प्रवचनवत्सलत्व भावना वत्से धेनुवत्सधर्मणि स्नेह: प्रवचनवत्सलत्वम्।।१६।। जैसे गाय अपने बछड़े में अकृत्रिम स्नेह करती है वैसे ही धर्मात्माओं को देखकर उनके प्रति स्नेह से आद्र्रचित्त का हो जाना प्रवचनवत्सलत्व है। जो सहधर्मियों में स्नेह है वही प्रवचन स्नेह है। यहाँ प्रवचन शब्द में चतुर्विध संघ आ जाता है-मुनि, आर्यिका, श्रावक और श्राविका। विष्णुकुमार मुनि का…
मार्गप्रभावना भावना ज्ञानतपोजिनपूजाविधिना धर्मप्रकाशनं मार्गप्रभावनम्।।१५।। पर समयरूपी जुगुनुओं के प्रकाश को पराभूत करने वाले ज्ञान रवि की प्रभा से इंद्र के आसन को वंâपा देने वाले महोपवास आदि सम्यक् तपों से तथा भव्यजनरूपी कमलों को विकसित करने के लिए सूर्यप्रभा के समान जिनपूजा के द्वारा सद्धर्म का प्रकाश करना मार्गप्रभावना है। समय-समय पर आचार्यों ने…