जैन संस्कृति के प्रथम तीर्थंकर युगप्रवर्तक देवाधिदेव भगवान आदिनाथ का जीवन वृत्त पाँचों कल्याणक तथा उनके पूर्व भव इस उपन्यास में दिए गए हैं | पुस्तक छोटी होते हुए भी सारगर्भित है | पूज्य माताजी की अपनी यह एक विशिष्ट शैली है कि पुस्तक छोटी हो या बड़ी , पूजाएं हों या स्वाध्याय के ग्रन्थ , सभी में सुगमता से जैनधर्म के चारों अनुयोगों का समावेश कर देती है | माताजी द्वारा लिखी प्रत्येक कों पढ़ने से जीवन की कला प्राप्त होती है |
वीर नि. सं . २५०६, सन् १९८० में यह पुस्तक लिखी गयी है | यह भी उपन्यास है , जिसमें सेठ सुदर्शन , महामुनि सुकुमाल , रक्षाबंधन एवं अंजन चोर की कथाएँ हैं |