्र तिष्ठन्ति इत्युत्तेक़ आह— मंदरकुलवक्खारिसुमणुसुत्तररुप्पजंबुसालिसु। सीदी तीसं तु सयं चउ चउ सत्तरिसयं दुपणं।।५६२।। मन्दरकुलवक्षारेषु मानुषोत्तररूप्यजम्बूशाल्मलिषु। अशीतिः त्रिंशत् तु शतं चत्वारि चत्वारि सप्ततिशतं द्विपञ्च।।५६२।। मंदर। मन्दरेषु ५ कुलपर्वतेषु ३० वक्षारेषु १०० इष्वाकारेषु ४ मानुषोत्तरे १ विजयार्धेषु १७० जम्बूवृक्षेषु ५ शाल्मलीवृक्षेषु ५ यथासंख्यं जिनगृहाण्यशीति ८० त्रिंशत्…
धर्मचक्र से सदाचार का प्रवर्तन होता है —विद्यावारिधि डॉ. महेन्द्र सागर प्रचण्डिया यूनानी सम्राट सिकन्दर के मन में विश्व विजेता बनने की लालसा उत्पन्न हुई। अपनी कामना पूर्ण करने के लिए वह एक चमत्कारी योगी के आश्रम में पहुँचा। यथायोग्य सेवा—सुश्रषा कर उसने योगी का प्रसन्न किया। योगी ने सिकन्दर के विश्व—विजयी होने के मनोरथ…
क्या राजा सोमप्रभ एवं श्रेयांस श्री कामदेव बाहुबली के पुत्र थे ? जरा विचार करें युग की आदि में भगवान ऋषभदेव ने अयोध्या नगरी में जन्म लिया था। माता मरुदेवी एवं पिता नाभिराज ने यौवन अवस्था में भगवान ऋषभदेव का विवाह यशस्वती और सुनन्दा नामक दो कन्याओं के साथ सम्पन्न किया, जिसमें से महारानी यशस्वती…
भावनिर्जरा-द्रव्यनिर्जरा जिन परिणामों से यथाकाल, फल देकर पुद्गल कर्म झड़े। और जिन भावों से तप द्वारा, फल दें अकाल में कर्म झड़ें।। बस भावनिर्जरा कहलाता, है भाव वही ऐसा जानो। है द्रव्यनिर्जरा कर्मों का, झड़ना यह बात सही मानो।।३६।। यथासमय-उदय काल में फल देकर अथवा तप के द्वारा आत्मा के जिन भावों से कर्म झड़…