इंद्रिय मार्गणा सार जो इंद्र के समान हों उसे इंद्रिय कहते हैं। जिस प्रकार नव ग्रैवेयक आदि में रहने वाले इंद्र, सामानिक, त्रायिंस्त्रश आदि भेदों तथा स्वामी, भृत्य आदि विशेष भेदों से रहित होने के कारण किसी के वशवर्ती नहीं हैं, स्वतंत्र हैं उसी प्रकार स्पर्शन आदि इंद्रियाँ भी अपने-अपने स्पर्श आदि विषयों में दूसरी…
जंबूस्वामी के पूर्वभव एवं वैराग्य के दृश्य
चौबीस तीर्थंकरों की पंचकल्याणक तिथियाँ का चार्ट
सम्मेदशिखर टोंक से मुक्ति प्राप्त मुनियों की संख्या का चार्ट
१. मिथ्यात्व गुणस्थान मिथ्यात्व के उदय से होने वाले तत्त्वार्थ के अश्रद्धान को मिथ्यात्व कहते हैंं। इसके पाँच भेद हैं—एकांत, विपरीत, विनय, संशय और अज्ञान अथवा गृहीत और अगृहीत के भेद से मिथ्यात्व के दो भेद भी होते हैं। इन्हीं में संशय को मिला देने से तीन भेद भी हो जाते हैं। विशेष रूप से…
१२. क्षीणमोह गुणस्थान मोहनीय कर्म के सर्वथा नष्ट हो जाने से क्षीणकषाय मुनि निर्ग्रंथ वीतराग कहलाते हैं ।
[[श्रेणी:गौतम_गणधर_स्वामी]] ==गौतम गणधर प्रश्नोत्तरी प्रतियोगता== (1) center”800px”]] ==(2)== center”800px”]] ==(3) श्री का श्र == center”800px”]] ==(4)गौतम गणधर== center”800px”]] ==(5)== center”800px”]] ==(6)== center”800px”]] ==(7)== center”800px”]] ==(8)== center”800px”]] ==(9)== center”800px”]] ==(10)== center”800px”]] ==(11)== center”800px”]] ==(12)== center”800px”]] ==(13)== center”800px”]] ==(14)== center”800px”]]
८. अपूर्वकरण गुणस्थान अध:प्रवृत्तकरण में अंतर्मुहूर्त रहकर ये मुनि प्रतिसमय अनंतगुणी विशुद्धि को प्राप्त होते हुए एवं पूर्व में कभी भी नहीं प्राप्त हुए ऐसे अपूर्वकरण जाति के परिणामों को प्राप्त होते हैं । यहाँ पर एक समयवर्ती मुनियों के परिणामों में सदृशता और विसदृशता दोनों ही होती है । इसका काल भी अंतर्मुहूर्त है…